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अब Vaccine का कॉकटेल भी संभव ? जानिए इस नए प्रयोग के बारे में

नई दिल्ली। हाल ही में देश में एक और वैक्सीन स्पुतनिक वी (Sputnik V) को मंजूरी मिल गई है,जिसके बाद हमारे देश में अब कोरोना की तीन वैक्सीन्स हो गई हैं. पहली कोविशील्ड, दूसरी को-वैक्सीन और अब जो तीसरी आयी है ये रूस की है जिसका नाम है स्पूतनिक वी।
इमरजेंसी यूज की मंजूरी दी गयी
Sputnik V  वैक्सीन को अब जब भारत में वैक्सीन की कमी है तब इमरजेंसी यूज की मंजूरी मिली है।
आपको पता ही है कि भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है और 12 अप्रैल को 24 घंटे में देश में 1 लाख 68 हजार नए मरीज इससे संक्रमित हुए हैं इससे ये साफ़ है कि हमारे देश में एक दिन में दो लाख नए मामलों की तरफ तेजी से बढ़ रहा है ऐसे में चुनौती ये है कि संक्रमण जिस दर से बड़ रहा है उसके हिसाब से तो वैक्सीन के उत्पादन की रफ्तार जरूरत के हिसाब से अभी धीमी है।

किन राज्यों में कितनी वैक्सीन की कमी
दिल्ली, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, झारखंड, पंजाब,छत्तीसगढ़ ,असम और उत्तराखंड में वैक्सीन की कमी है और सूत्रों की माने तो इन राज्यों में कुछ वैक्सीनेशन सेंटर्स बंद भी हो गए हैं.यानी अभी जिन लोगों का नंबर था, अब उन्हें इंतजार करना होगा।

फ़िलहाल भारत में वैक्सीन का कितना उत्पादन हो रहा है
पहली है भारत की स्वदेशी को-वैक्सीन, जिसे हैदराबाद की भारत बायोटेक कंपनी बना रही है और दूसरी है कोविशील्ड, जिसे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी एस्ट्राजेनेका ने बनाया है, लेकिन भारत में इसका उत्पादन Serum Institute of India कर रहा है.Serum Institute of India कोविशील्ड की 7 से 10 करोड़ डोज तैयार कर रहा है और भारत बायोटेक कंपनी एक महीने में को-वैक्सीन की 50 लाख डोज बना रही है लेकिन हमारी ज़रूरत इससे कही अधिक है और इसीलिए वैक्सीन मामलों की सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी ने रूस की स्पुतनिक वी को मंजूरी दी है.

Efficacy Rate क्या होगा Sputnik V का
आपकी जानकारी के लिए बता दे की Efficacy Rate के मामले में स्पूतनिक वी दूसरी सभी वैक्सीन्स पर भारी पड़ती है.
इसका Efficacy Rate 91.6 प्रतिशत है, जबकि भारत में बन रही को-वैक्सीन का 81 प्रतिशत है और कोविशील्ड का Efficacy Rate 79 प्रतिशत वैसे किसी भी वैक्सीन के Efficacy Rate को पता लगाने का आधार ट्रायल के दौरान उससे कितने लोग सही हुए होता है ।
जबकि ये सक्सेस रेट नहीं होता. सक्सेस रेट तो सिर्फ़ तब पता चलता है कि जब ये ट्रायल के बाहर जाकर लोगों को लगाई जाती है.

कितने देशों में पहले से इस्तेमाल हो रही है
Sputnik V भारत से पहले दुनिया के 59 देशों से मजूरी प्राप्त करी हुई वैक्सीन है और वहाँ पर ये वैक्सीन लोगों को लगाई भी जा रही है. वहाँ के लोगों की माने तो इस वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स काफी कम दिखे हैं साथ ही ये ज्यादा प्रभावी भी है.

