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नई बीमारियों के खतरे को रोकने के लिए WHO ने बनाई वैज्ञानिकों की टीम

नई दिल्ली: पिछले कुछ सालों में दुनियाभर में कई नई बीमारियां और वायरस (new diseases and viruses) आए हैं, जिन्होंने काफी तबाही मचाई है. अगर पहले से ही इन वायरस के बारे में जानकारी होती तो सैकड़ों जान बचाई जा सकती थी. इसी से सीख लेते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पैथोजन्स (harmful pathogens) की लिस्ट को अपडेट कर रहा है. मौजूदा पैथोजन्स (existing pathogens) की सूची में कई नए नाम भी शामिल करने पर विचार किया जा रहा है. इसके लिए WHO ने वैज्ञानिकों की एक टीम बनाई है. ये टीम नए खतरनाक पैथोजन्स की रिसर्च करेगी, जिससे समय पर इनसे बचाव किया जा सकेगा.

पैथोजन्स का मतलब किसी बीमारी को जन्म देने वाले वायरस, बैक्टीरिया और परजीवी से होता है. डब्ल्यूएचओ द्वारा पैथोजन की पहली सूची 2017 में प्रकाशित की गई थी और अंतिम लिस्ट 2018 में किया गया था. फिलहाल खतरनाक पैथोजन्स कीसूची में कोविड -19, क्रीमियन फीवर, इबोला वायरस, मारबर्ग वायरस , लस्सा फीवर, मार्स सिंड्रोम (MERS), सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS), निपाह, हेनिपाविरल रोग, रिफ्ट वैली बुखार, जीका और x डिजीज को रखा गया है.


विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक अज्ञात पैथोजन को डिजीज एक्स का नाम दिया है. WHO का मानना है कि एक्स डिजीज एक गंभीर अंतरराष्ट्रीय महामारी हो सकती है. इस डिजीज पर रिसर्च प्राथमिकता के साथ की जाएगी. ताकि भविष्य में किसी खतरे से बचाव किया जा सके विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नए पैथोजन और एक्स डिजीज की जानकारी जुटाने के लिए 300 से अधिक वैज्ञानिकों को काम पर लगा रहा है. ये सभी डिजीज x सहित 25 वायरस और जीवाणुओं पर अध्ययन और आगे कि रिसर्च करेंगे. डब्ल्यूएचओ के स्वास्थ्य आपात कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक डॉ माइकल रयान ने कहा कि पहले से ही पैथोजन और वायरस की पहचान होने से इनको टार्गेट करने और टीके विकसित करने में मदद मिल सकती है.

रिसर्च में शामिल डॉ रयान ने कहा कि किसी भी नई बीमारी या महामारी को रोकेने के लिए पैथोजन्स और वायरस को पहले से ही टारगेट करना आवश्यक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि पैथोजन की सूची को अपडेट करने और नई पैथोजन्स पररिस र्च करने का ये काम काफी जरूरी है, इससे भविष्य में खतरनाक बीमारियों से बचाव किया जा सके. इस पूरे रिसर्च को करने के लिए अमेरिकी सरकार, अपने सहयोगियों और इसे संभव बनाने के लिए डब्ल्यूएचओ के साथ काम करने वाले वैज्ञानिकों को धन्यवाद देते हैं.

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