भोपाल। केन-बेतवा लिंक परियोजना के पानी बंटवारे को लेकर मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश के लंबे समय से जारी विवाद को निपटारे का जिम्मा अब जज के रुप में राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण सुलझाएगा। इस विवाद को सुलझाने के लिए अब स्वयं प्रधानमंत्री को आगे आना पड़ा है। इस मामले में मोदी ने अभिकरण को दोनों राज्यों की पानी की जरूरत का आंकलन कर रिपोर्ट तैयार करने का जिम्मा सौंपा है। इसका अध्ययन अभिकरण द्वारा नवंबर 2020 से मई 2021 के बीच सात महा के दौरान किया जाएगा।
इसके आधार पर ही तय होगा कि उत्तर प्रदेश को 900 एमसीएम (मिलियन क्यूबिक मीटर) पानी मिलेगा या नहीं। इस बीच दोनों राज्यों में अपनी ही पार्टी की सरकार होने की वजह से विवाद को सुझलाने के प्रयास शुरु कर दिए गए हैं।
मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस मामले में कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से फोन पर चर्चा की है। बताया जा रहा है कि इस मामले में पर चर्चा के लिए जल्द ही उप्र के जल संसाधन मंत्री डॉ. महेंद्र सिंह मप्र आ रहे हैं। यहां पर वे जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट के साथ बैठक कर इस मसले पर चर्चा करेंगे। दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारे के विवाद की वजह से यह परियोजना आगे नहीं बढ़ पा रही है। बीते दो साल से केंद्र सरकार भी इस विवाद को हल करने का प्रयास कर रही है। यही वजह है कि अब इस मामले में राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण को लगाया गया है। गौरतलब है कि इस मामले में चार दिन पहले केंद्रीय जल संसाधन विभाग और केंद्रीय जल विकास अभिकरण के अधिकारियों ने प्रदेश के जल संसाधन विभाग के अधिकारियों से भी चर्चा कर चुके हैं। यह परियोजना नदी जोड़ो अभियान के तहत मंजूर की गई थी।
यह है विवाद की वजह
करीब डेढ़ दशक पहले 2005 में दोनों राज्यों के बीच इस परियोजना उसे मिलने वाले पानी को लेकर समझौता हुआ था। उस समय उत्तर प्रदेश को रबी फसल के लिए 547 और खरीफ फसल के लिए 1153 एमसीएम पानी देना तय हुआ था। इसके तेरह साल बाद अप्रैल 2018 में उत्तर प्रदेश की मांग पर रबी फसल के लिए 700 एमपीएम पानी आवंटन की सहमति दी गई थी। वहीं, केंद्र ने उत्तर प्रदेश को 788 एमसीएम पानी देना तय किया। इसके बाद जुलाई 2019 में उत्तर प्रदेश ने फिर से पानी की मांग बढ़ा दी। अब उप्र 930 एमसीएम पानी चाहता है, जबकि मप्र इतना पानी देने के लिए तैयार नहीं है।