
क्या कर रही है सरकार… जब देश को है करोड़ों की दरकार तब वैक्सीन है चंद हजार… ना मरते मरीजों के इलाज पर ध्यान लगाया… ना दवा, ना ऑक्सीजन, ना अस्पतालों का इंतजाम करवाया… मान लिया कोरोना की लहर और कहर का अंदाजा सरकार को लग नहीं पाया… लेकिन वैक्सीन तो पिछले साल ही आ गई थी… जान बचाने और संक्रमण को रोकने की किरण वैज्ञानिकों ने दिखाई थी… डूबते व्यापार, मरते कारोबार, लूटते रोजगार को बचाने की उम्मीद की जो रोशनी जगमगाई थी उसकी लो को बचाते, दीपक की रोशनी बढ़ाते… लेकिन देश से कोरोना का अंधकार मिटाने के लिए तब से लेकर अब तक सरकार ने कुछ नहीं किया… आज सवा सौ करोड़ लोग हाथ फैलाए खड़े है… और सरकार गांवों को तो ठेंगा दिखा ही रही है… बड़े-बड़े शहरों में भी चंद हजार वैक्सीन पहुंचाकर कतार लगवा रही है… जिंदगी की उम्मीदों के लिए जीरा डाल रही है… दिमाग से दिवालिया हो चुकी सरकार ने तब उम्र के प्रतिबंध लगाए… बुजुर्गों को टीके लगवाए… आज वो दूसरे डोज के लिए कसमसा रहे हैं… और सरकार नौजवानों के लिए कतारें लगा रही है… खिलाने को कुछ है नहीं और न्यौते भिजवा रही है… सम्पट भूल चुके नेता और सरकार के मुखिया देश को कहीं कुएं में तो कहीं खाई में डाल रहे हैं… इलाज तो दूर ऑक्सीजन तक की व्यवस्था कर नहीं पा रहे है… अब तो अदालत भी थू-थू करने लगी… दिल्ली से लेकर इलाहाबाद तक की हाईकोर्ट लाशों से पटे देश में हुए इस लापरवाह आतंक को नरसंहार बता रही है… क्या होगा, कब थमेगा, कब तक चलेगा… इस देश की जनता भी यह समझ नहीं पा रही है… लेकिन यह तय है कि जब भी थमेगा, तब हाथ में कुछ नहीं बचेगा… कई अपने छूट जाएंगे, कई सपने लुट जाएंगे… देश को अभी और कोहराम देखना है… सरकार तो हाथ खड़े कर चुकी, अब हमें एक-दूसरे का हाथ पकडऩा है, लडऩा भी है और इस जंग को जीतना भी है… वैक्सीन मिले या ना मिले, हमारी आत्मशक्ति और हमारी संस्कृति ही अब जीवन बचा पाएगी… जिसे जिसकी जरूरत है, उसे वो मुहैया करवाइये… नेता और मुखिया को भूल जाइए… जिंदगी के लिए जीरा देकर देश को भटकाने, झूठी उम्मीदे दिखाने और अब भी समझ और संभल नहीं पाने वालो को वक्त सबक सिखाएगा… यह बुरा वक्त तो हम सबके साथ, सबके हाथ और सबके विश्वास से ही कट पाएगा…
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