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कोरोनाः न हो कोई ढिलाई

– ऋतुपर्ण दवे

इस सदी की वैश्विक महामारी कोरोना यानी कोविड-19 को दुनिया में दस्तक दिए पूरा एक साल बीत चुका है। कोरोना को लेकर पहली बार नया और दुनिया भर में चर्चित सच सामने आया कि यह इंसान के दिमाग का फितूर है जो चीन की प्रयोगशाला की करतूत है। कोरोना से हुई मौतों और दुनिया की मौजूदा आबादी के अनुपात को देखें तो थोड़ी राहत की बात यह है कि यह सजगता थी जो महामारी को बिना दवाई के काफी हद तक फैलने से रोका। लेकिन मेडिकल साइंस के लिए कोरोना अभी चुनौती बना हुआ है। जल्द इससे पूरी तरह छुटकारा मिल पाने की सोचना बेमानी होगी।

साल भर में ही कोरोना के नए-नए रूप सामने आने लगे हैं। लोगों के सामने कोविड के असर, नए आकार-प्रकार और प्रभाव को लेकर निश्चित रूप से हर रोज नई-नई और चौंकाने वाली जानकारियाँ सामने आएंगी। स्वाभाविक है कि कई तरह के भ्रम भी होंगे लेकिन सबसे अहम यह कि दुष्प्रभावों और सावधानी का जो असर दिखा उसे ही दवा मानकर बहुरूपिया कोरोना को अबतक मात दी गई। चिन्ता की बात बस यही है कि लोग जानते हुए भी सतर्कता नहीं बरत रहे हैं, जो सबसे जरूरी है। यह तो मानना होगा कि कोरोना पूरी दुनिया के जीवन का फिलहाल तो हिस्सा बना ही हुआ है। आगे कबतक बना रहेगा नहीं पता। पता है तो बस यही कि कोरोना जल्द जाने वाला नहीं। सबको यही समझना होगा और कोरोना के साथ रहकर ही जीना होगा। इससे जीतने के लिए दवाई के साथ ही पूरी सावधानी, दक्षता और बदलते तौर-तरीकों को सीखना होगा। 

कबतक लॉकडाउन, नाइट कर्फ्यू रहे? कबतक हवाई, रेल और सड़क यातायात को रोका जाए? जाहिर है देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था की यही तो धुरी हैं। अगर यही बार-बार थमेंगी तो व्यापार-व्यवसाय पर भी बुरा असर पड़ेगा जिसका खामियाजा आम और खास सभी को भुगतना होगा। हाँ, यह इक्कीसवीं सदी है, बड़ी से बड़ी चुनौती यहाँ तक कि चाँद और मंगल को भी छू लेने की सफलता का सेहरा बांधे दुनिया अब इस संक्रामक महामारी पर भी जीत हासिल करने की राह पर निकल पड़ी है। यह भी सच है कि किसी बड़े लक्ष्य या चुनौती से निपटने के लिए तैयारियाँ भी काफी पहले और बेहद लंबी-चौड़ी करनी पड़ती है। लेकिन यह तो एकाएक आई आपदा है, जिससे निपटने में वक्त तो लगेगा। बस इसी दौर को होशियारी से काटना होगा।

देश में संभावित टीके को जनवरी में बाजार में उतारने की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। भारतीय औषधि नियामक की नजर ब्रिटेन पर है जो ऑक्सफोर्ड निर्मित कोविड-19 के टीके को इसी हफ्ते मंजूरी दे सकता है। यदि ऐसा हुआ तो केन्द्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन यानी सीडीएससीओ में कोविड-19 विशेषज्ञ समिति की बैठक होगी जिसमें देश-विदेश में क्लिनिकल ट्रायल से प्राप्त सुरक्षा एवं प्रतिरक्षा क्षमता के आंकड़ों की गहराई से समीक्षा होगी, उसके बाद ही भारत में टीके के आपात इस्तेमाल संबंधी मंजूरी मिल सकेगी। हालाकि वायरस के नए प्रकार के सामने आने से संभावित एवं विकसित होते टीकों पर किसी तरह के प्रभाव की संभावना से वैज्ञानिक फिलहाल इनकार कर रहे हैं। लेकिन सारा कुछ टीके के आने व उपयोग में लाने के बाद ही साफ हो पाएगा। फिलहाल दवा में सुअर की चर्बी के उपयोग की चर्चा के बीच नया विवाद भी उफान पर है। कुछ उपयोग के खिलाफ तो कुछ परिस्थितियों के देखते हुए उपयोग के पक्ष में।

वहीं इतिहास बताता है कि कोई भी महामारी इतनी जल्दी कभी खत्म नहीं हुई है। हाँ फैलाव सतर्कता से ही रोका गया। बस कोविड-19 के साथ भी ऐसा ही जरूरी है। वैक्सीन आने के बाद सब तक पहुँचने और किसे पहले किसे बाद की प्राथमिकताओं के चलते लंबा वक्त लगना सुनिश्चित है। साथ ही कई बदलाव, प्रभाव और दुष्प्रभावों का भी दौर चलेगा। कोरोना के नित नए रूप, वैक्सीन और उसके उपयोग की ऊहापोह बीच बिना किसी साइड इफेक्ट के कोरोना से निपटने का कारगर मंत्र दो गज की दूरी, मास्क जरूरी- ये तो सबको पता है। बस यही समझना और इसे समझकर जंग जीतना होगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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