धर्म-ज्‍योतिष

क्या आप जानते हैं बहुला चतुर्थी व्रत की कथा

बहुला चतुर्थी हर साल मनाया जाने वाला पर्व है. कहा जाता है इस पर्व की कथा को अगर हर चतुर्थी पर सुना जाए तो बड़ा लाभ होता है. ऐसे में आप सभी को बता दें कि वैसे तो इस साल बहुला चतुर्थी 7 अगस्त को थी लेकिन आज हम लेकर आए हैं बहुला चतुर्थी व्रत से संबंधित एक बड़ी ही रोचक कथा जो बहुत प्रचलित है. आप इस कथा को हर चतुर्थी पर सुन सकते हैं या पढ़ सकते हैं. आइए जानते हैं.

कथा- जब भगवान विष्णु का कृष्ण रूप में अवतार हुआ तब इनकी लीला में शामिल होने के लिए देवी-देवताओं ने भी गोप-गोपियों का रूप लेकर अवतार लिया. कामधेनु नाम की गाय के मन में भी कृष्ण की सेवा का विचार आया और अपने अंश से बहुला नाम की गाय बनकर नंद बाबा की गौशाला में आ गई. भगवान श्रीकृष्ण का बहुला गाय से बड़ा स्नेह था. एक बार श्रीकृष्ण के मन में बहुला की परीक्षा लेने का विचार आया. जब बहुला वन में चर रही थी तब भगवान सिंह रूप में प्रकट हो गए.

मौत बनकर सामने खड़े सिंह को देखकर बहुला भयभीत हो गई. लेकिन हिम्मत करके सिंह से बोली, ‘हे वनराज मेरा बछड़ा भूखा है. बछड़े को दूध पिलाकर मैं आपका आहार बनने वापस आ जाऊंगी.’ सिंह ने कहा कि सामने आए आहार को कैसे जाने दूं, तुम वापस नहीं आई तो मैं भूखा ही रह जाऊंगा. बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ लेकर कहा कि मैं अवश्य वापस आऊंगी. बहुला की शपथ से प्रभावित होकर सिंह बने श्रीकृष्ण ने बहुला को जाने दिया. बहुला अपने बछड़े को दूध पिलाकर वापस वन में आ गई. बहुला की सत्यनिष्ठा देखकर श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर कहा कि ‘हे बहुला, तुम परीक्षा में सफल हुई. अब से भाद्रपद चतुर्थी के दिन गौ-माता के रूप में तुम्हारी पूजा होगी. तुम्हारी पूजा करने वाले को धन और संतान का सुख मिलेगा.’

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