Sputnik V की क़ीमत क्या चल रही है।

बताया जा रहा है कि ये वैक्सीन अमेरिकी कंपनी फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन के मुकाबले काफी सस्ती है. इसकी दो डोज की कीमत 10 Dollar, लगभग 750 रुपये है।
भारत में अभी जो दो वैक्सीन लगाई जा रही हैं, प्राइवेट अस्पतालों में उनकी दो डोज का खर्च 500 रुपये है. यानी एक डोज 250 रुपये की है. सरकारी अस्पतालों में ये वैक्सीन मुफ्त में लगाई जा रही है।

Sputnik V को रखने का तरीक़ा 

2 से 8 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर करके आसानी से रखाने वाली वैक्सीन है यानी इसे सामान्य रेफ्रिजरेटर में भी स्टोर किया जा सकता है और अगर आप स्पुतनिक वैक्सीन लगवाते हैं, तो इसकी दूसरी डोज, पहली डोज के 21 दिन बाद।

साढ़े 10 करोड़ वैक्सीन की हर महीने
स्पूतनिक वी का इस्तेमाल शुरू होने से वैक्सीनेशन को नई रफ्तार मिलेगी. इस समय भारत को हर महीने साढ़े 10 करोड़ वैक्सीन की डोज की जरूरत है, लेकिन वो लगभग 7 करोड़ वैक्सीन ही बना पा रहा है. यानी साढ़े तीन करोड़ वैक्सीन की कमी हर महीने हो रही है और ये कमी स्पुतनिक वी से पूरी हो सकती भारत अगर चाहे को तो वो हर साल स्पूतनिक वी की 85 करोड़ डोज बना सकता है।

कही कही पर वैक्सीन की बर्बादी हो रही है।
अभी कुछ जगहों पर वैक्सीन बर्बाद हो रही है और इसका कारण है Multi Dose Vial, जैसे एक वायल से कम से कम 10 या 20 लोगों को वैक्सीन दी जाती है. यानी एक वायल अगर खुल गया और उससे 20 लोगों को वैक्सीन देनी है और वैक्सीनेशन सेंटर पर सिर्फ 17 लोग हैं तो बाकी की 3 डोज नष्ट हो जाएंगी. इसीलिए अगर वैक्सीन लगवाने के लिए योग्य हैं, तो आप खुद को रजिस्टर जरूर कराइए क्योंकि, हो सकता है आपके हिस्से की वैक्सीन इस तरह बर्बाद हो रही हो.

कॉकटेल नया प्रयोग क्या है।
आपको वैक्सीन के कॉकटेल के बारे में बताते हैं. जैसे बहुत सारे फलो को मिलाकर मिक्स जूस बनता है उसी तरह ज़रा सोचिए अगर मिक्स फ्रूट जूस की तरह ही कोरोना वायरस की भी एक ऐसी वैक्सीन आ जाए, जिसमें सभी वैक्सीन का थोड़ा-थोड़ा मिश्रण हो तो क्या होगा. फ़िलहाल कई देशों में इस पर भी रिसर्च शुरू हो गई हैं. इसीलिए अब हम आपको वैक्सीन के कॉकटेल के बारे में बताते हैं।
दुनिया इस प्रयोग को Vaccine Remix कह रही क्यूँकि ये वैक्सीन का रीमिक्स है और इसके तहत ब्रिटेन में ट्रायल भी शुरू हो गए हैं जिसके अंतर्गत वैक्सीन की पहली डोज किसी और कंपनी की लगाई जा रही है और दूसरी डोज किसी और कंपनी की लगाई जा रही है और ऐसा सिर्फ़ ब्रिटेन में ही नहीं हो रहा है।
कुछ शोध में ऐसा दावा किया गया है कि अगर वैक्सीन की अलग अलग डोज लगाई जाएं, तो इसका इम्युनिटी सिस्टम पर गहरा प्रभाव होता है और चीन ने भी ऐसा माना है. चीन की वैक्सीन का Efficacy Rate ज्यादा नहीं है. इसलिए वो भी लोगों को अलग-अलग कंपनियों की वैक्सीन मिक्स करके लगा रहा है और इसीलिए हम इसे वैक्सीन का कॉकटेल कह रहे हैं।

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