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क्या है श्रीलंका में अदाणी का प्रोजेक्ट, जिस पर मच गया है बवाल? राष्ट्रपति तक को जारी करनी पड़ी सफाई

कोलंबो। भारत के बड़े उद्योगपतियों में शुमार गौतम अदाणी का नाम एक बार फिर चर्चा में है। इस बार अमीरों की किसी लिस्ट में शामिल होने या कमाई के रिकॉर्ड के लिए नहीं, बल्कि विदेश में एक प्रोजेक्ट की वजह से। दरअसल, श्रीलंका के सिलॉन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (सीईबी) के अध्यक्ष ने संसदीय समिति के सामने पेशी के दौरान आरोप लगाया कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस प्रोजेक्ट को अदाणी को दिलाने के लिए राजपक्षे सरकार पर दबाव बनाया था।

चौंकाने वाली बात यह है कि सीईबी के अध्यक्ष एमएमसी फर्डिनांडो ने एक दिन बाद ही अपना बयान वापस ले लिया और एलान किया कि उन्होंने भावना में बहने के बाद मोदी सरकार पर ‘झूठे’ आरोप लगा दिए। उनकी इस सफाई के बाद विवाद के खत्म होने की संभावना थी। लेकिन यह पूरा विवाद कम होने की जगह और बढ़ गया है। सोशल मीडिया पर लगातार ही सवाल उठ रहे हैं कि आखिर वे कौन से प्रोजेक्ट हैं, जिनमें अदाणी के शामिल होने को लेकर विवाद है? यह परियोजनाएं अदाणी को कब मिलीं? इसके अलावा इन परियोजनाओं के प्रस्ताव को लेकर तब सीईबी अध्यक्ष ने क्या कहा था? और आखिर अब अचानक यह विवाद फिर क्यों खड़ा हो गया?

पहले जानें क्या है वह प्रोजेक्ट, जिस पर खड़ा हो गया है विवाद?
पिछले साल दिसंबर में खबर आई थी कि भारत के अदाणी ग्रुप ने श्रीलंका के मन्नार में पवन ऊर्जा परियोजना को विकसित करने में दिलचस्पी दिखाई है। इसके अलावा अदाणी ने पूर्वी प्रांत के जाफना में पूनिरयन में भी एक पवन ऊर्जा परियोजना हासिल किया था। इन दोनों परियोजनाओं के लिए अदाणी ने श्रीलंका के निवेश बोर्ड और इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को प्रस्ताव दिए थे। दोनों प्रोजेक्ट्स से एक गीगावॉट बिजली पैदा करने की योजना बनाई गई थी और इनकी वैल्यू तब एक अरब डॉलर यानी आज की कीमत में 77 अरब रुपये मानी गई थी।

दोनों पक्षों के बीच कब हुआ समझौता?
इसी साल मार्च में सिलॉन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड और अदाणी ग्रीन्स के बीच इस हरित परियोजना को लेकर एमओयू पर हस्ताक्षर हुए थे। हालांकि, इस एमओयू में कहा गया था कि अदाणी इन प्रोजेक्ट के तहत फिलहाल 50 करोड़ डॉलर के खर्च से सिर्फ 500 मेगावॉट की क्षमता तक पवन ऊर्जा का उत्पादन तय करवाएंगे।
मजेदार बात यह है कि श्रीलंका में भारत से सिर्फ अदाणी ग्रुप ही विद्युत परियोजना के लिए काम नहीं कर रहा है, बल्कि सिलॉन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड और नेशनल थर्मल पॉवर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) के बीच भी कुछ समय पहले त्रिणकोमाली के सामपुर में 100 मेगावॉट का सोलर पॉवर पार्क शुरू करने पर समझौता हुआ है।


