नई दिल्ली। कोरोना के बढ़ते खतरे को देखते हुए सरकार ने नई गाइडलाइंस (new guidelines) जारी कि हैं। गाइडलाइन जारी करते हुए डॉक्टर्स को कोविड मरीजों के इलाज में स्टेरॉयड के इस्तेमाल से हर हाल में बचने को कहा है। बता दें कि इस नई गाइडलाइन को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR)-कोविड-19 राष्ट्रीय कार्यबल एवं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत संयुक्त निगरानी समूह (DGHS) ने जारी किए हैं।
नई गाइडलाइंस (new guidelines) में कहा गया है कि अगर किसी मरीज की ऊपरी श्वास नली में कोविड के लक्षण उत्पन्न होते हैं और मरीज को सांस लेने में दिक्कत या हाइपॉक्सिया जैसी दिक्कत नहीं है तो इसे हल्के लक्षणों में रखा जाता है और उसे होम आइसोलेशन (isolation) में ही इलाज की सलाह दी गई है. हल्के लक्षण वाले मरीजों को सलाह है कि अगर उन्हें सांस लेने में दिक्कत आ रही है, या तेज बुखार या पांच दिनों से तेज खांसी है तो उन्हें डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
अगर किसी को लगातार खांसी आ रही है या दो-तीन हफ्तों से ठीक नहीं हो रही है, तो उसे ट्यूबरक्यूलोसिस (टीबी) या ऐसी ही किसी दूसरी बीमारी के लिए टेस्ट कराना चाहिए। अगर किसी मरीज में ऑक्सीजन सैचुरेशन 90 से 93 परसेंट के बीच में फ्ल्क्चुएट (fluctuate) कर रहा है और उन्हें सांस लेने में दिक्कत आ रही है, तो उन्हें अस्पताल में भर्ती होना चाहिए। ये मध्यम लक्षण हैं और ऐसे मरीजों को ऑक्सीजन सपोर्ट देना चाहिए।
अगर किसी मरीज में रेस्पिरेटरी रेट 30 प्रति मिनट से ऊपर है, सांस लेने में दिक्कत आ रही है और ऑक्सीजन सैचुरेशन कमरे के तापमान से 90 फीसदी नीचे है तो इसे गंभीर लक्षण में रखा जाएगा और मरीज को आईसीयू में भर्ती किया जाना चाहिए क्योंकि उन्हें रेस्पिरेटरी सपोर्ट की जरूरत होगी। जिन मरीजों को ऑक्सीजन की ज्यादा जरूरत होगी और सांस धीमी चल रही होगी, उन्हें Non-invasive ventilation (NIV)- हेलमेट और फेस मास्क इंटरफेस जरूरत के हिसाब से लगाया जाएगा।
रोगियों में मामूली से लेकर गंभीर लक्षण होने पर रेमडेसिवर के आपातकालीन (emergency) या ‘ऑफ लेबल’ उपयोग की अनुमति दी गयी है। इसका उपयोग केवल उन्हीं रोगियों पर किया जा सकता है जिनको कोई भी लक्षण होने के 10 दिन के भीतर ‘रेनल’ या ‘हेप्टिक डिस्फंक्शन’ की शिकायत न हुई हो। इस संशोधित नई गाइडलाइंस में कहा गया है कि स्टेरॉयड्स वाली दवाएं अगर जरूरत से पहले, या ज्यादा डोज में या फिर जरूरत से ज्यादा वक्त तक इस्तेमाल किए जाएं तो इनसे म्यूकरमाइकोसिस या ब्लैक फंगस जैसे सेकेंडरी इन्फेक्शन का डर बढ़ता है। इसमें बताया गया है कि 60 से ज्यादा आयु के लोगों या कार्डियोवस्कूयलर डिसीज, हाइपरटेंशन, कोरोनरी आर्टरी डिसीज, डायबिटिज या इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज्ड स्टेट जैसे कि एचआईवी (HIV), ट्यूबरक्लोसिस (tuberculosis), क्रॉनिक लंग (chronic lung), किडनी या लिवर डिसीज (kidney or liver disease), केयरब्रोवस्कयूलर डिसीज और मोटापे से ग्रस्त लोगों में गंभीर रूप से बीमार पड़ने या मौत की आशंका ज्यादा रहती है।
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