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विश्व किडनी दिवस विशेष : किडनी समस्या पर हो विमर्श

– डा. रमेश ठाकुर

किडनी से संबंधित बढ़ती समस्या चिंता का विषय है। भले-चंगे इंसान की किडनी फेल होने की बात अचानक चिकित्सीय जांच में सामने आना अब आम बात हो गई है। कई ऐसे उदाहरण हैं, जब थोड़ी-सी तबियत खराब होने पर मरीज अस्तपाल गए हों और एकाध घंटे की चिकित्सीय जांच के बाद उन्हें यह बताया गया हो कि उनकी किडनी फेल हो गई है। कारण भी ऐसा, जिस पर एकाएक विश्वास नहीं होता। दूषित पानी पीना, दर्द की गोली खाना, ठंडा-कोला का सेवन आदि। ये मौजूदा ऐसे मौलिक कारण हैं जिससे हमें सावधान रहना होगा। क्योंकि किडनी शरीर का अति महत्वपूर्ण पार्ट है। बिना उसके शरीर काम नहीं कर सकता। इसलिए इसके बचाव के सभी जरूरी सावधानियों को बरतना होगा।

विश्व किडनी दिवस को एक वैश्विक स्वास्थ्य जागरुकता अभियान से जोड़ा गया है। इस दिवस को मनाने के कई कारण हैं। साल 2006 में इस दिवस की घोषणा किडनी के बचाव व उसके महत्व पर केंद्रित और दुनिया भर में किडनी रोग और इससे जुड़े स्वास्थ्य की आवृत्ति-प्रभाव को कम करने के प्रति जागरुकता फैलाने के मकसद से हुई थी। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ किडनी फाउंडेशन की रिपोर्ट पर गौर करें तो प्रत्येक 12वां व्यक्ति कहीं न कहीं गुर्दे की बीमारी से ग्रस्त है। गुर्दे में संक्रमण इतनी तेजी से फैल रहा है जिसे चिकित्सा विज्ञान भी रोकने में असफल है। असफल इसलिए है क्योंकि इसका बचाव खुद मरीज को ही करना होता है। मुख्यतः किडनी इंफेक्शन से प्रभावित होती है।

एक जमाना था, जब किडनी खराब होने का एक ही कारण बताया जाता था, अत्यधिक शराब का सेवन। लेकिन शराब से कहीं ज्यादा किडनी अब दूसरे कारणों से खराब हो रही हैं। किडनी में पथरी का होना आम बात हो गई है। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ किडनी फाउंडेशन ने कुछ ऐसे राज्यों को चिन्हित किया है जहां किडनी के मरीज सबसे ज्यादा हैं और चिंता का विषय भी। झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तरी महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात व राजस्थान को सबसे ज्यादा प्रभावित बताया है। रिपोर्ट ने वहां के लोगों का दूषित पानी पीना, गर्मी की अधिकता से किडनी में इन्फेक्शन को मौजूदा समय का मुख्य कारण बताया है। किडनी की बीमारी कोई उम्रदराज लोगों में ही नहीं फैल रही, बल्कि छोटे-छोटे बच्चों में भी ये समस्या आम हो गई है।

