नई दिल्ली (New Delhi)। दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में तलाक केस का निपटारा करते हुए कराव चौथ को लेकर भी एक अहम टिप्पणी की। कोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि करवा चौथ पर व्रत (fasting on karva chauth) रखना या ना रखना किसी की व्यक्तिगत पसंद है और यह मानसिक क्रूरता या विवाह के बंधन को तोड़ने का आधार नहीं है।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि अलग धार्मिक मान्यता और कुछ धार्मिक गतिविधि ना करना अपनेआप में क्रूरता नहीं है। कोर्ट ने कहा, ‘करवा चौथ पर व्रत रखना या ना रखना किसी की व्यक्तिगत पसंद है और यदि निष्पक्षता से विचार किया जाए, इसे क्रूरता नहीं कहा जा सकता है। अलग धार्मिक विश्वास रखना या कोई धार्मिक कर्तव्य को पूरा नहीं करना क्रूरता नहीं है और यह वैवाहिक संबंध खत्म करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
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हालांकि, कोर्ट ने पति की तलाक अर्जी को स्वीकार किए जाने के फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। केस के दूसरे तथ्यों को ध्यान में रखकर माना कि पत्नी के मन में पति और वैवाहिक संबंध के लिए कोई सम्मान नहीं था। महिला ने फैमिली कोर्ट के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। दोनों की शादी 2009 में हुई थी। उनकी एक बेटी है, जिसका जन्म 2011 में हुआ था।
हालांकि, पति ने कहा कि शादी के बाद से ही पत्नी का व्यवहार सामान्य नहीं था और वैवाहिक जिम्मेदारियों को पूरा करने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं थी। कई अन्य आधार के साथ पति ने यह भी कहा था कि 2009 में करवा चौथ के दौरान पत्नी ने व्रत नहीं रखा था। फोन रिचार्ज नहीं करवाने की वजह से पत्नी नाराज हो गई और उसने व्रत नहीं रखने का फैसला किया। पति ने यह भी आरोप लगाया कि अप्रैल में जब उसे स्लिप डिस्क की समस्या हो गई तो पत्नी ने ध्यान रखने की बाजय अपने सिर से सिंदूर, हाथ से चूड़ियां हटाकर सफेद सूट पहन लिया और खुद को विधवा घोषित कर दिया।
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