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Birthday Special : 80 के हुए बॉलीवुड के ‘शहंशाह’, जानिए कैसा रहा उनका ‘महानायक’ बनने तक का सफर

नई दिल्‍ली । अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) का नाम लेने की भी जरूरत नहीं है. इंडियन सिनेमा (Indian cinema) का ‘महानायक’ कह दीजिए, बस… सब समझ जाएंगे कि बात किसकी हो रही है. फिल्म इंडस्ट्री (film industry) में स्टार होते हैं, सुपरस्टार होते हैं और मेगास्टार भी. लेकिन महानायक एक ही हुआ है- अमिताभ बच्चन. और अब मामला ऐसा है कि जब कोई स्टार एकदम स्क्रीनफाड़ परफॉरमेंस देता है तो लोग उसे ‘बच्चन टाइप’ काम कहते हैं.

इस समय जो सिनेमा दर्शक ‘यंग’ की कैटेगरी में आते हैं, उनमें से अधिकतर ने बच्चन साहब की ‘दीवार’ ‘डॉन’ ‘मुकद्दर का सिकंदर’ जैसी सिग्नेचर फिल्में शायद थिएटर में न देखी हों. और न ही उनके फैनडम को उस तरह जिया हो, जैसे अपने बच्चन के लिए थिएटर के बाहर टिकट की लाइन में पुलिस की लाठी खाते किसी आदमी ने जिया होगा.


ये दीवानापन तो फिर भी कई और स्टार्स के लिए भी कभी न कभी जनता में रहा. तो फिर ऐसा क्या है जो बच्चन साहब को महानायक बनाता है? इसका जवाब ट्रेडमार्क अमिताभ बच्चन स्टाइल को स्क्रीन पर फिर से ताजा-ताजा जीवित करने वाली फिल्म KGF में है- ‘फर्क इससे पड़ता है कि कौन पहले नीचे गिरा’! और 50 साल से भी ज्यादा लंबे करियर में बच्चन साहब कभी नहीं गिरे. जब-जब लगा कि इस सितारे की रोशनी कुछ मंद पड़ रही है, वो ऐसा चमका कि उसके बिखरने का अनुमान गढ़ने वालों की आंखें चौंधिया गईं.

इस बात पर लंबी बहस हो सकती है कि अमिताभ बच्चन के करियर ग्राफ में सबसे डिफाइनिंग मोमेंट कौन से हैं. फिर भी हमारे हिसाब से उनके करियर में 8 ऐसे मोमेंट हैं जिनके कारण उन्हें वो उपमा मिली, जिससे दर्शक उन्हें पहचानते हैं. अमिताभ बच्चन के ऑनस्क्रीन सफर के वो मोड़, जिन्होंने उन्हें महानायक बना दिया:

1. आनंद
नवंबर 1969 में ख्वाजा अहमद अब्बास की ‘सात हिंदुस्तानी’ से लोगों ने अमिताभ बच्चन को पहली बार स्क्रीन पर देखा. हालांकि, इससे पहले मई में लेजेंड फिल्ममेकर मृणाल सेन की ‘भुवन शोम’ में उनकी आवाज बतौर सूत्रधार लोगों को सुनाई दी थी, लेकिन पर्दे पर उनका पहला दीदार ‘सात हिंदुस्तानी’ से ही हुआ. फिल्म आई और अमिताभ की एक्टिंग को तारीफ भी मिली. लेकिन एक एक्टर का जो ‘ब्रेकआउट’ मोमेंट यानी स्क्रीन पर खिलने वाला मोमेंट है वो अभी बाकी था.

और वो अमिताभ को मिला ऋषिकेश मुखर्जी की ‘आनंद’ में, डॉक्टर भास्कर मुखर्जी के किरदार से. फिल्म में उस दौर के सुपरस्टार राजेश खन्ना लीड एक्टर थे और आनंद उनकी सुपरहिट लहर में आई फिल्म थी. मगर नए लड़के अमिताभ के काम को देखकर जनता बहुत इम्प्रेस हुई. बड़ा मशहूर किस्सा है कि रिलीज के दिन जब अमिताभ कार में पेट्रोल भरवाने पम्प पर पहुंचे तो कोई उन्हें नहीं पहचानता था. लेकिन फिल्म आने के कुछ दिन बाद जब वो दोबारा वहीं पहुंचे तो लोग उन्हें पहचानने लगे थे.

