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मुंतशिर के बहाने याद आए वीर बंदा बैरागी, जब सिखों ने भी छोड़ दिया था उनका साथ!

-डॉ. मयंक चतुर्वेदी

इस समय राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे कई विषयों में से एक फिल्म ‘आदिपुरुष’ की चर्चा भी है । चर्चा के केंद्र में फिल्म से अधिक इसके संवाद लिखने वाले मनोज मुंतशिर हैं, जिनकी रचनाएं पिछले दिनों राष्ट्रीय चेतना जागरण के संदर्भ में देश भर में चारो ओर सुनाई देती रही हैं। अभी भी देश में अनगिनत लोग ऐसे मिल जाएंगे जिनके मोबाइल की रिंगटोन मनोज मुंतशिर के लिखे किसी गाने के मुखड़े से शुरू होती है।

यहां बात फिल्म ‘आदिपुरुष’ में लिखे संवाद पर विवाद की हो या बजरंगबली को उनके द्वारा प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त कहे जाने पर, जो भी हो। फिलहाल सर्वत्र उनसे जुड़ा विवाद इतना गहराया हुआ है कि कल तक उनके जो समर्थक रहे, आज वह उनसे नाराज हैं। उनके लिए जो नहीं कहा जाना चाहिए, वह तक कहा जा रहा है। कुछ हद तक यह स्वभाविक भी लगता है। क्योंकि जिस जनता ने इन्हें नाम और पहचान दी, वही आज उनसे नाराज होने का हक भी रखती है। क्योंकि जिससे उम्मीद ना हो यदि वह ऐसा कुछ कर गुजरे जो उसे नहीं करना था तो स्वभाविक परिणाम ऐसे ही आते हैं।

देखा जाए तो मनोज मुंतशिर इस समय बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं । उनकी कही हर बात के समानार्थी दूसरे अर्थ भी निकाले जा रहे हैं । हर कोई जहां देखो वहां, उन्हें कटघरे में खड़ा करता हुआ नजर आ रहा है । किंतु इस सबके बावजूद कहना होगा कि थोड़ा ठहरिए! समग्रता से विचार करिए हम जो मनोज मुंतशिर को लेकर सोच रहे हैं, उसमें कितनी सच्चाई है? हो सकता है वे तथाकथित सेक्युलरिज्म के शिकार हो गए हों । मुंबई जैसे बड़े महानगर में यह भी हो सकता है कि सिनेमा जगत से जुड़े उनके किसी साथी ने उन्हें नया करने के लिए कहा हो और वह इस फिल्म के अनेक संवादों में कुछ ऐसे संवाद प्रयोगात्मक रूप से लिख गए, जो अब उनकी आलोचना का कारण बने हुए हैं। किंतु क्या उनकी इस एक गलती के कारण से पूर्व में किए गए उनके सभी श्रेष्ठ कार्यों को नजरअंदाज करना ठीक होगा?


वस्तुत: मनोज मुंतशिर के साथ अभी जो घट रहा है उसको लेकर वीर बंदा बैरागी का समय याद आ गया। इतिहास में जो उनके साथ घटा दूसरे अर्थों में ऐसा ही कुछ इस लेखक के साथ हो रहा है । बंदा बैरागी एक ऐसा नाम जिसने उत्तर भारत के क्षेत्र में अपने समय के उस मिथक को तोड़ दिया था कि आतंक के प्रतीक मुगलों पर कभी भी विजय प्राप्त नहीं की जा सकती । बंदा बैरागी ने तत्कालीन समय में हिन्दू एवं सिखों को साथ लेकर एक ऐसी सेना का गठन किया, जिन्होंने न केवल खालसा पंथ की नींव को मजबूत किया बल्कि मुगल सेना को भी सशक्त योजना से जीता था।

आज का पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल समेत पाकिस्तान में जा चुका बहुत बड़ा क्षेत्र इस बात का गवाह है कि बंदा बैरागी अजय योद्धा में रूप में मुगलों के सामने खड़े थे, जिन्हें झुकाना और हराना मुगलों के लिए संभव नहीं हो रहा था। इनका पराक्रम इतना अधिक रहा कि साहबज़ादों की शहादत का बदला इन्होंने लिया। गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा संकल्पित प्रभुसत्ता ‘खालसा राज’ की राजधानी लोहगढ़ में सिख राज्य की नींव रखी। गुरु नानक देव और गुरु गोबिन्द सिंह के नाम से सिक्का और मोहरें जारी की, निम्न वर्ग के लोगों की उच्च पद दिलाया और अपने समय में हल वाहक किसान-मज़दूरों को ज़मीन का मालिक बनाया।

अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध एवं सत्य के लिए सदैव डटकर खड़े रहनेवाले एक वीर योद्धा के रूप में उनका इतिहास में महत्व कितना अधिक है, यह गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर, वीर सावरकर तथा मैथिलीशरण गुप्त द्वारा उन पर लिखी कविताओं से लगाया जा सकता है। वस्तुत: वीर बंदा बैरागी पर इन तीनों ने ही अद्भुत काव्य लेखन किया है । इनमें स्वातंत्र्यवीर सावरकर अपने को कविता तक सीमित नहीं रखते इसके आगे भारतीय इतिहास पर मराठी में लिखी अपनी पुस्तक ”भारतीय इतिहासतील सहा सोनेरी पाने” में बंदा बैरागी की वीरता का वर्णन विस्तार से करते हैं। वे लिखते हैं कि हिंदू इतिहास से उस वीर शहीद का नाम कभी भी नहीं मिटाया जा सकता जिन्होंने मुगलों द्वारा हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों का न केवल विरोध किया, बल्कि उन पर सशस्त्र आक्रमण भी किया।