इन प्रोजेक्ट्स को लेकर फर्डिनांडो ने क्या बयान दिए, फिर कैसे पलटे?
10 जून को एक संसदीय समिति के सामने पेशी के दौरान सीईबी चेयरमैन फर्डिनांडो ने आरोप लगाया था कि पिछले साल 24 नवंबर को श्रीलंका के राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे ने उन्हें दफ्तर बुलाया था और अक्षय ऊर्जा से जुड़ी परियोजनाओं को अदाणी ग्रुप को सौंपने की बात कही थी। फर्डिनांडो ने बताया था कि उन्होंने राष्ट्रपति से सीधे तौर पर कह दिया था कि यह मसला उनके विभाग से नहीं जुड़ा है, क्योंकि यह दो सरकारों के बीच है।
सीईबी चेयरमैन ने दावा किया था कि गोतबाया ने इसी गुप्त चर्चा के बीच उनसे कहा था कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी उन पर प्रोजेक्ट को अदाणी ग्रुप को सौंपने का दबाव बना रहे हैं। हालांकि, अपने बयान के एक दिन बाद ही फर्डिनांडो ने कहा था कि उन्होंने यह आरोप बेवजह बनाए जा रहे दबाव की वजह से लगा दिए थे। सीईबी चेयरमैन ने कहा कि उनका यब बयान पूरी तरह गलत था। वह इसे वापस ले रहे हैं और अपने बयान के लिए बिना किसी शर्त के माफी मांगते हैं।

पहले इस प्रोजेक्ट को लेकर क्या बोले थे सीईबी चेयरमैन?
द संडे मॉर्निंग की रिपोर्ट के मुताबिक, जब अदाणी ग्रुप इन प्रोजेक्ट्स को हासिल करने पर बातचीत कर रहा था, उस दौरान भी सिलॉन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (सीईबी) के चेयरमैन फर्डिनांडो ने भी बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि अदाणी के प्रस्ताव को कैबिनेट कमेटी की मंजूरी भी मिल चुकी है। हालांकि, उन्होंने प्रोजेक्ट के शुरू होने से लेकर इसे मिलने वाली बाकी मंजूरियों के बारे में जानकारी होने से इनकार कर दिया था। फर्डिनांडो ने कहा था कि सीईबी सिर्फ ऊर्जा की खरीदार कंपनी है और हमें प्रोजेक्ट की बाकी डिटेल्स का अंदाजा नहीं है।

भारत के प्रोजेक्ट्स को लेकर विवाद क्यों?
श्रीलंका में अदाणी के प्रोजेक्ट्स और इनमें पीएम मोदी के नाम उछलने का विवाद कोई नया नहीं है। इससे पहले मार्च 2022 में जब दोनों पक्षों के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर हुए थे, तब श्रीलंका के मुख्य विपक्षी दल- समागी जन बलवेगाया (एसजेपी या यूनाइटेड पीपुल्स फोर्स) ने कहा था कि भारत के व्यापारी पिछले दरवाजे से श्रीलंका में एंट्री की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें बिना बोली प्रक्रिया में शामिल हुए प्रोजेक्ट सौंपे जा रहे हैं, जो कि कानून का उल्लंघन है। एसजेपी ने साफ किया था कि गोतबाया राजपक्षे मोदी के दोस्त की मदद करने में जुटे हैं।

इन दोनों ऊर्जा प्रोजेक्ट्स को लेकर ताजा विवाद पिछले हफ्ते ही उठा है। दरअसल, श्रीलंका सरकार ने 2013 में बदले गए विद्युत कानून में संशोधन का प्रस्ताव दिया था। इस संशोधन का मकसद ही ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े प्रोजेक्ट्स के लिए नीलामी प्रक्रिया को खत्म करना है। विपक्ष ने इस संशोधन का विरोध करते हुए कहा कि विद्युत कानून में यह बदलाव अदाणी के प्रोजेक्ट्स को कानूनी वैधता दिलाने के लिए ही किया गया है। हालांकि, श्रीलंकाई संसद में यह संशोधन बहुमत के साथ पारित कर दिया गया। विक्रमसिंघे सरकार का साफ कहना है कि श्रीलंका की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने और इसमें देरी रोकने के लिए यह संशोधन काफी जरूरी था।

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