गैरों पे करम…अपनों पे सितम… थोड़ा भी कर दो रहम तो लोकल ग्लोबल को मात देता नजर आएगा… मुख्यमंत्रीजी आपको दर-दर नहीं अपने ही दर पर पूरे प्रदेश का विकास नजर आएगा… संभावनाओं की सुर्खियां तो इस शहर में भी भरी पड़ी हैंं, लेकिन उनकी अपेक्षाएं आपके अपने अधिकारियों, नौकरशाहों और बाबुओं के पैरों तले रौंदी पड़ी हैं… आपने इस शहर की अपार संभावनाएं पूरी दुनिया को दिखाई, लेकिन माफ कीजिए यह भावनाएं किसी ग्लोबल ने नहीं, बल्कि केवल आपकी इच्छाशक्ति और हमारी साझा संस्कृति ने सजाई… आपने मंच दिया… हमने उसमें रंग भर दिया… आपने स्वच्छता का शंखनाद किया… हमने शहर से ही नहीं, बल्कि हमारी आदत का कचरा भी समेट दिया… आपने सडक़ें बनवाईं… हमने दौड़ लगाई… आपने 24 घंटे बिजली पहुंचाई… हमने अपनी उत्पादन क्षमताएं शिखर पर पहुंचाई… आपने नाइट कल्चर दिया… हम दिन तो दिन रात को भी रोशन करके दिखाएंगे… मिट्टी में पैसे उगाकर दिखाएंगे… लेकिन यह तब संभव है, जब आप भरोसा कर पाएंगे… जिस तरह ग्लोबल को सम्मान देते हैं, उसी तरह लोकल के सिर पर भी हाथ रखने और हौंसला बढ़ाने का नजरिया अपनाएंगे… आप ग्लोबल को मुफ्त जमीन के लिए रिझा रहे हैं… जहां ऊंगली रखें उसे उस जमीन का मालिक बना रहे हैं… हर सोमवार मिलने के लिए खुद को उपलब्ध करा रहे हैं… मुख्यमंत्री की जगह सीईओ जैसे किरदार में बदलते नजर आ रहे हैं, लेकिन लोकल को आपसे न मुफ्त की जमीन चाहिए… न कोई किफायत या रियायत… वो केवल दर-दर की ठोकर से बचना चाहता है, अधिकारियों, नौकरशाह और बाबुओं के चंगुल से मुक्ति चाहता है… बस उसका काम समय पर हो जाए… आपकी नीतियां रोड़ा ना अटकाएं… फाइलें भोपाल में धूल ना खाएं… उसकी परेशानी सरकार की समझ में आए और उसे आपमें अपनापन नजर आए तो मुख्यमंत्रीजी यह शहर पूरे प्रदेश में ही नहीं, पूरे देश में और देश तो क्या विश्व में अपना परचम लहराता नजर आए… आप तो मोदीजी की हर बात शिरोधार्य करते हैं… उनके आत्मनिर्भरता के नारों को बुलंद करते हैं… लेकिन हम आपसे इतना ही कहते हैं… इस आत्मनिर्भरता को और नजदीक लाइए… पहले अपने प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाइए… अपने शहरों को शहरियों पर निर्भर बनाइए… फिर देश और विदेश के लोगों के लिए पलक-पावड़े बिछाइए… वरना लोग कहेंगे घर में था कोहिनूर और कांचों में चमक ढूंढते रहे….
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