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12 सरकारी बैंकों से 20 हजार करोड़ की धोखाधड़ी, नंबर 1 पर एसबीआई

September 21, 2020


नई दिल्ली। सरकारी बैंकों में तीन महीने के दौरान करीब 20 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई है। सूचना के अधिकार (आरटीआई) में इसका खुलासा हुआ है। इसके मुताबिक, 2020-21 की अप्रैल-जून तिमाही में 12 सरकारी बैंकों में 19,964 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के 2,867 मामले सामने आए। संख्या के लिहाज से देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई में सर्वाधिक 2,050 मामले पाए गए, जिसमें उसे 2,325.88 करोड़ रुपये की चपत लगी।
मूल्य के हिसाब से बैंक ऑफ इंडिया (बीओआई) को सबसे ज्यादा 5,124.87 करोड़ रुपये का झटका लगा। इसमें धोखाधड़ी के 47 मामले सामने आए। आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने सूचना के अधिकार के तहत आरबीआई से इस संबंध में जानकारी मांगी थी। इस पर केंद्रीय बैंक ने कहा, बैंकों की ओर से दिए गए ये शुरुआती आंकड़े हैं। इनमें बदलाव या सुधार की गुंजाइश है।
यूनियन बैंक को सबसे कम झटका…
बैंक मामले चपत (करोड़ में)
केनरा बैंक 33 3,885.26
बैंक ऑफ बड़ौदा 60 2,842.94
इंडियन बैंक 45 1,469.79
इंडियन ओवरसीज बैंक 37 1,207.65
बैंक ऑफ महाराष्ट्र 9 1,140.37
पंजाब नेशनल बैंक 240 270.65
यूको बैंक 130 831.35
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया 149 655.84
पंजाब एंड सिंध बैंक 18 163.3
यूनियन बैंक 49 46.52
पिछले साल 28 फीसदी बढ़े मामले
आरबीआई के हाल के आंकड़ों के मुताबिक, 2019-20 के दौरान बैंकों और वित्तीय संस्थानों में धोखाधड़ी के मामलों में 28 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, जबकि मूल्य के लिहाज इसमें 159 फीसदी का इजाफा हुआ है। पिछले वित्त वर्ष में धोखाधड़ी के कुल 8,707 मामले सामने आए, जिसमें 1.85 लाख करोड़ की चपत लगी।
इस दौरान बैंकों और वित्तीय संस्थानों के साथ सबसे ज्यादा धोखाधड़ी लोन पोर्टफोलिया में हुई। पिछले वित्त वर्ष के दौरान धोखाधड़ी की कुल रकम का 76 फीसदी हिस्सा शीर्ष-50 कर्ज लेने वाले लोगों ने किया। हालांकि, इस दौरान ऑफ-बैंलेंस शीट और फॉरेक्स लेनदेन जैसे दूसरे बैंकिंग क्षेत्रों में धोखाधड़ी में कमी देखने को मिली।
धोखाधड़ी का पता लगाने में लगे दो साल
आरबीआई के मुताबिक, 2019-20 के दौरान बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों में धोखाधड़ी होने और उसका पता चलने का औसत समय दो साल रहा। इसका मतलब है कि धोखाधड़ी होने की तारीख और पकड़ में आने के समय के बीच 24 महीने का अंतर रहा। वहीं, 100 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी के मामले में और ज्यादा समय लगा। ऐसे मामलों को पकड़ने में औसतन 63 महीने का समय लगा है। इनमें कई खाते काफी पुराने थे।

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