ब्‍लॉगर

आखिर क्यों जरूरी है नागरिकता संशोधन कानून?

– मुनीष त्रिपाठी

मोदी सरकार ने बहुप्रतिक्षित नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है । इसी के साथ देश में अब सीएए लागू हो गया है । हम यहां यह समझने की कोशिश करेंगे आखिर यह क्यों जरूरी है । साल 2020 में देशभर में सीएए के खिलाफ प्रदर्शन हुए थे । इन प्रदर्शनों में कई ऐसे लोग भी थे जिन्हें कानून की कम या गलत जानकारी थी । इसलिए आइए समझते हैं कि सीएए लागू होने से क्या बदलेगा । आगामी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है । इसी के साथ देश में अब सीएए लागू हो गया है । सीएए के अमल में आ जाने के बाद अब बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है । साल 2020 में देशभर में सीएए के खिलाफ प्रदर्शन हुए थे, इसलिए आइए समझते हैं कि सीएए लागू होने से क्या बदलेगा ?


तकनीकी तौर पर सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट यानी सीएए से सिटीजनशिप एक्ट ऑफ 1955 में संशोधन किया गया है । इससे होगा ये कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए उन लोगों को नागरिकता मिल जाएगी जो 31 दिसम्बर,2014 से पहले किसी न किसी तरह की प्रताड़ना से तंग होकर भारत आए थे । इससे इन मुस्लिम देशों के अल्पसंख्यक समुदायों को फायदा होगा जिनमें हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शामिल हैं । भाजपा पार्टी के एजेंडा में सीएए का काफी पहले से जिक्र होता आया है । मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में साल 2016 में इसे लोकसभा में पेश किया गया । यहां से पास होने के बाद इसे राज्यसभा में भेजा गया, लेकिन वहां इसे बहुमत से पास नहीं कराया जा सका । अटकने के बाद इसे संसदीय समिति के पास भेजा गया था । 2019 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो दोबारा बहुमत जीतने के बाद मोदी सरकार बनी । सरकार बनते ही इसे दोबारा लोकसभा में पास किया गया । दो दिन बाद 09 दिसंबर,2019 को राज्यसभा में भी इस पर मुहर लग गई । दोनों सदनों में पास होने के बाद सीएए को 10 जनवरी,2020 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई । हालांकि, इसके लागू में होने में काफी देरी हो गई । इसकी प्रमुख वजह रही देशभर में होने वाले विरोध प्रदर्शन ।

सरकार ने अपने बयान में कहा है कि सीएए के जरिए मिलने वाली नागिरकता वन-टाइम बेसिस पर ही होगी । यानी कि 31 दिसम्बर,2014 के बाद गैरकानूनी तरीके से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता नहीं दी जाएगी । इस कानून के अमल में आने के बाद भारत के किसी भी नागरिक चाहे वो किसी भी धर्म का हो, की नागरिकता को कोई प्रभाव नहीं होगा । सीएए की आवश्यकता इसलिए थी क्योंकि हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन और ईसाई अल्पसंख्यक जो दशकों से भारत में आए और देश में बस गए, वे पूर्व-संशोधित नागरिकता कानून के तहत भारतीय नागरिकता हासिल नहीं कर सकते थे । इसके चलते वो भारतीय नागरिकता के कई लाभों से वंचित थे । संशोधन के बाद उन्हें अब अनिश्चित जीवन नहीं जीना पडे़गा ।

भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के आने के कई कारण थे-उत्पीड़न, भेदभाव, शारीरिक असुरक्षा, जबरन धर्म परिवर्तन का खतरा, इत्यादि । आधिकारिक आंकड़े मुस्लिम बहुल पड़ोसी देशों से बड़े पैमाने पर अल्पसंख्यकों के पलायन की गवाही देते हैं । 1947 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यक, ज्यादातर हिंदू और सिख, आबादी का लगभग 23% थे; आज वो लगभग 5% हैं । हिंदू लगभग 1.65% ही रह गए हैं । इसी तरह 1971 में जब बांग्लादेश बना, तब हिंदू आबादी का 19% थे. 2016 में वे केवल 8% ही थे। जबकि भारत में अल्पसंख्यकों की संख्या दोगुना हुई है. 1947 में भारत में मुसलमानों की संख्या 9.2 करोड़ थी. आज उनकी अनुमानित संख्या लगभग 20 करोड़ है जो लगभग 14% से अधिक है ।

