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सशस्त्र सेना झंडा दिवस सेनाओं के प्रति सम्मान का प्रतीक

नई दिल्ली । जैसे देश की आन-बान और शान का प्रतीक हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है, ठीक उसी तरह देश की सेनाओं का सशस्त्र सेना झंडा होता है। देश की सेनाएं दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हुए जांबाज सैनिकों के प्रति एकजुटता दिखाने के लिये प्रत्येक वर्ष सात दिसम्बर को सशस्त्र सेना झंडा दिवस मनाती हैं।

अपने परिवारों से दूर देश की सुरक्षा रक्षा में तत्पर वीर सपूतों ने न केवल सीमाओं की रक्षा की, बल्कि आतंकवादियों और उग्रवादियों से मुकाबला कर शांति स्थापित करने में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। ऐसे देश के वीर जवानों, शहीदों और भारतीय सशस्त्र सेनाओं के लिये भारत की जनता से धन का संग्रह किया जाता है। इस राशि का उपयोग युद्धों में शहीद हुए सैनिकों के परिवार या हताहत हुए सैनिकों के कल्याण तथा पुनर्वास में सैनिक कल्याण बोर्ड की माध्यम से किया जाता है। राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक का यह फर्ज होना चाहिए कि वह झंडा दिवस कोष में अपना योगदान दें, जिससे हमारे देश की सेना पूरे मनोबल के साथ देश की सुरक्षा करती रहे और सेना का झंडा हमेशा आकाश की ऊंचाइयों को हमेशा छूता रहे।

सशस्त्र सेना झंडा का इतिहास
देश के सैनिकों के सम्मान-गौरव और कल्याण के लिये 07 दिसम्बर, 1949 से शुरू हुआ यह सफ़र आज तक जारी है। देश की आज़ादी के तुरंत बाद सरकार को लगने लगा कि सैनिकों के परिवारों की भी ज़रूरतों का ख्याल रखने की बहुत आवश्यकता है। इसके पीछे सोच थी कि जनता में छोटे-छोटे झंडे बांट कर दान अर्जित किया जाएगा जिसका फ़ायदा शहीद सैनिकों के आश्रितों को होगा। शुरुआत में इसे झंडा दिवस के रूप में मनाया जाता था लेकिन 1993 से इसे ‘सशस्त्र सेना झंडा दिवस’ का रूप दे दिया गया। इस दिवस पर धन-संग्रह सशस्त्र सेना के प्रतीक चिन्ह झंडे को बांटकर किया जाता है। इस झंडे में तीन रंग (लाल, गहरा नीला और हल्का नीला) तीनों सेनाओं को प्रदर्शित करते है। झंडे की ख़रीद से होने वाली आय युद्ध वीरांगनाओं, सैनिकों की विधवाओं, भूतपूर्व सैनिक, युद्ध में दिव्यांग हुए सैनिकों और उनके परिवार के कल्याण पर खर्च की जाती है।

इस तरह से होता है धन का संग्रह
इस दिन देश के नागरिकों को झंडे का एक स्टीकर देकर धन एकत्रित किया जाता है। गहरे लाल व नीले रंग के झंडे के स्टीकर की राशि निर्धारित होती है। लोग इस राशि को देकर स्टीकर खरीदते हैं और उसे पिन से अपने सीने पर लगाते हैं। इस तरह वे शहीद या हताहत हुए सैनिकों के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं। जमा हुई राशि झंडा दिवस कोष में जमा कर दी जाती है। अगर कोई भी अपना योगदान सेना को देना चाहता है तो वह केन्द्रीय सैनिक बोर्ड की वेबसाइट पर जाकर अपना योगदान दे सकते हैं।

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