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APP-AIMIM-TMC का जनाधार बढ़ा, कांग्रेस के कमजोर होने का मिल रहा फायदा

November 24, 2022

नई दिल्ली। गुजरात विधानसभा चुनाव (gujarat assembly election) के लिए भाजपा-कांग्रेस (BJP-Congress) के साथ आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) ने भी पूरी ताकत झोंख रखी है। इसके साथ एआईएमआईएम (AIMIM) भी ताल ठोक रही है। ऐसे में यह बहस तेज हो गई है कि क्या देश में नया सियासी विकल्प (new political option) उभर रहा है और क्या इन पार्टियों का तीसरी शक्ति के तौर पर उदय हो रहा है।

मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का जनाधार धीरे-धीरे कम हो रहा है। पार्टी की सिर्फ छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सरकार बची है। वहीं, कुछ वर्षों में आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का विस्तार तेजी से हुआ है। आप ने पंजाब में कांग्रेस को शिकस्त देकर जीत दर्ज की। वहीं, एआईएमआईएम ने बिहार में महागठबंधन को चोट पहुंचाई।


कुछ वर्षों पहले तक बसपा ने तेजी के साथ विस्तार किया था। 2022 में यूपी सहित पांच राज्यों में हुए चुनाव में बसपा तीन राज्यों में सिर्फ चार सीट हासिल कर पाई और जनाधार बचाए रखने में विफल रही। दूसरी तरफ, आप ने तेजी से अपना जनाधार बढ़ाया। पार्टी की दिल्ली और पंजाब में सरकार है। वहीं, गुजरात में पूरी ताकत से लड़ रही है। ऐसे में कांग्रेस को डर है कि आप गुजरात में मुख्य विपक्षी दल न बन जाए। जहां भी तीसरी शक्ति उभरी है, कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं हुई है।

एआईएमआईएम गणित बिगाड़ने में आगे
ओवैसी भी गुजरात चुनाव में पूरी ताकत से प्रचार कर रहे हैं। ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम जीत हासिल करती है या नहीं पर दूसरे दलों का गणित बिगाड़ सकती है। बिहार चुनाव में ओवैसी की पार्टी पांच सीटें जीती थी। वहीं, इस दल ने करीब एक दर्जन सीट पर राजद और कांग्रेस का गणित बिगाड़ दिया था।

जनाधार बढ़ा रही तृणमूल कांग्रेस
तृणमूल कांग्रेस भी बंगाल के बाहर जनाधार बढ़ाने में जुटी है। हालांकि, उसे आप पार्टी और एआईएमआईएम जैसी सफलता नहीं मिली है। तृणमूल का पूरा फोकस पूर्वोत्तर पर है। पार्टी को गोवा चुनाव में खास सफलता नहीं मिली। इस बीच, तृणमूल ने कांग्रेस के कई नेताओं को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल जरूर किया है।

पिछले कुछ वर्षों में कई पार्टियां तेजी से उभरी हैं। विधानसभा चुनाव पर भी यह पार्टियां असर डाल रही हैं। जनता के नजरिए से देखने पर लगता है कि आप विकल्प के तौर पर उभर सकती है। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में ऐसा होते हुए दिखाई नहीं दे रहा।
-डॉ संजय कुमार, प्रोफेसर, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज

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