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नई किताब में दावाः नेहरू नहीं, जिन्ना अड़े थे भारत-पाक बंटवारे पर

इस्लामाबाद। ब्रिटिश शासन से आजादी से पहले भारत और पाकिस्तान के बंटवारे को लेकर कई तर्क दिए जाते हैं। यहां तक कहा जाता है कि पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू किसी भी तरह से भारत की सरकार चलाना चाहते थे, चाहे बंटवारे से ही क्यों न हो। हालांकि, पाकिस्तानी मूल के स्वीडिश पॉलिटिकल साइंटिस्ट इश्तियाक अहमद ने इससे ठीक उलट दावा किया है। इश्तियाक ने अपनी आने वाली किताब में दावा किया है कि भारत और पाकिस्तान का बंटवारा करने के पीछे मोहम्मद अली जिन्ना की जिद थी।
इश्तियाक ने अपनी किताब ‘Jinnah: His Successes, Failures and Role in History’ में कहा है कि महात्मा गांधी और नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने भारत को एकजुट रखने की बहुत कोशिश की लेकिन पाकिस्तान के कायदे-आजम जिन्ना बंटवारे पर अड़े थे। इश्तियाक का कहना है, ‘जिन्ना ने कांग्रेस को हिंदू पार्टी और गांधी को ‘हिंदू और तानाशाह’ करार देने के लिए हमले का कोई मौका नहीं गंवाया।’
इश्तियाक ने कहा है, ‘मैंने दिखाया है कि जिन्ना ने जब 22 मार्च, 1940 में लाहौर में अपना प्रेसिडेंशल संबोधन दिया और फिर 23 मार्च को रेजॉलूशन पास कराया, उसके बाद जिन्ना या मुस्लिम लीग ने एक बार भी संयुक्त भारत को स्वीकार करने की इच्छा जाहिर नहीं की जबकि फेडरल सिस्टम ढीला था और ज्यादातर ताकतें प्रांतों में थीं।’
‘कांग्रेस के साथ चलने की कोशिश नहीं की’
इश्तियाक के दावे के बाद पाकिस्तानी-अमेरिकी इतिहासकार आयेशा जलाल की थिअरी को चुनौती मिल रही है। प्रोफेसर जलाल की थिअरी के आधार पर 1980 से यह माना जाता रहा है कि जिन्ना ने कांग्रेस के साथ पावर-शेयरिंग समझौते के लिए अपनी भूमिका निभाई थी। इश्तियाक ने इसके उलट दावा किया है, ‘जिन्ना के ऐसे अनगिनत भाषण, बयान और संदेश हैं जिनमें वह पाकिस्तान बनाने के लिए भारत के बंटवारे की बात कर रहे हैं।’ उन्होंने इस बात को भी सही बताया है कि ब्रिटेन बंटवारे के लिए इसलिए तैयार हुआ क्योंकि उसे पता था कि कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त भारत ब्रिटेन के एजेंडा को पूरा नहीं करेगा लेकिन मुस्लिम लीग के नेतृत्व में पाकिस्तान से उसे फायदा होगा।
इश्तियाक ने ट्रांसफर ऑफ पावर डाक्युमेंट्स जैसे प्राइमरी स्रोतों के आधार पर दावा किया है कि ब्रिटेन को डर था कि भारत सोवियत यूनियन के साथ खड़ा हो जाएगा। इश्तियाक ने यह भी दावा किया है कि जिन्ना सिखों और द्रविड़ों के लिए भी अलग राष्ट्र चाहते थे। उन्होंने इस बात को खारिज किया है कि जिन्ना पाकिस्तान को धर्मनिरपेक्ष देश के तौर पर स्थापित करना चाहते थे।
अल्पसंख्यकों पर इसलिए थी निगाह
इश्तियाक ने बताया है, ‘लीग को लगता था कि दोनों देशों में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक होंगे। अगर भारत में मुस्लिमों को हिंदू सताते हैं तो पाकिस्तान के हिंदुओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। जब जिन्ना से 30 मार्च, 1941 को सवाल किया गया कि भारत में रह जाने वाले मुस्लिमों का क्या होगा तो उन्होंने गुस्से में जवाब दिया था कि वह 7 करोड़ मुस्लिमों को आजाद कराने के लिए 2 करोड़ को शहीद करने के लिए तैयार हैं। असल में भारत में 3.5 करोड़ मुस्लिम रह गए थे।’
इश्तियाक ने कहा है कि 1937 के बाद जिन्ना मुस्लिम राष्ट्रवादी हो गए थे जो हिंदू और मुस्लिमों को अलग-अलग राजनीतिक देश तो मानते ही थे, उनका मानना था कि दोनों कभी साथ नहीं आ सकते हैं। यहां तक कि लखनऊ में 1936 में नेहरू के जमींदारी खत्म करने के भाषण से मुस्लिम जमींदारों को झटका लगा था। जब कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के नेताओं को सरकार में शामिल करने से इनकार कर दिया तो जिन्ना ने इसके जरिए भी मुस्लिमों को साधने की कोशिश की।
मुस्लिमों के अंदर भी कई समुदाय
पाकिस्तान बनने के बाद जिन्ना के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो गईं। मुस्लिमों के अंदर भी कई समुदाय थे जिन्हें लेकर विवाद होने लगा। 1950 में अहमदियों को लेकर पैदा हुए विवाद ने 1974 में उन्हें गैर-मुस्लिम करार दिया। शिया-सुन्नी विवाद जनरल जिया उल-हक के शासन में पैदा हो गया। मुस्लिमों के नेतृत्व के लिए ईरान और सऊदी अरब के अयातोल्लाह ने ईरान को चुनौती दे डाली। इससे शिया और सुन्नियों के बीच कट्टरवाद पैदा होने लगा।

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