2. जंजीर
सलीम जावेद की लिखी और प्रकाश मेहरा के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म से पहले अमिताभ कई बार पर्दे पर आए, लेकिन ‘छा गए’ वाली बात बाकी थी. ये कमाल हुआ ‘जंजीर’ से, 1973 में. जनता को एक ‘एंग्री यंगमैन’ नायक मिला जिसकी कहानी के साथ कनेक्ट करते हुए उनके मूड को वो फीलिंग मिली, जिसे आज साउथ फिल्मों के साथ जोड़कर लोग ‘एलिवेशन सिनेमा’ कहते हैं. ये एक ऐसा फिनोमिना था जिसे स्क्रीन पर जीने के बाद ही बाद के एक्टर स्टार बने. इस फिनोमिना का शिखर ही ‘दीवार’ में देखने को मिला. हालांकि, इसी दूर में उन्होंने ‘बेनाम’ और ‘मजबूर’ जैसी फ़िल्में भी कीं, जो तुलना के हिसाब से थोड़ी कम पॉपुलर हुईं.

3. शोले
1975 में इंडियन सिनेमा की सबसे आइकॉनिक फिल्मों में से एक ‘शोले’ रिलीज हुई. इसमें भी अमिताभ के साथ उस दौर के एक बड़े स्टार धर्मेन्द्र थे. मगर ‘शोले’ में अमिताभ के जय में जो ‘मुद्दे की बात करो’ वाला स्टाइल और कॉमिक टाइमिंग की कलाकारी थी, उसने स्क्रीन पर उनका भौकाल बना दिया. और फिर उनके फिल्मी सफर की गाड़ी वाया ‘कभी कभी’ ‘अमर अकबर एंथोनी’ ‘परवरिश’ ‘काला पत्थर’ ‘नसीब’ ‘लावारिस’ वगैरह-वगैरह अगले दशक तक फर्राटे भरती ही चली गई.

4. कुली
1983 में रिलीज हुई मनमोहन देसाई की फिल्म बच्चन फिनोमिना में एक बहुत महत्वपूर्ण फिल्म है. सेट पर अमिताभ के भयानक एक्सीडेंट वाली कहानी तो आपको पता ही होगी. जुलाई 1982 में उनकी चोट ने उन्हें क्रिटिकल हालत में हॉस्पिटल पहुंचा दिया और उनकी स्थिति कुछ समय कोमा वाली रही. बताते हैं कि उन्हें 200 लोगों ने 60 बोतल खून दिया. लेकिन इससे पहले वो लोगों के लिए सुपरस्टार बन चुके थे और लोगों में उन्हें लेकर अलग लेवल का दीवानापन था.

इंडियन जनता की दुआएं अमिताभ को खूब लगीं और जनवरी 1983 में वो वापस शूट पर लौट आए. लोगों के इमोशन का हाल ये था कि फिल्म की एंडिंग बदली गई. पहले कहानी में अमिताभ के किरदार को मरना था, मगर जब रियल लाइफ में अमिताभ ने ही झुकने का प्लान कैंसिल कर दिया, तो स्क्रीन पर उनके किरदार और जनता के प्यार से पंगे कौन ही लेता. मनमोहन देसाई ने एंडिंग बदली और सारी दुनिया का बोझ उठाने वाले ‘कुली’ को जनता ने अपने कंधों पर उठा लिया. इस बार अमिताभ के करियर की गाड़ी पहले से भी तेज स्पीड में निकली और ‘शराबी’ ‘मर्द’ ‘शहंशाह’ बढ़ती ही चली गई. लेकिन ओवरस्पीड चलने के अपने नुकसान होते हैं जो अमिताभ बच्चन के हिस्से भी आए.