किडनी को बचाना और सुरक्षित रखना स्वयं के हाथों में है। लेकिन आज भागदौड़ भरी जिंदगी में हम अपनी सेहत के प्रति इतने लापरवाह हो गए हैं कि संभावित खतरों से भी अज्ञान रहते हैं। ग्रस्त होने पर किस्मत को दोष देने लगते हैं। जबकि, किस्मत की भूमिका मात्र मिथ्या है। देखा जाए जो भारतीय लोग अन्य मुल्कों के मुकाबले सहनशीलता और बीमारी में अंतर किए बगैर जीते हैं जिसका परिणाम यह होता है कि शरीर सामान्य रूप से स्वस्थ नहीं रह पाता। जबकि, दूसरे मुल्कों में लोग सावधानियां हमसे ज्यादा बरतते हैं। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ किडनी फाउंडेशन के अधीन 66 देश हैं जिसमें सबसे ज्यादा किडनी से प्रभावित एशियाई देश हैं। श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश और भूटान की स्थिति तो हिंदुस्तान से भी ज्यादा खराब है। वहीं, पहाड़ी मुल्क नेपाल के हालात फिर भी संतोषजनक हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक जो पहाड़ी क्षेत्रों का पानी पीते हैं उनकी किडनी एकाएक खराब नहीं होती। वह कच्चा पानी होता है जो किडनी और शरीर के दूसरे अंगों पर बुरा प्रभाव नहीं डालता। प्यूरिफायर यानी आरओ पानी को किडनी का दुश्मन बताया गया है क्योंकि आरओ पानी में मिनरल्स खत्म हो जाते हैं। प्यूरीफायर पानी के लगातार सेवन से हृदय संबंधी बीमारियां, थकान, मानसिक कमजोरी और मांसपेशियों में ऐठन या सिरदर्द जैसे भी कई रोग हो रहे हैं। अब मजबूरी ये है कि दिल्ली जैसे बड़े शहरों में प्यूरिफायर पानी पीना मजबूरी भी है। क्योंकि महानगरों में जमीन का ताजा पानी नसीब नहीं होता है। ट्यूबवेल आदि पर प्रतिबंध है। नगर निगम का पानी काफी हद तक सुरक्षित है, लेकिन वह समय से और जरूरत के मुताबिक मुहैया नहीं हो पाता।

बात 2009 की है जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने प्यूरीफायर पानी पर रोक के आदेश दिए थे। तब केंद्र सरकार ने इसपर पॉलिसी बनाने को हामी भी भरी थी। लेकिन बात ज्यादा आगे नहीं बढ़ी। ठंडे बस्ते में चली गई। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सरकार को चेताते हुए कहा कि पीने के पानी में टीडीएस की मात्रा 500 मिलीग्राम से कम होने पर आरओ पर बैन लगाना चाहिए। यानी जिन जगहों में ये मात्रा मानक से कम है, वहां के लोग आरओ का इस्तेमाल ना करें। लेकिन आज बोतलबंद पानी के क्षेत्र में बड़ी-बड़ी कंपनियां सालाना करोड़ों-अरबों का व्यापार करती हैं। इस कारण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की बात आई-गई हो गई। हालांकि साल 2020 में केंद्र सरकार ने पानी को लेकर पर्यावरण मंत्रालय को नए सिरे से मसौदा बनाने को कहा है। पानी की पॉलिसी में बदलाव करने का भी फरमान सुनाया है।

बहरहाल, किडनी के बढ़ते मामलों को देखते हुए जिम्मेदारी हुकूमत के कंधों पर है। किडनी फेल होने के कारणों पर गंभीरता से विचार कर उनका समाधान निकालना ही होगा। इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ किडनी डिसीजेस और इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी प्रत्येक वर्ष इसलिए किडनी दिवस मनाती हैं ताकि किडनी के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाई जाए जिससे लगातार बढ़ रही किडनी डिसीज को रोका जाए।

वैसे, किडनी निष्क्रिय होने के और भी कई कारण हैं लेकिन मूल कारण जो हम भारतीयों में है, वह हमारी लापरवाही या उपचार की व्यापक व्यवस्था को नहीं अपनाना होता है। वर्तमान में उपचार की तो व्यापक व्यवस्था दुरुस्त है। लेकिन हमारी लापरवाही अभी भी कम नहीं हो रहीं। गुर्दे में पथरी होना, गुर्दे का कैंसर और गुर्दे का निष्क्रिय होना है। इन तीनों परिस्थितियों में समय रहते अगर उपचार करा लिया जाए तो किडनी सुरक्षित किया जा सकता है। किडनी को सहजने के लिए हमें अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत होना होगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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