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ईओडब्ल्यू नहीं सीबीआई जांच कराईये मुख्यमंत्रीजी

अमानक चांवल के भण्डारण एवं वितरण की शिकायत केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय को जाने के बाद उसके निर्देश पर की गई केन्द्रिय जांच, में दोषी पाए जाने पर मप्र सरकार से जवाब तलब के पश्चात जागी प्रदेश की सरकार ने 9 अदने कर्मचारियों एवं 18 राईस मिलर्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिये है। साथ ही इस मामले की जांच ईओडब्ल्यू जो कि प्रदेश सरकार की ही एक जांच एजेंसी है, को जांच का जिम्मा दे दिया है। ईओडब्ल्यू की जांच का अंजाम कहां तक जाता है और इस पर किसका नियंत्रण होता है हम सभी जानते है। ऐसे में ईओडब्ल्यू को जांच का जिम्मा दे देना जांच के परिणाम पर अभी से प्रश्रचिन्ह लगा जाता है। वैसे भी यह मामला एक संगठित अपराध का है जिसमें प्रदेश के अधिकांश जिलों में अनेक विभागों के कर्मचारियों, यथा विपणन संघ, नागरिक आपूर्ति निगम, खाद्य आपूर्ति विभाग, राजस्व विभाग के छोटे कर्मचारियों से लेकर बड़े से बड़े अधिकारियों के साथ ही इस व्यवसाय से जुडे व्यवसायी, मिलर्स, ट्रांसपोर्टर्स तथा सफेदपोश नेता और अन्य राज्यों के व्यापारी तथा अधिकारी भी सम्मिलित है। इसलिये बेहतर होता जांच का जिम्मा केन्द्रीय जांच एजेंसी सीबीआई को सौंपा जाता। क्योंकि चांवल के नाम का यह घोटाला वर्ष 2005 से जबसे कस्टम मिलिंग का प्रावधान लागू हुआ है, बदस्तूर जारी है और इन बीते 15 वर्षो में करोड़ो-करोड़ क्विंटल घटिया चांवल पीडीएस के माध्यम से गरीबों के नाम पर वितरण होकर यही चांवल कई-कई बार रोटेड होकर फिर से मिलर्स के पास वापस पहुंचकर वहां से सरकारी गोदामों में जाकर फिर पीडीएस के माध्यम से बाजार में रोटेड होता रहता है, और किसान की जो धान मिलर्स तक जाती है वह बगैर मिलिंग के ही अन्य राज्यों में निर्यात हो जाती है। इस प्रक्रिया के चलते बीते 15 वर्षो में करोड़ो-करोड़ के भ्रष्टाचार को अरबों का भ्रष्टाचार होना माना जा सकता है। और जब यह इतना बड़ा घोटाला है और वास्तव में सरकार इस विषय में ईमानदार है तो उसे जांच सीबीआई से ही करानी चाहिये। क्योंकि यह एक अंतर्राज्जीय संगठित अपराध का मामला है।
चांवल का यह काला कारोबार चलता कैसे है यह आपको बताते है। किसान से धान, जिले में जो छोटी-छोटी सोसायटियां होती है वह खरीदती है, वहां से वह धान विपणन संघ खरीदता है, विपणन संघ से धान नागरिक आपूर्ति निगम को जाती है। नागरिक आपूर्ति निगम से परिवहन करके इस धान को मिलर्स के यहां कस्टम मिलिंग के लिये (धान को चांवल के रूप में परिवर्तित करने) भेजा जाता है। मिलर्स को जो धान भेजी जाती है, वह किसानों से खरीदी हुई गुणवत्ता वाली होती है, किन्तु जब मिलर्स के यहां से मिलिंग होकर परिवर्तित रूप में चांवल नागरिक आपूर्ति निगम में भंडारों में पहुंचता है तो वह घटिया एवं अमानक स्तर का होता है। वह इसलिये होता है क्योंकि इसमें भी एक खेल अधिकारी और मिलर्स मिलकर करते है जिसमें जो धान मिलर्स को कस्टम मिलिंग हेतु मिलती है वह धान उपर ही उपर अन्य राज्यों में निर्यात हो जाती है तथा मिलर्स के पास जो अमानक तथा घटिया स्तर का चांवल होता है उसे नागरिक आपूर्ति निगम को भेज दिया जाता है।
