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विक्रम ‘ताकत’ मगर रोवर प्रज्ञान है ISRO की असल जान! जानें आखिर लैंडिंग के लिए साउथ पोल ही क्यों चुना गया

नई दिल्‍ली: जैसे-जैसे चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की लैंडिंग (landing) का वक्‍त पास आ रहा है, लोगों के दिलों की धड़कनें भी तेज होती जा रही हैं. हर किसी की नजर विक्रम लैंडर (Vikram Lander) पर है. विक्रम लैंडर की यह जिम्‍मेदारी है कि वो चंद्रयान-3 को सुरक्षित सॉफ्ट लैंडिंग (soft landing) के माध्‍यम से चांद (Moon) की सतह पर पहुंचा दे. साल 2019 में लैंडिंग के वक्‍त ही भारत का चंद्रयान-2 मिशन फेल हो गया था. मगर इस बार इसरो ने पूरी तैयारी कर ली है. चंद्रयान-3 के साथ दो रोवर हैं. एक विक्रम और दूसरा प्रज्ञान. भले ही विक्रम लैंडर ISRO की ताकत हो लेकिन उसकी असल जान अब भी प्रज्ञान रोवर ही है. क्योंकि जहां से विक्रम रोवर (Vikram Rover) का काम खत्म होता है, वहां से प्रज्ञान का काम शुरू हो जाता है. वहीं, चंद्रयान-2 की लैंडिंग के लिए साउथ पोल को ही क्यों चुना गया है, इस बारे में भी इसरो का प्लान सामने आया है.

दरअसल, जिस विक्रम लैंडर की चर्चा अब तक होती आ रही थी, आज उसका मुख्‍य काम शाम 6 बजकर 4 मिनट के बाद खत्म हो जाएगा यानी लैंडिंग तक. इसके बाद शुरू होगा प्रज्ञान रोवर का रोल. प्रज्ञान रोवर एक ऐसा यंत्र है, जो चंद्रमा के रहस्यों को परत दर परत खोलने वाला है. लैंडर से बाहर निकलने के बाद सबसे पहले प्रज्ञान अपने एक खास यंत्र से चांद की सतह पर जमी धूल की जांच करेगा, जिसके बाद चांद की धूल से अलग-अलग तरंगें निकलनी शुरू हो जाएंगी. इन तरंगों के विश्लेषण के बाद रोवर ठोस नतीजे पर पहुंचेगा और फिर वहीं से जांच के नतीजों को ISRO के मास्टर कंट्रोल रूम तक भेजेगा.


प्रज्ञान रोवर किन यंत्रों की मदद से मिशन को अंजाम देगा?
प्रज्ञान रोवर APXS से लैस है. APXS यानी अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर. APXS चंद्रमा की सतह की मौलिक संरचना की जानकारी जुटाएगा. ये चांद की सतह पर केमिकल और मिनरल का अध्ययन करेगा. वो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह की रासायनिक संरचना का पता लगाएगा. वहीं, रोवर में लगा LIBS यानी लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप लैंडिंग साइट के आस-पास की चांद की मिट्टी और चट्टानों में मैग्नीशियम और एल्यूमीनियम की पड़ताल करेगा. वो ये पता लगाएगा कि इनमें रासायनिक तत्व किस अनुपात में मौजूद हैं.

ISRO कमांड सेंटर को डाटा भेजेगा लैंडर
रोवर जो डेटा इकठ्ठा करेगा उसे लैंडर के पास भेजेगा, जिसे लैंडर जमीन पर ISRO के कमांड सेंटर को भेजेगा. लैंडर के माध्यम से ही ISRO के वैज्ञानिक रोवर को कमांड भेजेंगे. प्रज्ञान के काम की शुरुआत लेजर बीम के साथ होगी. लेजर बीम की मदद से रोवर चंद्रमा की सतह के एक टुकड़े को पिघला देगा. इस प्रक्रिया में मौके से जो गैसें निकलेंगी, रोवर उन गैसों का विश्लेषण करेगा. ऐसा नहीं है कि प्रज्ञान रोवर चंद्रमा की सतह पर बहुत लंबी दूरी तक दौड़ लगाने वाला है. परीक्षण के दौरान रोवर प्रज्ञान लैंडर से 500 मीटर से ज्यादा दूरी पर नहीं जा सकेगा. प्रज्ञान 1 सेंटीमिटर प्रति सेकंड की रफ्तार से बढ़ते हुए करीब 500 मीटर की दूरी तय करेगा. महज 26 किलो वजन वाला प्रज्ञान रोवर चांद पर बहुत ही भारी काम करने गया है.

ISRO ने दक्षिणी ध्रुव को ही क्‍यों चुना?
दक्षिणी ध्रुव चंद्रमा का सबसे ठंडा इलाका है क्योंकि यहां सूरज की रोशनी बहुत कम पहुंचती है. सूरज की किरण तिरछी पड़ने की वजह से चांद के दक्षिणी ध्रुव के ज्यादातर हिस्सों पर काफी अंधेरा रहता है. यही वजह है कि वहां का तापमान भी काफी कम होता है. अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA की एक रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिणी ध्रुव के कुछ हिस्सों पर सूरज की रोशनी आती है. जहां सूरज का प्रकाश पहुंचता है, वहां का तापमान करीब 54 डिग्री सेल्सियस रहता है लेकिन चांद के दक्षिणी ध्रुव के ज्यादातर हिस्सों पर सूरज की रोशनी नहीं पड़ती. इस वजह से वहां का तापमान माइनस 248 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है.

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