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कोरोना का डेल्टा वैरिएंट प्लस में बदला, जानें वायरस के नए प्रकार से कितना खतरा?

नई दिल्ली। कोरोना वायरस आए दिन अपना रूप बदल रहा है, जिस कारण वैज्ञानिकों और डॉक्टरों को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। कोरोना की पहली के बाद दूसरी लहर ने जिस तरह तबाही मचाई है, उसके बाद आई एक और खबर ने सभी को चिंतित कर दिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों ने बताया है कि कोरोना की दूसरी लहर में देश में तबाही मचाने वाला डेल्टा वैरिएंट जिसे बी1.617.2 के नाम से भी जाना जाता है, पहले से ज्यादा खतरनाक वैरिएंट में बदल चुका है। इस बदले वैरिएंट को डेल्टा प्लस या फिर एवाई.1 कहा जा रहा है। वैज्ञानिकों को आशंका है कि कोरोना मरीजों को दी जा रही मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज कॉकटेल का भी असर इस वैरिएंट पर नहीं होगा। 

मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज कॉकटेल क्या है?
मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज कॉकटेल एक दवा है, जो कोरोना के इलाज में प्रयोग की जाती है। हालांकि, इसका इलाज तब ही किया जाता है, जब मरीज की हालात बेहद क्रिटिकल स्टेज पर हो। इस दवा को फार्मा कंपनी सिप्ला और रोश इंडिया मिलकर बनाती है। भारत में इसे कोरोना के इलाज के इमरजेंसी यूज के लिए मई में मंजूरी मिली थी। इस दवा को अमेरिका और यूरोपियन यूनियन देशों में इमरजेंसी यूज के लिए सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) से अप्रूवल मिला है।


सात जून तक 6 केस आए सामने
ब्रिटेन की स्वास्थ्य संस्था पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (पीएचई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक डेल्टा वैरिएंट के 63 जीनोम नए K417N म्यूटेशन के साथ सामने आए हैं। पीएचई को डेल्टा वैरिएंट में बदलावों की रुटीन जांच के दौरान डेल्टा प्लस का पता चला। कोविड वैरिएंट्स पर आई इस हालिया रिपोर्ट के मुताबित, भारत में सात जून तक कोरोना वायरस के डेल्टा प्लस वैरिएंट के 6 केस सामने आ चुके थे।

भारत में कम है इस वैरिएंट की फ्रीक्वेंसी
दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटिग्रेटिव बायोलॉजी के डॉ. विनोद स्केरिया ने बताया है कि K417N म्यूटेशन को लेकर अहम चिंता यह है कि इसके एंटीबॉडीज कॉकटेल के खिलाफ रेजिस्टेंट होने के सबूत मिले हैं। हालांकि, उनका यह भी कहना है कि भारत में K417N म्यूटेशन की फ्रीक्वेंसी बहुत ज्यादा नहीं है।

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