5. कौन बनेगा करोड़पति
90s में अमिताभ की फ्लॉप फिल्मों की गिनती कितनी है, इसपर फिल्मी विद्वानों में मतभेद है. मगर ये बहुत अच्छी-खासी है, इसपर सबकी सहमति है. एक तरफ वो ‘तूफ़ान’ ‘अजूबा’ ‘इन्द्रजीत’ जैसी फ्लॉप दे चुके थे. तो दूसरी तरफ ‘शोले’ शान’ और ‘शक्ति’ के डायरेक्टर रमेश सिप्पी के साथ ‘अकेला’ भी नहीं चली. फिल्मचियों में ऐसी मान्यता है कि इस दौर में सलमान, शाहरुख, आमिर की खान तिकड़ी स्क्रीन पर मजबूती से दावा ठोंकने लगी थी. ऊपर से तीन एक्शनबाज लड़के अजय देवगन, अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी भी जलवाफरोश थे.

ऐसे में स्क्रीन पर खुलकर झलकता उम्र का असर, अमिताभ के उस भौकाल पर भारी पड़ रहा था जो उनका सिग्नेचर स्टाइल था. और ऐसे में वो नया ट्राई करने की बजाय पुराने को ही बार बार चमकाने की कोशिश कर रहे थे. इस बीच ‘बड़े मियां छोटे मियां’ और ‘मेजर साहब’ जरूर चलीं, मगर इनपर ‘लाल बादशाह’ ‘सूर्यवंशम’ और बाकी फिल्मों का फ्लॉप होना भारी था.

इसी दौर में उन्होंने एक बिजनेस वाला रिस्क भी लिया और अमिताभ बच्चन कारपोरेशन लिमिटेड (ABCL) कम्पनी बना डाली जो ‘मृत्युदाता’ की नाकामी और मिस वर्ल्ड स्पॉन्सर करने में हुए घाटे के बाद बैठ गई. घाटा इतना सीरियस था कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने बैंक का लोन चुकाए जाने तक उनका बंगला ‘प्रतीक्षा’ और दो फ्लैट बेचने पर रोक लगा दी. इस सब का असर ये हुआ कि काम मिलना भी कम हो गया.

इस सब के बीच अमिताभ ने एक नॉर्मल हेल्थ चेकअप करवाया. पता चला कि ‘कुली’ वाले एक्सीडेंट के टाइम उन्हें जो खून चढ़ा था, उसके साथ ही हेपेटाईटिस बी का वायरस भी उनमें आ गया था, जो चुपचाप अपना काम करता रहा और अब उनका 75 प्रतिशत लीवर डैमेज हो चुका था.

बाकी बचे 25 प्रतिशत लीवर और जीवटता के साथ, फ्रेंच दाढ़ी रखे हुए अमिताभ जुलाई 2000 में टीवी पर नजर आए. ये अच्छे खासे पॉपुलर हो चुके एक ब्रिटिश गेम शो का भारतीय संस्करण था, जिसमें 4 ऑप्शन देकर सवाल पूछे जाते और सही जवाब से ईनाम जीता जाता. टॉप प्राइज था एक करोड़ रुपये और शो का नाम था ‘कौन बनेगा करोड़पति?’ दर्शकों का बच्चन एक नए अवतार में वापसी के लिए तैयार था.

6. मोहब्बतें
1998 में आई ‘मेजर साहब’ को अमिताभ के भौकाल में एक बदलाव की शुरुआत मानी जा सकती है. वो स्क्रीन पर यंग स्टार अजय देवगन के सीनियर ऑफिसर ही नहीं, ऑलमोस्ट पिता की तरह वाले रोल में थे. इस बदलाव को पूरी तरह स्क्रीन पर उतारते हुए साल 2000 में रिलीज हुई ‘मोहब्बतें’ में वो शाहरुख खान की पिछली पीढ़ी वाले रोल में थे. गुरुकुल में बच्चों की शिक्षा कम ट्रेनिंग के ठेकेदार बने नारायण शंकर के किरदार में एक बार फिर से लोगों को एक आया बच्चन मिला, जो कुछ महीने पहले KBC से दिलों पर फिर से पकड़ बनानी शुरू कर चुका था और इस बार स्क्रीन पर जोरदार रोल में नजर आया.

