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सीरियाई शरणार्थियों को डेनमार्क ने लिया निकालने का फैसला, अन्‍य देश है हैरान

कोपेनहेगन। डेनमार्क (Denmark) पहला ऐसा यूरोपीय देश (European Countries) बन गया है, जिसने सीरिया (Syria) के दमिश्क और उसके आसपास के इलाकों से आए शरणार्थियों (Refugees) को अपने युद्ध से जर्जर देश में लौटने का (Return Our Country) आदेश दिया है। डेनमार्क सरकार (Denmark Government) के इस फैसले से यूरोप और दुनिया भर के उदारवादी खेमों गहरा झटका लगा है। डेनमार्क सरकार का कहना है कि वह अपनी शरणार्थी नीति की 2019 से समीक्षा कर रही थी। वह इस निष्कर्ष पर पहुंची कि सीरिया में राजधानी दमिश्क और उसके आसपास के इलाकों में अब स्थिति काफी सुधर चुकी है। इसलिए उन इलाकों से आए शरणार्थियों को अब लौट जाना चाहिए।



लेकिन आलोचकों का कहना है कि डेनमार्क सरकार असल में सभी अश्वेत शरणार्थियों और आव्रजकों को निकालने की तैयारी में है। दमिश्क के आसपास के इलाकों से आए सीरियाई शरणार्थियों को निकालने का फैसला इस दिशा में उसका सिर्फ पहला कदम है। गैर सरकारी संस्था डेनिश रिफ्यूजी काउंसिल की महासचिव शार्लोत स्लेंते ने एक इंटरव्‍यू में कहा- ‘हम दमिश्क के आसपास के इलाकों या सीरिया के किसी इलाके को सुरक्षित बताने के सरकार के फैसले से सहमत नहीं हैं।’
लेकिन डेनमार्क के आव्रजन मंत्री मातियास तेसफाये का कहना है कि डेनमार्क सरकार की ये पहले दिन से राय थी कि सीरियाई शरणार्थियों को दी गई पनाह अस्थायी है। संरक्षण की जरूरत खत्म होने पर डेनमार्क में रहने के लिए दिया गया परमिट रद्द कर दिया जाएगा, ये पहले से तय था।
विश्लेषकों का कहना है कि डेनमार्क में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार धुर दक्षिणपंथी गुटों के बढ़ते प्रभाव के कारण इस मामले में सख्त रुख अपना रही है। उनका कहना है कि इस कदम से उन बुनियादी उसूलों के लिए चुनौती खड़ी हो गई है, जिन पर डेनमार्क खुद को खड़ा बताता है। कुछ आलोचकों का कहना है कि डेनमार्क में रंगभेदी सोच हमेशा से मौजूद रही है, जो अब राजनीति पर भी हावी हो रही है। उनके मुताबिक आज भी डेनमार्क की आबादी को डेनिश मूल, आव्रजक और आव्रजकों के वंशज की श्रेणी में बांटा जाता है। इसका मतलब है कि जो लोग बाद में डेनमार्क आए, उनके एक या उससे ज्यादा पीढ़ी तक यहां रहने के बावूजूद उन्हें यहां का मूल बाशिंदा नहीं समझा जाता है।
खबरों के मुताबिक डेनिश अधिकारी 400 से ज्यादा सीरियाई शरणार्थियों की संरक्षण संबंधी जरूरतों की समीक्षा कर रहे हैं। उनमें जिनके बारे में समझा जाएगा कि उनके सीरिया लौट जाने में अब कोई खतरा नहीं है, उन्हें देश से निकाल दिया जाएगा। विश्लेषकों के मुतबिक पिछली कई सरकारों ने ऐसे कानून बनाए हैं, जिनसे आव्रजन और शरणार्थी बहस के केंद्र में बने रहे हैं। इस साल जनवरी में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता और प्रधानमंत्री मेते फ्रेडरिकसेन ने आव्रजन पर सीमा लगाने की पूर्व दक्षिणपंथी सरकार की नीति से सहमति जताई थी।
पर्यवेक्षकों के मुताबिक दूसरे यूरोपीय देशों की तुलना में आव्रजकों के मामले में होने वाली राजनीतिक बहस डेनमार्क में काफी नकारात्मक रही है। इसके बावजूद सीरियाई शरणार्थियों को निकालने के ताजा फैसले से पूरे यूरोप में चिंता जताई गई है। ये ध्यान दिलाया गया है कि डेनमार्क ने ये कदम अपने सहयोगी देशों की मर्जी के खिलाफ जाते हुए उठाया है। पिछले महीने अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने कहा था कि अभी सीरियाई शरणार्थियों को अपने देश लौटने के लिए मजबूर करना सीरियाई जनता के हित में नहीं होगा। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की इस राय से सहमति जताई थी कि देश लौटने का फैसला सीरियाई शरणार्थियों के अपने विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए।
सीरियाई शरणार्थियों को अभी वापस भेजने की सोच से यूरोपियन यूनियन भी सहमत नहीं है। लेकिन डेनमार्क सरकार ने इन सभी की राय की कोई परवाह नहीं की है। गौरतलब है कि डेनमार्क स्कैंडेनेवियाई देशों में शामिल है, जिन्हें आम तौर पर उदार और प्रगतिशील समझा जाता है। लेकिन अब वहां दिख रहे रूझान का मतलब है कि अब दुनिया के इस क्षेत्र में भी हवा बदल रही है।

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