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अगले दो साल में बड़ी संख्या में महिलाएं छोड़ सकती हैं नौकरी, रिपोर्ट में आई बात सामने

नई दिल्ली । अगले दो साल में काम का दबाव या अत्यधिक काम का बोझ (बर्नआउट), कार्य घंटों में लचीलेपन की कमी की वजह से बड़ी संख्या में महिला कर्मचारियों (female employees) ने नौकरी (job) छोड़ने की योजना बनाई है। एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर कोविड-19 महामारी के बीच बड़ी संख्या में कर्मचारियों के नौकरी छोड़ने के मामले सामने आ रहे हैं। विशेष रूप से महिला कर्मचारियों द्वारा लगातार नौकरी छोड़ने का सिलसिला जारी है।


डेलॉयट की ‘महिलाएं@कार्य-2022: एक वैश्विक परिदृश्य’ रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 56 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि एक साल पहले की तुलना में उनके तनाव का स्तर ऊंचा था और करीब आधी महिलाएं काम के बोझ की वजह से थकावट महसूस कर रही हैं। यह रिपोर्ट नवंबर, 2021 से फरवरी, 2022 के बीच 10 देशों में सर्वे पर आधारित है। इसमें 5,000 महिलाओं के विचार लिए गए। इनमें से 500 महिलाएं भारत की हैं।

सर्वेक्षण में शामिल आधी से ज्यादा महिलाएं अगले दो वर्षों में अपने नियोक्ता को छोड़ना चाहती हैं। इनमें से केवल नौ प्रतिशत महिलाओं ने ही अपने वर्तमान नियोक्ता के साथ पांच साल से अधिक समय तक काम करने की योजना बनाई है।

बर्नआउट यानी काम का बोझ प्रमुख वजह है जिसकी वजह से महिलाएं नौकरियां बदलना चाहती हैं। करीब 40 प्रतिशत ने कहा कि वे सक्रिय रूप से नई कंपनी की तलाश कर रही हैं।

रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि अधिकांश महिलाओं ने काम के दौरान गैर-समावेशी व्यवहार की बात कही। हालांकि, ज्यादातर ने नियोक्ताओं को इसकी जानकारी नहीं दी। रिपोर्ट के मुताबिक, एक साल पहले की भावनाओं की तुलना में कई महिलाएं अपने करियर की संभावनाओं के बारे में कम आशान्वित महसूस करती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, हाइब्रिड कार्य वातावरण में काम करने वाली लगभग 60 प्रतिशत महिलाओं को लगता है कि उन्हें महत्वपूर्ण बैठकों से बाहर रखा जाता है।

डेलॉयट इंडिया के भागीदार और विविधता, समानता और समावेशन प्रमुख मोहनीश सिन्हा ने कहा, ”हाइब्रिड मॉडल को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ परिदृश्य के रूप में देखा गया है, जिससे लोगों को घर से और कार्यालय से काम करने की सुविधा मिलती है। सर्वे से हमें पता चला है कि महिला पेशेवरों को दोनों ही स्थितियों में नुकसान हो रहा है। साल-दर-साल उनकी देखभाल की जिम्मेदारियों के साथ तनाव भी बढ़ रहा है। ”

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