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Uttarkashi: जिस रैट होल माइनिंग’ पर 9 साल पहले लगा था बैन, उसी तकनीक से मिली कामयाबी

उत्तरकाशी(Uttarkashi)। उत्तरकाशी टनल हादसे (Uttarakhand Tunnel Collapse) को आज 17 दिन पूरे हो चुके हैं, जिस पर पूरे देश की नजर टिकी हुई है। दरअसल, दिवाली के दिन हुए हादसे के बाद से लगातार टनल में फंसे 41 मजदूरों (41 laborers trapped in tunnel) को बचाने की जंग जारी थी। बीते दिनों में हर तरह की तकनीक (all kinds of technology) और मशीनों का इस्तेमाल (machines used) किया गया, लेकिन अब तक सफलता नहीं मिल पाई थी।

हाल ही में 46.8 मीटर तक ड्रिल करने के बाद अमेरिका निर्मित बरमा मशीन के कुछ हिस्से मलबे में फंस गए। जिसके बाद अधिकारियों को रैट होल ड्रिलिंग का ही सहारा दिखा। अंत में रैट होल माइनिंग तकनीक अपनाने का फैसला लिया गया, जिसके बाद कुछ जांबाजों को तैयार किया गया था। अब तक इन रैट माइनर्स की कड़ी मेहनत और देश की प्रार्थना के बाद मिशन पूरा हो चुका है। आखिर यह कौन-सी तकनीक है, जिसको सभी मशीनों के फेल होने के बाद अपनाने का फैसला लिया गया। जानिए रैट होल ड्रिलिंग से जुड़े सभी सवालों के जवाब।


क्या होता है रैट होल माइनिंग? (Rat Hole Mining)
सिल्क्यारा सुरंग में सभी मशीनों द्वारा खुदाई होने के बाद अब हॉरिजॉन्टल खुदाई करने का फैसला किया गया, जो कि मैनुअल विधि से पूरी की गई। दरअसल, इसके लिए सुरंग बनाने वाले कुशल कारीगरों की जरूरत होती है। इन कारीगरों को रैट माइनर्स कहा जाता है।

रैट होल माइनर्स को संकीर्ण सुरंग बनाने के लिए तैयार किया जाता है। इनका काम मेघालय जैसे इलाकों में कोयला निकालने के लिए किया जाता है। यह माइनर्स हॉरिजॉन्टल सुरंगों में सैकड़ों फीट तक आसानी से नीचे चले जाते हैं।

आमतौर पर एक व्यक्ति के लिए पर्याप्त गड्ढा खोदा जाता है। एक बार गड्ढा खोदे जाने के बाद माइनर रस्सी या बांस की सीढ़ियों के सहारे सुरंग के अंदर जाते हैं और फिर फावड़ा और टोकरियों जैसे उपकरणों के माध्यम से मैनुअली सामान को बाहर निकालते हैं। इस प्रॉसेस का सबसे ज्यादा इस्तेमाल मेघालय के कोयला खदान में किया जाता है।

9 साल पहले बैन की गई प्रक्रिया
साल 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मजदूरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस विधि पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि, इसके बाद भी कई इलाकों में रैट होल माइनिंग जारी है, जो कि अवैध माना जाता है। मेघालय में सबसे ज्यादा रैट होल माइनिंग होती है, जिसके कारण न जाने कितने ही मजदूरों को अपनी जान गंवानी पड़ जाती है।

रैट माइनर्स नहीं हैं कारीगर
बचाव अभियान में शामिल एक अधिकारी ने स्पष्ट करते हुए बताया कि इस रेस्क्यू ऑपरेशन में चुने गए कारीगर रैट माइनर्स नहीं हैं, बल्कि दो प्राइवेट कंपनी की दो टीमें हैं। इन लोगों को दो-तीन टीमों में विभाजित किया गया और प्रत्येक टीम एक निर्धारित समय तक स्टील पाइप में जाकर खुदाई की। एक टीम में तीन व्यक्ति को रखा गया, जिसमें से एक का काम खुदाई करना, दूसरे का मलबा इकट्ठा करना और तीसरे का काम मलबे को बाहर निकालना था।

ड्रोन मैपिंग का लिया सहारा
रैट होल ड्रिलिंग करने से पहले अधिकारियों ने ड्रोन-मैपिंग का सहारा लिया था, जिससे रेस्क्यू करना आसान हो सके। दरअसल, ड्रोन-मैपिंग के जरिए उपयुक्त स्थान की 3डी मैपिंग की जाती है, जिससे स्थिति को समझने में आसानी हो। दरअसल, अक्सर मशीने रास्ते में जाकर फंस जा रही है, ऐसे में ड्रोन मैपिंग के जरिए पता लगाया जाएगा कि किस स्थान पर कितना बड़ा पत्थर या कैसे मलबा है, ताकि आगे रेस्क्यू करने में आसानी हो।

इसके अलावा, जब ड्रोन मैपिंग के जरिए किसी स्थान की 3डी इमेज और वीडियो मिल जाती है, तो इस किसी ऐसे विशेषज्ञ के पास भेजना आसान हो जाता है, जो मौके पर नहीं पहुंच पाते। इसके जरिए अलग-अलग विशेषज्ञों ने उचित राय लेकर कार्रवाई करना आसान हो जाता है।

12 नवंबर से धूप की रोशनी को तरसे मजदूर
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय के लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर सिल्क्यारा सुरंग की खुदाई चल रही थी। दरअसल, केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी चारधाम ‘ऑल वेदर सड़क’ परियोजना का हिस्सा है। इस 4.5 किलोमीटर की सुरंग की खुदाई के दौरान 12 नवंबर को सुरंग का एक हिस्सा ढह गया और उस दौरान काम कर रहे 41 मजदूर अंदर ही फंस गए।

उस दिन के बाद से मजदूरों की हिम्मत बनाए रखने के लिए सभी प्रकार की कोशिश की जा रही हैं। उन तक पाइप के जरिए खाना और पानी पहुंचाया जा रहा है। संचार सुविधा देने की भी कोशिश की गई, जिसके बाद मजदूरों ने अपने परिजनों से बात की और पूरी स्थिति के बारे में बताया।

17वें दिन मिल ही गई सफलता
सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों की जिंदगी बचाने के लिए बचाव अभियान (Uttarkashi Tunnel Rescue Operation) आज सफल हुआ। उत्तरकाशी टनल हादसे में 17वें दिन बड़ी सफलता मिली है। आखिरकार टनल में फंसे 41 मजदूरों को सही सलामत बाहर निकालने का काम आखिरी पड़ाव पर है। मंगलवार को सुरंग में ब्रेकथ्रू हुआ और स्केप टनल के जरिए मजदूरों को बाहर निकाला जा रहा है।

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