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आंदोलनकारी किसानों का मानसून सत्र में संसद के घेराव का ऐलान

चंडीगढ़। सिंघू बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) (United Kisan Morcha (SKM) at Singhu Border) की बैठक के बाद किसान आंदोलन के नेताओं ने आने वाले दिनों में अपने संघर्ष को तेज करने के लिए कई फैसलों की घोषणा की। आगामी 19 जुलाई से मानसून सत्र शुरू होगा। एसकेएम जुलाई 17 तारीख को देश के सभी विपक्षी दलों को एक चेतावनी पत्र भेजेगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सत्र का उपयोग किसानों के संघर्ष का समर्थन करने के लिए किया जाता है और किसानों की मांगों को सरकार पूरा करे। इसके अलावा 22 जुलाई से प्रति संगठन पांच सदस्य और प्रति दिन कम से कम दो सौ प्रदर्शनकारी संसद के बाहर हर दिन मानसून सत्र की समाप्ति तक विरोध प्रदर्शन करेंगे।

पंजाब यूनियनों द्वारा यह भी घोषणा की गई कि राज्य में बिजली की आपूर्ति के संबंध में स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है, इसलिए मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के ‘मोती महल’ के घेराव के पूर्व घोषित कार्यक्रम को अभी स्थगित किया जाता है। संयुक्त किसान मोर्चा की पिछली बैठक में यह पहले ही तय हो गया था कि डीजल और रसोई गैस जैसी आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों के खिलाफ 8 जुलाई को सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे के बीच देशव्यापी विरोध प्रदर्शन होगा।

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल दिसम्बर 2020 और जनवरी 2021 के महीनों में संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधियों के साथ ग्यारह दौर की औपचारिक वार्ता का हिस्सा थे। मंत्री द्वय कहते रहे हैं कि सरकार बातचीत के लिए तैयार हैं, बशर्ते कि किसान उन प्रावधानों पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं जिनसे उन्हें समस्या है। मंत्री यह भी कह रहे हैं कि सरकार तीन काले केंद्रीय कानूनों को निरस्त नहीं करेगी। किसान पहले ही स्पष्ट रूप से कह चुके हैं कि वे संशोधन को मानने को तैयार नहीं हैं। कहा कि सरकार की मंशा भरोसेमंद नहीं है। किसान जानते हैं कि कानूनों को जीवित रखने से विभिन्न तरीकों से किसानों की कीमत पर कॉरपोरेट्स का समर्थन करने के उद्देश्य के लिए कार्यकारी शक्ति का दुरुपयोग होगा।

इसके अलावा जब एक कानून का उद्देश्य ही गलत हो गया है और यह किसानों के खिलाफ है तो यह स्पष्ट है कि क़ानून के अधिकांश खंड उन गलत उद्देश्यों को पूरा करने के लिए होंगे। सिर्फ इधर-उधर छेड़छाड़ करने से काम नहीं चलेगा। किसानों ने यह भी बताया है कि इन कानूनों को असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक तरीके से लाया गया है। केंद्र सरकार ने उन क्षेत्रों में कदम रखा है जहां उसके पास कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। केंद्र सरकार ने देश के किसानों पर कानून थोपने के लिए अलोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का भी पालन किया। यह सब अस्वीकार्य है। इसलिए किसान इन्हें निरस्त करने की अपनी मांग पर अडिग हैं। दूसरी ओर सरकार ने अब तक एक भी कारण नहीं बताया है कि इन कानूनों को निरस्त क्यों नहीं किया जा सकता है।

सभी सीमाओं पर किसानों के आंदोलन के लिए स्थानीय समर्थन मजबूत और सुसंगत रहा है। उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से एक बड़े ट्रैक्टर काफिले की योजना बनाई जा रही है। जिस तरह स्थानीय समुदायों द्वारा अधिक सामग्री की आपूर्ति की जा रही है, उसी तरह अधिक किसान विरोध स्थलों पर पहुंच रहे हैं। जींद से ग्रामीणों से भारी मात्रा में गेहूं प्राप्त हुआ है। इसमें सिर्फ किसान ही शामिल नहीं हो रहे हैं बल्कि ट्रेड यूनियनों, छात्रों, वकीलों और अन्य कार्यकर्ता भी शामिल हो रहे हैं। पंजाब में विभिन्न शहरी केंद्रों में युवा समूहों द्वारा शाम को यातायात चौराहों पर आयोजित किए जा रहे एकजुटता विरोध एक नियमित दृश्य बन गया है। आज गाजीपुर बॉर्डर पर स्वर्गीय मिल्खा सिंह की स्मृति में किसान मजदूर मैराथन दौड़ का आयोजन किया गया। (एजेंसी, हि.स.)

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