यहां पर चांवल की जांच का भी प्रावधान है तथा जांच अधिकारी को इस अमानक स्तर के चांवल के एवज में प्रति लाट (250 क्विंटल का होता है) पर 5 से 10 हजार रूपये मिलता है। बालाघाट जिले में प्रतिवर्ष ४२ लाख क्विंटल धान आती है। लगभग देड करोड़ का लेन-देन लाट पास कराने मिलर्स से अधिकारियों को प्रतिवर्ष प्राप्त होता है। यहां ट्रांसपोर्टर्स का भी एक अलग रैकेट होता है वहां भी करोड़ो का आर्थिक घोटाला है। गोडाऊन तथा कैंप तक धान एवं चांवल के भण्डारण के परिवहन में भी गोलमाल होता है।
उक्त घटिया तथा गुणवत्ताहीन चांवल, मिलर्स द्वारा नागरिक आपूर्ति निगम को मार्कफेड के माध्यम से प्रदाय कर दिया जाता है जहां से यह चांवल केन्द्र सरकार की योजना सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीबों को खाने के लिये यह दे दिया जाता है। चूंकि यह चांवल इंसानों के खाने लायक नहीं होता इसलिये, यह गरीब व्यक्ति इस चांवल को कौडिय़ों के मोल वापस बाजार में बेच देता है जहां से यही चांवल मिलर्स मिट्टी मोल खरीद लेते है तथा यही घटिया चांवल फिर कस्टम मिलिंग का बताकर मिलर्स सरकार को दे देते है। ऐसे ही रिसायक्लिंग कर मिलर्स अधिकारियों की मिली भगत से संगठित अपराध करते है।
इन बीते 15 वर्षो में हर वर्ष अमानक चांवल प्रदाय के मामले में उठते रहे है किन्तु आवाज प्रदेश स्तर तक ही उठती रही, छोटी-मोटी कार्यवाही कर इतिश्री कर ली गयी, क्योंकि इसमें सहभागिता तो निलचे स्तर के कर्मचारियों से लेकर भोपाल के सचिव स्तर के अधिकारी के साथ सफेद पोशो की भी रहती है, जिनका संरक्षण ट्रांसपोर्टर्स तथा मिलर्स को मिलता है। चूंकि इस बार पूर्व विधायक किशोर समरिते ने मामला केन्द्र सरकार के गृह विभाग में संज्ञान में ला दिया तो थोड़ा ज्यादा उछल गया। उसमें भी यह कि वर्तमान सत्ताधीश यह कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे है और पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार को खरीदी के लिये दोषी बता रहे है जबकि इस संगठित अपराध का सिलसिला वर्ष 2005 से ही शुरू हो गया था और इन पूरे 15 वर्षो में (बीच में एक वर्ष कमलनाथ का छोडक़र) भाजपा की ही सरकार प्रदेश में रही है और शिवराजसिंह चौहान ही लगभग पूरे समय मुख्यमंत्री रहे हे। पुन:श्च: यह कि इस चांवल घोटाले की जांच का जिम्मा उस ईओडब्ल्यू को दिया गया जो आर्थिक अपराध पर जांच करती है। यह चांवल कांड एक अंतर्राज्जीय संगठित अपराध की श्रेणी का है, इसमें दूसरे राज्यों के मिलर्स, व्यवसायी तथा अधिकारी भी सम्मिलित है इसलिये प्रदेश सरकार को चाहिये कि केन्द्रीय जांच एजेंसी सीबीआई से जांच के लिये केन्द्र सरकार से अनुशंसा करें।
-उमेश बागरेचा, वरिष्ठ पत्रकार

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