प्रयागराज । कुंभ (Kumbh) केवल आध्यात्मिक व सांस्कृतिक पर्व ही नहीं, बल्कि भारत (India) की आजादी में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भाषाविज्ञानी पृथ्वीनाथ पांडेय बताते हैं कि वर्ष 1857 में मुक्ति-मार्ग दिखाने वाले तीर्थपुरोहित ‘प्रयागवाल’ (Prayagwal) ने क्रांतिकारियों का साथ दिया था।
हालांकि, वे सीधे तौर पर युद्ध में शामिल नहीं हुए थे। लेकिन, महारानी लक्ष्मीबाई जब प्रयागराज पहुंचीं थीं, तब एक प्रयागवाल (राजपुरोहित) के घर में उन्होंने शरण ली थी। इसके कारण कुंभ पर्व का भी आजादी की लड़ाई के साथ जुड़ाव हो गया। उन दिनों देश में स्वतंत्रता आंदोलन तेजी में था। वर्ष 1918 में जब महात्मा गांधी कुंभ के अवसर पर प्रयागराज पहुंचे थे, तब उन्होंने संगम में स्नान तो किया ही था, संत-समुदाय संग समागम और तीर्थ यात्रियों के साथ संवाद भी किया था।
इससे अंग्रेज सरकार की चिंता बढ़ गई थी। इसके बाद गांधी के ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ अभियान की सुगबुगाहट हो चुकी थी। अंग्रेजों ने वर्ष 1942 के कुंभ में प्रयागराज आने वाले यात्रियों के रेल व बस टिकट विक्रय पर प्रतिबंध लगा दिया था। क्योंकि, उन्हें आशंका थी कि कहीं कुंभ क्षेत्र क्रांति स्थल न बन जाए।
फिर भी बड़ी संख्या में तीर्थयात्री यहां पहुंचे थे। हालांकि, अंग्रेजों की ओर से कहा गया था कि द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण जापान वहां बमबारी कर सकता है, सो तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए ऐसा किया गया।
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