खरी-खरी

चुनाव आगे बढ़ाए आयोग


नेताओं की भी है मजबूरी… और कोरोना से बचना भी है जरूरी…
लाख तोहमतें लगाएं… चाहे जितनी उंगली उठाएं… लापरवाही के इल्जाम लगाएं… लेकिन नेताओं की यह मजबूरी है… चुनाव है तो मिलना-जुलना भी जरूरी है… यह तो मुमकिन ही नहीं है कि जब जनता सामने आए तो नेता दूरी बनाएं… और दूरी बनाएं तो जनता दूर हो जाए… जहां नेताओं के लिए चुनाव मजबूरी है… वहीं कोरोना से बचाव भी जरूरी है… इसीलिए पक्ष हो या विपक्ष… सरकार हो या विरोधी… सभी को एकमत होना चाहिए… कम से कम ऐसे वक्त में तो चुनाव 4-6 महीनों के लिए टलना चाहिए… एहतियात बरतने की समझाइश देने वाली सरकार हो या मंत्री उनके लिए भी चुनाव जैसी मजबूरी नहीं होना चाहिए… इन्दौर से सांवेर के चुनाव अभियान में जुटे कांग्रेसी नेता प्रेमचंद गुड्डू अभी अस्पताल में संघर्ष कर ही रहे हैं कि उनके प्रतिद्वंद्वी तुलसी सिलावट जहां कोरोना का शिकार हो गए, वहीं चुनाव अभियान में जुटे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से लेकर संगठन मंत्री सुहास भगत और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान अपने मंत्री अरविंद भदौरिया और रामखिलावन पटेल के साथ कोरोना के शिकार हो गए… यह संख्या और भी बढ़ सकती है… सरकार चलाने वाले इन नेताओं का इलाज तो वरीयता में हो जाएगा… उनके लिए तो तमाम तामझाम जुट जाएंगे… लेकिन इन नेताओं के शरीर की महामारी जब उनके समर्थक और साथियों को शिकार बनाएगी… चुनाव प्रचार के लिए जहां-जहां यह नेता गए वहां के लोगों मेें संक्रमण की बड़ी तादाद नजर आएगी… तब उनके इलाज की व्यवस्था कैसे हो पाएगी… चुनावी क्षेत्रों के गली, मोहल्लों, गांवों और चौपालों में जब यह महामारी असर दिखाएगी तो राजनीति चुनाव के पहले ही परास्त नजर आएगी… पूरे देश और प्रदेश को ज्ञान बांटने वाले नेता कोरोना का कटोरा लेकर महामारी फैलाते नजर आएंगे तो लोकतंत्र शर्मसार हो जाएगा… यदि समय रहते चुनाव आगे बढ़ाने का निर्णय सामूहिक रूप से नहीं लिया जाएगा तो समय उन्हें कभी माफ नहीं कर पाएगा… सरकार बचाना सरकार की मजबूरी हो सकती है… 6 माह पहले चुनाव जीतकर आना बिना विधायक मंत्री बने मंत्रियों की जरूरत हो सकती है… लेकिन चुनाव के चलते फैली महामारी यदि तांडव दिखाएगी तो क्या सरकार और क्या मंत्री दोनों की वजह ही मिट जाएगी… सरकार 6 माह बाद भी स्थिरता की परीक्षा दे सकती है और मंत्री एक बार इस्तीफा देकर दो दिन बाद फिर मंत्री पद की शपथ ले सकते हैं… दोनों की जरूरतों के लिए संविधान में विधान है तो सरकार को भी पहल करना चाहिए… विपक्ष को भी साथ देना चाहिए और आयोग को भी चुनाव आगे बढ़ाना चाहिए…

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