डेस्क: भारत-पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के दौरान चीन अब रणनीतिक घेरेबंदी की नीति पर काम कर रहा है. इसका स्पष्ट उदाहरण हाल ही में सामने आया जब पाकिस्तान और चीन के विशेष दूतों ने अफगानिस्तान का दौरा कर तालिबान सरकार से Belt and Road Initiative के तहत China-Pakistan Economic Corridor पर विस्तार पर बातचीत की.
चीन के कहने पर पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के लिए विशेष दूत मुहम्मद सादिक खान की नियुक्ति की. उन्होंने हाल ही में काबुल का दौरा किया और चीन के विशेष प्रतिनिधि यू शियाओयोंग के साथ अफगान नेताओं से मुलाकात की. इस दौरान तालिबान के गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी और विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से सीधी बातचीत हुई. बैठक में BRI में अफगानिस्तान की भागीदारी, CPEC विस्तार, आर्थिक सहयोग और सुरक्षा साझेदारी जैसे अहम मुद्दों पर सहमति बनी.
यह बैठक तीनों देशों के बीच पांचवें त्रिपक्षीय संवाद की कड़ी थी और इसका उद्देश्य आगामी छठे दौर की तैयारियों, व्यापार बढ़ाने और सुरक्षा तंत्र को मज़बूत करना था. बैठक में तालिबान के गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी ने कहा कि क्षेत्रीय संबंधों को आगे बढ़ाना और आपसी सम्मान के साथ रचनात्मक सहयोग करना अफगानिस्तान की प्राथमिकता है.
CPEC, जो पहले से ही भारत के लिए जियोपॉलिटिकल चुनौती रहा है, पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है. अब अफगानिस्तान तक विस्तार की ओर अग्रसर है. पाक दूत मुहम्मद सादिक ने पुष्टि की कि तीनों देश CPEC को अफगानिस्तान तक विस्तारित करने पर सहमत हुए हैं. इसके लिए वाणिज्यिक सहयोग और निवेश के नए अवसर तलाश रहे हैं. सुरक्षा सहयोग को रणनीतिक साझेदारी में बदलने की दिशा में बढ़ रहे हैं.
CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार भारत को पश्चिमी सीमा पर और अधिक कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने की कोशिश मानी जा सकती है. तालिबान की चीन और पाकिस्तान के करीब जाती नीति भारत के साथ उसके ऐतिहासिक-सांस्कृतिक रिश्तों को कमजोर कर सकती है. सिराजुद्दीन हक्कानी जैसे चरमपंथी नेतृत्व के साथ हुए बैठक यह आशंका बढ़ाती हैं कि CPEC जैसे प्रोजेक्ट्स आतंकी नेटवर्क के लिए आवरण भी बन सकते हैं. BRI को अफगानिस्तान में स्थापित करना चीन को मध्य एशिया के प्राकृतिक संसाधनों तक सीधा रास्ता देगा, जहां भारत की मौजूदगी सीमित है.
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