इंदौर न्यूज़ (Indore News)

बदनावर में सीधे मुकाबले से भाजपा को फायदा


मंत्री राजवर्धनसिंह दत्तीगांव की आदिवासियों में पैठ और मोघे के अनुभव का फायदा मिलेगा भाजपा को
इन्दौर, संजीव मालवीय।
सांवेर के बाद अगर उपचुनाव में किसी सीट की चर्चा है तो वो है बदनावर की सीट, जो पिछली बार कांग्रेस के खाते में चली गई थी। हालांकि इस सीट का इतिहास रहा है कि अगर कांग्रेस से सीधा मुकाबला होता है तो भाजपा की जीत होती है और त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा को यहां से हार का मुंह देखना पड़ता है। इस बार सभी समीकरण भाजपा के पक्ष में हैं। कांग्रेस से भाजपा में आए मंत्री राजवर्धनसिंह दत्तीगांव की आदिवासी वोट बैंक में पैठ और बदनावर विधानसभा के प्रभारी कृष्णमुरारी मोघे का अनुभव संकेत दे रहा है कि इस बार यहां से भाजपा को प्रचंड जीत मिलेगी।
कभी ग्वालियर की रियासत का ही हिस्सा रही इस सीट पर अभी तक मुकाबला एकतरफा दिख रहा है, क्योंकि कांग्रेस की ओर से कोई दमदार उम्मीदवार यहां नजर नहीं आ रहा है। उपचुनाव की तारीख की घोषणा अगले माह की जा सकती है और जिस तरह से भाजपा ने मालवा की पांचों सीटों का ताना-बाना बुना है, उसमें सांवेर की सबसे ज्यादा चर्चा है और दूसरा नंबर बदनावर की सीट का आ रहा है, जहां अभी कांग्रेस की ओर से सस्पेंस बरकरार है कि उसका उम्मीदवार कौन होगा। लेकिन भाजपा की ओर से मंत्री राजवर्धनसिंह दत्तीगांव उम्मीदवार तय हैं। भाजपा ने जिस तरह से यहां अभी तक संगठनात्मक काम किए हैं, उससे लग रहा है कि ये सीट भाजपा की झोली में जाना निश्चित है। बदनावर विधानसभा में 228 मतदान केन्द्र थे, जो बढक़र 256 हो गए हैं, जिसको इस सीट के चुनाव प्रभारी कृष्णमुरारी मोघे ने 27 सेक्टरों में बांटा और सभी सेक्टरों में बूथ लेवल तक की मीटिंग करने के बाद कार्यकर्ताओं को बूथ की जवाबदारी सौंप दी है। इसमें ये देखा गया है कि जो कार्यकर्ता समय दे सके और काम कर सके उसे ही प्रभारी बनाया गया है। यूं भी दत्तीगांव का आदिवासियों में बोलबाला है और यहां के करीब ढाई लाख वोट में से 60 हजार तो अकेले आदिवासियों के ही हैं। दूसरे नंबर पर यहां राजपूत वोट हैं जो दत्तीगांव को मिलेंगे ही। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब भी कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला हुआ है उसमें जीत भाजपा की ही होती आई है और 2013 के चुनाव में भंवरसिंह शेखावत को इसका फायदा मिला, लेकिन 2018 में भाजपा के बागी के रूप में राजेश अग्रवाल के खड़े होने से ये सीट भाजपा के हाथ से चली गई। हालांकि अब भाजपा को पूरा भरोसा है कि मालवा की सीट में सबसे ज्यादा वोटों से अगर भाजपा कोई सीट जीतेगी तो वो बदनावर की होगी।
कभी चाय की दुकान पर होती थी बैठक
बदनावर के प्रभारी कृष्णमुरारी मोघे के लिए ये क्षेत्र नया नहीं है। वे 1987 में प्रदेश के संगठन मंत्री के नाते यहां जाते रहे हैं, जब बदनावर विधानसभा का अस्तित्व ही नहीं था। धार में चाय की एक गुमटी पर खड़े रहकर पार्टी की मीटिंग हो जाती थी। तब कांग्रेस का इतना प्रभाव था कि यहां भाजपा की बात करना आसान नहीं होता था।
पहली बार मंत्री बनने से क्षेत्र की जनता में उत्साह
भाजपा की जीत का एक दूसरा बड़ा कारण यहां से किसी विधायक का मंत्री बनना है। इस क्षेत्र ने विधायक तो चुनकर भेजे, लेकिन किसी को सरकार में स्थान नहीं मिला। शुरू से ही सिंधिया खेमे के खास रहे दत्तीगांव को भाजपा ने सोची-समझी रणनीति के तहत सरकार में मंत्री बनाया और औद्योगिक नीति एवं निवेश जैसा विभाग दिया। निश्चित ही वे अपने विभाग के माध्यम से इस क्षेत्र में विकास का नया आयाम लाने की कोशिश करेंगे।
जिले की 6 में से 1 सीट है भाजपा के पास
धार जिले में कुल 6 विधानसभा आती हैं, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र में कांग्रेस का ऐसा परचम लहराया कि केवल धार विधानसभा ही भाजपा के खाते में बची, जहां से केन्द्रीय मंत्री रहे वरिष्ठ नेता विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा विधायक हैं। अब बदनावर सीट आ जाती है तो भाजपा के पास दो सीट हो जाएंगी।

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