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15 लाख KM की दूरी तय कर… आखिरकार L-1 पॉइंट पहुंचा Aditya, जानें- इस कारनामे से क्या होगा फायदा

नई दिल्‍ली (New Dehli)। ISRO का Aditya सौर यान 126 दिनों में अंतरिक्ष (space)में 15 लाख किलोमीटर का सफर तय कर L1 प्वाइंट (point)के Halo Orbit में इंसर्ट हो गया है. पीएम मोदी समेत तमाम दिग्गजों (giants)ने इस सफलता (Success)के लिए देशभर के वैज्ञानिकों को बधाई दी. Aditya-L1 के मिशन की लाइफ 5 साल 2 महीने है. जिसमें से 127 दिन खत्म हो चुके हैं. हालांकि ये जरूरी नहीं कि इतने दिन ही काम करे. इससे ज्यादा या कम भी काम कर सकता है.

भारत ने एक बार फिर अंतरिक्ष में इतिहास रच दिया है. पिछले साल अगस्त में मिशन चंद्रयान-3 की सफलता के बाद ISRO ने एक और ऐतिहासिक काम कर दिखाया है. ISRO का Aditya सौर यान 126 दिनों में अंतरिक्ष में 15 लाख किलोमीटर का सफर तय कर L1 प्वाइंट के Halo Orbit में इंसर्ट हो गया है. पीएम मोदी समेत तमाम दिग्गजों ने इस सफलता के लिए देशभर के वैज्ञानिकों को बधाई दी.


इसके साथ ही करीब 400 करोड़ की लागत वाली भारत की पहली सोलर ऑब्जरवेटरी देश समेत पूरी दुनिया के तमाम सैटेलाइट्स को सौर तूफानों से बचाएगी. Aditya-L1 के मिशन की लाइफ 5 साल 2 महीने है. जिसमें से 127 दिन खत्म हो चुके हैं. हालांकि ये जरूरी नहीं कि इतने दिन ही काम करे. इससे ज्यादा या कम भी काम कर सकता है.

इसरो के मुताबिक L1 प्वाइंट के चारों ओर Solar Halo Orbit में कोई भी सैटेलाइट सूर्य पर लगातार नजर रख सकता है. इसमें ग्रहण भी बाधा नहीं बनेगा. इससे वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर उनके प्रभाव को देखने में अधिक लाभ मिलेगा.

अब आदित्य सूरज की स्टडी कर रहे NASA के चार अन्य सैटेलाइट्स के समूह में शामिल हो चुका है. ये सैटेलाइट्स हैं- WIND, Advanced Composition Explorer (ACE), Deep Space Climate Observatory (DSCOVER) और नासा-ESA का ज्वाइंट मिशन सोहो यानी सोलर एंड हेलियोस्फेयरिक ऑब्जरवेटरी है.

सैटेलाइट्स को सौर तूफानों से बचाएगा

मिशन की प्रोजेक्ट डायरेक्टर निगार शाजी के मुताबिक ये मिशन सिर्फ सूरज की स्टडी करने में ही मदद नहीं करेगा बल्कि सौर तूफानों की जानकारी भी देगा, जिससे भारत के पचासों हजार करोड़ रुपये के पचासों सैटेलाइट को सुरक्षित किया जा सकेगा. जो भी देश इस तरह की मदद मांगेगा, उन्हें भी मदद की जाएगी. ये प्रोजेक्ट देश के लिए बेहद जरूरी है.

अब जानते हैं कि आखिर आदित्य-L1 क्या है?

दरअसल, Aditya-L1 भारत की पहली अंतरिक्ष आधारित ऑब्जरवेटरी (Space Based Observatory) है. यह सूरज से इतनी दूर तैनात होगा कि उसे गर्मी तो लगे लेकिन खराब न हो. क्योंकि सूरज की सतह से थोड़ा ऊपर यानी फोटोस्फेयर का तापमान करीब 5500 डिग्री सेल्सियस रहता है. केंद्र का तापमान 1.50 करोड़ डिग्री सेल्सियस रहता है. ऐसे में किसी यान या स्पेसक्राफ्ट का वहां जाना संभव नहीं है.

