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प्रदोष व्रत के दिन ऐसे करें भगवान शिव की आराधना, दूर हो जाएंगी परेंशानीया

एकादशी की तरह ही प्रदोष का व्रत भी हर महीने में दो बार त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है. ये व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है. इस बार 26 जनवरी को मंगलवार के दिन त्रयोदशी तिथि पड़ रही है. मंगल को भौम भी कहा जाता है, इसलिए इस प्रदोष को भौम प्रदोष कहा जाएगा.

कर्ज से मुक्ति दिलाने और स्वास्थ्य संबन्धी परेशानियों को दूर करने के लिए भौम प्रदोष का व्रत रखा जाता है. मान्यता है कि इसे रखने से दो गायों को दान करने का पुण्य प्राप्त होता है. लेकिन प्रदोष का व्रत एक बार में 11 या 26 प्रदोष तक ही रखा जाता है. इसके बाद उद्यापन कर देना चाहिए तभी इसका लाभ मिल पाता है. अगर आप भी इस व्रत का उद्यापन करने का सोच रहे हैं तो यहां जानिए उद्यापन की विधि.

उद्यापन विधि
प्रदोष व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर करें. उद्यापन से एक दिन पहले श्री गणेश का पूजन किया जाता है. रात में जागरण कर कीर्तन करें. सुबह जल्दी उठकर मंडप बनाएं. मंडप को वस्त्रों और पांच रंगों की रंगोली से सजाकर तैयार करें. प्रसाद में खीर बनाएं. इसके बाद वहां एक चौकी पर भगवान की प्रतिमा रखें. भगवान को याद करते हुए चंदन, पुष्प, अक्षत, दक्षिणा वगैरह अर्पित करें. भौम प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें इसके बाद ओम नमः शिवाय मंत्र का कम से कम 108 बार रुद्राक्ष की माला से जाप करते हुए प्रसाद की खीर से आहुति दें. फिर भगवान शिव की आरती करें. पूजा के अंत में गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराकर प्रसाद बांटें और दक्षिणा दें.


ये है व्रत कथा
प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी. एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था. शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था. उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हो गई थी. ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन पोषण किया.

कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई. वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी. ऋषि की आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया.

एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई. ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे. गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए. कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया. दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता को बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है. भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया.

इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया. यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था.स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती.

नोट– उपरोक्‍त दी गई जानकारी व सूचना सामान्‍य उद्देश्‍य के लिए दी गई है। हम इसकी सत्‍यता की जांच का दावा नही करतें हैं यह जानकारी विभिन्‍न माध्‍यमों जैसे ज्‍योतिषियों, धर्मग्रंथों, पंचाग आदि से ली गई है । इस उपयोग करने वाले की स्‍वयं की जिम्‍मेंदारी होगी ।

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