7. ब्लैक
फिल्म इंडस्ट्री की एक दिक्कत है, एक्टर को लोग एक तरह के रोल में ही सोचने लगते हैं. ‘मोहब्बतें’ के बाद ‘कांटे’ ‘आंखें’ और ‘खाकी’ जैसे चुनिन्दा प्रोजेक्ट्स को छोड़ दिया जाए, तो बच्चन साहब कमोबेश एक तरह के बाप-भाई वाले रोल में खूब दिखे. अब वो सपोर्टिंग रोल, कहानी के नैरेटर वगैरह जैसे काम ज्यादा कर रहे थे. इस सिलसिले को तोड़ा जानदार डायरेक्टर संजय लीला भंसाली ने, 2005 में. इस बार अमिताभ के काम का हल्ला अलग लेवल पर हुआ और लोगों ने देखा कि एक्टर में उम्र नहीं, हुनर मैटर करता है.

पहली बार 1990 में आई ‘अग्निपथ’ के लिए ‘बेस्ट एक्टर’ का नेशनल अवॉर्ड पाने वाले बच्चन को 15 साल बाद उनका दूसरा नेशनल अवॉर्ड मिला, भंसाली की फिल्म ‘ब्लैक’ के लिए. उनका भौकाल हिट फिल्मों से लौटना शुरू हुआ था, लेकिन यहां से वो फिर शिखर जैसा मजबूत हुआ.

8. पीकू
‘ब्लैक’ से अमिताभ का जो गेम बदला उसका फायदा ये हुआ कि अब उनको ध्यान में रखकर किरदार लिखे जाने लगे. अब जहां एक तरफ वो ‘कभी अलविदा न कहना’ और ‘भूतनाथ’ जैसी हिट्स में भी थे, वहीं ‘पा’ में अपनी अद्भुत परफॉरमेंस से एक और ‘बेस्ट एक्टर’ का नेशनल अवॉर्ड खींच लाए थे. साथ में ‘आरक्षण’ और ‘सत्याग्रह’ जैसा दमदार काम भी चलता रहा. इस तरह एक दशक और निकल गया.

लेकिन एक बार फिर जब लोगों को लगा कि उम्र के साथ बच्चन साहब थोड़ा सुस्त पड़ रहे हैं, तो अमिताभ के साथ एक डब्बाबंद फिल्म ‘शू बाईट’ बना चुके शूजित सरकार ने फिर से उनके अंदर के एक्टर को चैलेंज किया और इरफ़ान खान, दीपिका पादुकोण के साथ उन्हें ‘पीकू’ में कास्ट कर लिया. इस बार बच्चन साहब के किरदार का नाम फिर से वही था, जो 46 साल पहले ‘आनंद’ में मिला था- भास्कर बनर्जी. 2015 में आई ‘पीकू’ देखकर क्रिटिक्स ने फिर से ‘महानायक’ को सलाम किया और उन्हें एक बार फिर से ‘बेस्ट एक्टर’ का नेशनल अवॉर्ड मिला.

साल 2000 में जब लोग उनका करियर ‘ओवर’ होने की बातें करने लगे थे, उसके बाद से 3 नेशनल अवॉर्ड जीत चुके अमिताभ बच्चन, आजकल टीवी पर ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के 14वें सीजन के साथ मौजूद हैं. 2022 की सबसे बड़ी बॉलीवुड फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ में वो एक महत्वपूर्ण रोल में दिखे और फिलहाल थिएटर्स में ‘गुड बाय’ में नजर आ रहे हैं, जो रश्मिका मंदाना की डेब्यू बॉलीवुड फिल्म है.

साल के अंत में उनकी फिल्म ‘ऊंचाई’ रिलीज होनी है और 2023 में प्रभास, दीपिका पादुकोण के साथ बड़ी फिल्म ‘प्रोजेक्ट के’ में भी उनका बड़ा रोल है. आज जब बच्चन साहब 80 साल के हो रहे हैं, तो इन मोड़ से गुजरा उनकी कामयाबी का कारवां अपने पूरे कद और वजन के साथ कह रहा है- ‘यूं ही नहीं मैं महानायक कहलाता हूं’!

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