बांग्लादेश के प्रसिद्ध लेखक सलाम आजाद ने अपनी पुस्तक. ” बांग्लादेश से आखिर क्यों भाग रहे है हिन्दू” में बांग्लादेश के हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों और पलायन पर तथ्यात्मक विवेचन किया है। उन्होंने जो आंकड़े दिए हैं वे बांग्लादेश के हिंदुओं की हकीकत बयां करते है । उन्होंने लिखा कि बांग्लादेश के मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों के बेतहाशा अत्याचारों के चलते 475 हिन्दू, बौद्ध प्रतिदिन बांग्लादेश छोड़ने के लिये बाध्य होते है अर्थात एक साल में लगभग 1,73,000 हिन्दू, बौद्ध बांग्लादेश से पलायन कर जाते है ।आजाद ने अपने शोध से ये आंकड़े 1974 से 1991 के बीच अवधि के लिये जारी किये हैं । 1991 के बाद के वर्ष में भी बांग्लादेश के हिंदुओ , बौद्ध अनुयायियों के हालात ठीक नहीं हुए है। 06 दिसम्बर 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा गिर जाने के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं के 28,000 घरों, 2200 व्यापारिक प्रतिष्ठानों और 3600 मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया था। इन सबके बावजूद तत्कालीन खालिदा जिया सरकार ने हिंदुओं पर अत्याचार और पलायन को रोकने के लिये कोई कदम नहीं उठाए। ये भी सही है कि खालिदा जिया सरकार में शेख हसीना सरकार के मुकाबले अल्पसंख्यकों पर कुछ ज्यादा ही अत्याचार होते हैं।

2001 के बांग्लादेश के आम संसदीय चुनाव में भी हिंदुओं पर जमकर हमले हुए थे जिसके कारण हजारों हिन्दू अपनी जानमाल की रक्षा के लिए पश्चिम बंगाल के कई जिलों में शरण लेनी पड़ी थी। 2014 में भी बांग्लादेश में हिंदुओं पर भयावह अत्याचार हुए थे । मौजूदा समय में बांग्लादेश की कुल आबादी में लगभग सवा करोड़ हिन्दू हैं, यदि हिंदुओं का पलायन इसी तरह न हुआ होता तो आज बांग्लादेश में लगभग सवा तीन करोड़ हिन्दू नागरिक होते। बांग्लादेश सरकार के 2014 के जनसांख्यकीय आंकड़ो के अनुसार 1941 में पूर्वी पाकिस्तान अब बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी लगभग 28 प्रतिशत थी, 1951 में यह घटकर 22 प्रतिशत हुई । वर्ष 1961 में 18.5 प्रतिशत, 1974 में 13.5 प्रतिशत, 1981 में 12.13 प्रतिशत,1991 में 11.6 प्रतिशत, 2001 में 9.6 प्रतिशत और 2011 में यह घटकर मात्र 8.2 प्रतिशत रह गई । आंकड़े बताते है कि बांग्लादेश की आबादी में हिंदुओं और बौद्ध लोगों की लगातार जनसंख्या घट रही है । लेखक सलाम आजाद लिखते है कि बांग्लादेश के हिंदुओं के लिए तीन ही रास्ते बचे हैं – या तो वे आत्महत्या कर लें या धर्मांतरण कर लें या फिर देश छोड़ कर पलायन कर जाएं । पाकिस्तान और अफगानिस्तान में हिंदुओं, बौद्धों, सिखों के हालात तो बांग्लादेश से बहुत ज्यादा खराब हैं ।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।).

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