अपनी पुस्तक में सावरकर लिखते हैं कि ‘तत्त खालसा’ के बैनर तले सिखों का एक बड़ा दल बंदा बैरागी की सेना से अलग हो गया, जिसके कारण उनकी सेना कमजोर पड़ गई। यदि ऐसा न हुआ होता तो युद्ध के परिणाम कुछ और होते। वस्तुत: इस एक घटना के साथ ही आज का मनोज मुंतशिर का वाक़या जुड़ा हुआ है। हुआ यह था कि दिल्ली की गद्दी पर बैठा अब्बुल मुज़फ़्फ़रुद्दीन मुहम्मद शाह फ़र्रुख़ सियर ने देखा कि एक के बाद एक स्थान पर मुगल सेना हार रही है और बंदा बैरागी के नेतृत्व में हिन्दू-सिख सेना हर जगह जीत रही है, तब उसने एक चाल चली, एक पत्र तैयार किया, जिसमें कहा गया कि बंदा बैरागी खुद सिखों का 11वां गुरु बनना चाहता है, जबकि उसने तो अब तक अमृत भी नहीं छका है, ऐसे में वह सिख भी नहीं है। पहले वह अमृत छके तब सिख खालसा सेना का नेतृत्व करे। पत्र की भाषा ही कुछ ऐसी थी कि जिस भी सिख ने उसे पढ़ा, उनमें से कई इस बात पर सहमत दिखे कि बंदा बैरागी पहले अमृत छके।

बादशाह फर्रुख सियर का यह पत्र अमृतसर के जत्थेदारों को भेजा गया था। उस समय वीर बंदा बैरागी मुगलों के समूल नाश के लिए एक बड़ी योजना पर कार्य कर रहे थे और वैशाखी पर प्रतिवर्ष अकाल तख्त पर लगनेवाले अपने दरबार में इसकी घोषणा करनेवाले थे, किंतु इससे पहले इस पत्र ने सिखों को दो भागों में बांट दिया। अमृतसर के कुछ जत्थेदारों ने जब बंदा बैरागी से कहा, पहले अमृत छको, तब उन्हें इस तरह से उनका यह कहना अच्छा नहीं लगा। उन्होंने उन जत्थेदारों से यही कहा था कि गुरु साहब (गोविंद सिंह) ने इस बात के लिए नहीं कहा, सीधे उन्होंने मुगलों से संघर्ष करने के लिए भेज दिया तब तुम कैसे इसके लिए दबाव बना सकते हो ? और उसके बाद इतिहास में सब कुछ दर्ज है। सिखों का एक बड़ा दल बंदा बैरागी की सेना से अलग हो गया था, जो आगे उनके जीवन में मुगल सेना से हार का बड़ा कारण बना।

यह भी समझने की बात है कि ये हार सिर्फ उनकी अपनी नहीं थी, क्योंकि भारद्वाज गौत्री डोगरा परिवार में जन्में वे अपने किसी निजि स्वार्थ के लिए मुगलों से युद्ध करने दक्षिण भारत के नान्देड से चलकर उत्तर भारत के पंजाब क्षेत्र में नहीं आए थे। उनका लक्ष्य उस विचार एवं दृष्टि से लड़ना था, जोकि इस्लाम के आगे सभी को बौना मानकर चलती और उसके नष्ट हो जाने की कामना करती है। सिखों का एक बड़ा दल जब बंदा बैरागी से अलग हो जाता है तब भविष्य में क्या-क्या हुआ यह हर भारतीय को जरूर पढ़ना चाहिए। वास्तव में इतिहास में दर्ज इस कथानक की तरह आज भी यही लग रहा है कि जैसे कभी बंदा बैरागी के साथी दो खेमों में बट गए थे, वैसा ही दृष्य मनोज मुंतशिर के मामले में सर्वत्र दिखाई दे रहा है।

वस्तुत: हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ये वही मनोज मुंतशिर हैं जिन्होंने पूरे देश की रगों में देशभक्ति की भावना जगा देने वाला गीत तेरी मिट्टी में मिल जावां, गुल बनके मैं खिल जावां, इतनी सी है दिल की आरजू (केसरी) और कौन है वो कौन है वो कहां से वो आया, चारों दिशाओं में तेज सा वो छाया, उसकी भुजाएं बदले कथाएं, भागीरथी तेरी तरफ शिवजी चले देख ज़रा ये विचित्र माया(बाहुबली) जैसे गीत लिखे हैं। इसके अलावा भी बहुत कुछ अच्छा है जो उनके खाते में जाता है, इसलिए सिर्फ विरोध नहीं, तथ्यों को समझें, वे भी कहीं इतिहास के वीर बंदा बैरागी की तरह कटुता का शिकार न हो जाएं, यह भी हम सभी को देखना होगा। यदि मनोज मुंतशिर से कोई गलती हुई भी है तो उसे सुधारने का उन्हें अवसर भी दें।

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