Lagrange Point यानी L, यह नाम गणितज्ञ जोसेफी-लुई लैरेंज के नाम पर दिया गया है. इन्होंने ही इन लैरेंज प्वाइंट्स को खोजा था. जब किसी दो घूमते हुए अंतरिक्षीय वस्तुओं के बीच ग्रैविटी का एक ऐसा प्वाइंट आता है, जहां पर कोई भी वस्तु या सैटेलाइट दोनों ग्रहों या तारों की गुरुत्वाकर्षण से बचा रहता है.

इस तस्वीर में देखिए कि ISRO का Aditya-L1 कहां पहुंचा है.

क्या करेगा आदित्य-L1 सौर यान?

– सौर तूफानों के आने की वजह, सौर लहरों और उनका धरती के वायुमंडल पर क्या असर होता है.
– आदित्य सूरज के कोरोना से निकलने वाली गर्मी और गर्म हवाओं की स्टडी करेगा.
– सौर हवाओं के विभाजन और तापमान की स्टडी करेगा.
– सौर वायुमंडल को समझने का प्रयास करेगा.

यह भी पढ़ें: ‘भारत ने एक और उपलब्धि हासिल की’, Aditya के L1 प्वाइंट पहुंचने पर बोले PM मोदी

सूरज की स्टडी के लिए क्यों जरूरी है ये मिशन?

– सूरज हमारा तारा है. उससे ही हमारे सौर मंडल को ऊर्जा यानी एनर्जी मिलती है.
– इसकी उम्र करीब 450 करोड़ साल मानी जाती है. बिना सौर ऊर्जा के धरती पर जीवन संभव नहीं है.
– सूरज की ग्रैविटी की वजह से ही इस सौर मंडल में सभी ग्रह टिके हैं.
– सूरज का केंद्र यानी कोर में न्यूक्लियर फ्यूजन होता है. इसलिए सूरज चारों तरफ आग उगलता हुआ दिखता है.
– सूरज की स्टडी इसलिए ताकि उसकी बदौलत सौर मंडल के बाकी ग्रहों की समझ भी बढ़ सके.
– सूरज की वजह से लगातार धरती पर रेडिएशन, गर्मी, मैग्नेटिक फील्ड और चार्ज्ड पार्टिकल्स का बहाव आता है. इसी बहाव को सौर हवा या सोलर विंड कहते हैं. ये उच्च ऊर्जा वाली प्रोटोन्स से बने होते हैं.
– सोलर मैग्नेटिक फील्ड का पता चलता है. जो कि बेहद विस्फोटक होता है.
– कोरोनल मास इजेक्शन (CME) की वजह से आने वाले सौर तूफान से धरती को कई तरह के नुकसान की आशंका रहती है. इसलिए अंतरिक्ष के मौसम को जानना जरूरी है. यह मौसम सूरज की वजह से बनता और बिगड़ता है.

चुनौतियों से भरा था मिशन

आदित्य को L1 प्वाइंट पर डालना एक चुनौतीपूर्ण काम था. इसमें गति और दिशा का सही तालमेल जरूरी था. इसके लिए इसरो को यह जानना जरूरी था कि उनका स्पेसक्राफ्ट कहां था. कहां है. और कहां जाएगा. उसे इस तरह ट्रैक करने के प्रोसेस को ऑर्बिट डिटरमिनेशन (Orbit Determination) कहते हैं. Halo Orbit में डालने के लिए Aditya-L1 सैटेलाइट के थ्रस्टर्स को थोड़ी देर के लिए ऑन किया गया. इसमें कुल मिलाकर 12 थ्रस्टर्स हैं

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