
नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने कहा कि वीर बाल दिवस की नई परंपरा (New Tradition of Veer Bal Diwas) ने साहिबज़ादों की प्रेरणाओं (Inspiration of Sahibzadas) को नई पीढ़ी तक पहुंचाया (Has taken to the New Generation) । उन्होंने नई दिल्ली के भारत मंडपम में ‘वीर बाल दिवस’ के मौके पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यक्रम में हिस्सा लिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली के भारत मंडपम में ‘वीर बाल दिवस’ के मौके पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, “…आज हम उन वीर साहिबज़ादों को याद कर रहे हैं जो हमारे भारत का गौरव है। जो भारत के अदम्य साहस, शौर्य, वीरता की पराकाष्ठा है। वो वीर साहिबज़ादे जिन्होंने उम्र और अवस्था की सीमाओं को तोड़ दिया। जो क्रूर मुगल सल्तनत के सामने ऐसे चट्टान के सामने खड़े हुए कि मज़हबी कट्टरता और आतंक का वजूद ही हिल गया। जिस राष्ट्र के पास ऐसा गौरवशाली अतीत हो, जिसकी युवा पीढ़ी को ऐसी प्रेरणाएं विरासत में मिली हों वो राष्ट्र क्या कुछ नहीं कर सकता।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “यहां मेरा युवा भारत, संगठन से जुड़े इतने सारे युवा यहां उपस्थित हैं। एक तरह से आप सभी ‘जेन-ज़ी’ हैं। ‘जेन-अल्फा’ भी हैं। आपकी पीढ़ी ही भारत को विकसित भारत के लक्ष्य तक ले जाएगी… उम्र से कोई छोटा या बड़ा नहीं होता। आप बड़े बनते हैं अपने कामों और उपलब्धियों से। आप कम उम्र में भी ऐसे काम कर सकते हैं कि बाकी लोग आपसे प्रेरणा लें । नरेंद्र मोदी ने कहा, “जब भी 26 दिसंबर का ये दिन आता है तो मुझे ये तसल्ली होती है कि हमारी सरकार ने साहिबज़ादों की वीरता से प्रेरित, वीर बाल दिवस मनाना शुरू किया। बीते चार वर्षों में वीर बाल दिवस की नई परंपरा ने साहिबज़ादों की प्रेरणाओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाया है। वीर बाल दिवस ने साहसी और प्रतिभावान युवाओं के निर्माण के लिए एक मंच भी तैयार किया है। हर साल जो बच्चे अलग-अलग क्षेत्रों में देश के लिए कुछ कर दिखाते हैं उन्हें प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। इस बार भी देश के अलग-अलग हिस्सों से आए 20 बच्चों को ये पुरस्कार दिए गए हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “वीर बाल दिवस का ये दिन भावना, “वीर बाल दिवस का ये दिन भावना और श्रद्धा से भरा दिन है। साहिबज़ादा अजीत सिंह, साहिबजादा जुझार सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह, और साहिबजादा फतेह सिंह छोटी सी उम्र में, इन्हें उस समय की सबसे बड़ी सत्ता से टकराना पड़ा। वो लड़ाई भारत के मूल विचारों और मज़हबी कट्टरता के बीच थी। वो लड़ाई सत्य बनाम असत्य की थी। उस लड़ाई के एक और दशम गुरु श्री गुरुगोविंद सिंह जी थे, दूसरी ओर क्रूर औरंगजेब की हुकूमत थी। हमारे साहिबज़ादे उस समय उम्र में छोटे ही थे, लेकिन औरंगजेब को, उसकी क्रूरता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा… लेकिन औरंगजेब और उसके सीपा सालार भूल गए थे कि हमारे गुरु कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं। वे तप, त्याग का साक्षात अवतार थे। वीर साहिबज़ादों को वही विरासत उनसे मिली थी इसलिए भले ही पूरी मुगलिया बाद्शाहत पीछे लग गई लेकिन वे चारों में से एक भी साहिबज़ादे को डिगा नहीं पाए।

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