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आधी आबादीः देश में स्व-रोजगार का मुख्य आधार बनकर उभरे स्व-सहायता समूह

– डॉ. मयंक चतुर्वेदी

महिला सशक्तिकरण की दिशा में केंद्र सरकार तमाम प्रयास कर रही है। जिसमें बड़ा प्रयास मोदी सरकार का स्व-सहायता समूहों के गठन एवं देश की आधी आबादी को स्थानीय स्तर पर इनके माध्यम से स्व-रोजगार उपलब्ध करा देना है। आंकड़ों को देखें एवं इस दिशा में सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर गौर करें तो कोरोना काल के विकट संकट के बीच भी स्थिति सकारात्मक रूप से चौंकाने वाली नजर आती है।

दरअसल, सरकार लगातार वो माहौल, वो स्थितियां बना रही है जहां से सभी बहनें गांवों को समृद्धि और संपन्नता से जोड़ सकने में कामयाब हो सकें। यही कारण है कि आज देशभर में लगभग 70 लाख स्व-सहायता समूहों की संख्या हो गई है, जिनसे लगभग 8 करोड़ बहनें जुड़ी हैं। पिछले सात सालों के दौरान स्वयं सहायता समूहों में तीन गुना बहनों की भागीदारी सुनिश्चित हुई है। केंद्र सरकार ने फूड प्रोसेसिंग से जुड़े उद्यम हो, महिला किसान उत्पादक संघ हो या फिर दूसरे स्वयं सहायता समूह, बहनों के ऐसे लाखों समूहों के लिए 1,600 करोड़ रुपये से अधिक राशि भेज चुकी है। सरकार इन सभी समूहों को और अधिक प्रेरित करने के लिए अब 20 लाख रुपये तक का ऋण देने लगी है, जबकि पहले इसकी सीमा 10 लाख रुपये तक ही थी।

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस संबंध में कहा भी कि उनकी सरकार ने राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत बहनों की जितनी मदद की है, वह पिछली सरकार से कई गुना ज्यादा है। स्वयं सहायता समूहों को लगभग 4 लाख करोड़ रुपये का असुरक्षित ऋण भी उपलब्ध कराया गया है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी यह भी कहते हैं कि कोरोना काल में जिस प्रकार से महिलाओं ने स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से देशवासियों की सेवा की, वह अभूतपूर्व है। मास्क और सेनेटाइजर बनाना हो, जरूरतमंदों तक खाना पहुंचाना हो या जागरूकता का काम हो, हर प्रकार से इन समूहों का योगदान अतुलनीय रहा है। उन्होंने कहा कि आज आत्मनिर्भर भारत अभियान को देश की आत्मनिर्भर नारी शक्ति नई ताकत दे रही है और इससे उन्हें भी प्रेरणा मिल रही है।

जहां इस दिशा में देश के प्राय: सभी राज्यों में प्रयास जारी हैं, वहीं इन सभी राज्यों के बीच मध्यप्रदेश तेजी से आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। राज्य शासन की नीतियों, कार्यक्रमों और योजनाओं से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को आर्थिक गतिविधियों से जोड़ कर उन्हें स्व-रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। विशेष रूप से आजीविका मिशन के माध्यम से बड़ी संख्या में बनाए गए महिला स्व-सहायता समूहों को हर संभव सहयोग दिया जा रहा है।

मध्य प्रदेश सरकार ने स्व- सहायता समूहों को सस्ती ब्याज दर और सरल प्रक्रिया से बैंक ऋण उपलब्ध कराने के काम को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा है। ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका गतिविधियों को और सुदृढ़ करने के लिए विगत वर्षों की तुलना में बैंक ऋण राशि में काफी वृद्धि की गई है। इसे राज्य सरकार द्वारा 300 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 1300 करोड़ रुपए किया गया । ऋण राशि पर ब्याज अनुदान भी सरकार द्वारा दिए जाने का निर्णय लिया गया है, जिससे ब्याज का बोझ कम हो रहा है और ऋण वापसी और भी सरल हो गई है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का इस संबंध में कहना है कि स्व सहायता समूहों की सक्रियता से महिलाएँ सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। प्रदेश सरकार महिलाओं को आत्मनिर्भर करने के लिए प्रयास कर रही है। इसके तहत महिला स्व-सहायता समूहों से जुड़ी हर महिला की आमदनी में दस हजार रुपए की बढ़ोत्तरी का लक्ष्य है। श्रेष्ठ काम करने वाले समूह में क्लस्टर लेवल फेडरेशन को एक करोड़ का पुरस्कार भी दिया जाएगा। इतना ही नहीं बल्कि इन समूहों को इस साल 2550 करोड़ रुपए का कर्ज बैंकों से दिलाने का लक्ष्य रखा गया है, ताकि समूह अपने कामकाज का विस्तार कर सकें।

एमपी आजीविका मार्ट पोर्टल
मुख्यमंत्री चौहान कहते हैं कि प्रदेश की आजीविका उत्पादों को सरकारी और निजी क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर वृहद बाजारों से जोड़ने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म से भी जोड़ा गया है। ताकि उचित दाम में सामान सीधे खरीदा और बेचा जा सके, जिसका फायदा समूह सदस्यों को अधिक से अधिक मिल सकेगा। स्व- सहायता समूहों और बाजार के बीच कोई भी बिचौलिया नहीं हो, यही राज्य शासन का प्रयास है। इसके लिए राज्य शासन ने एमपी आजीविका मार्ट पोर्टल बनाया है। यह पोर्टल समूहों द्वारा बनाई जा रही वस्तुओं को बेचने और खरीदने के लिए बहुत ही सुगम माध्यम है। इस व्यवस्था को जल्दी ही सर्वव्यापी करने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे कि समूह की बहनों के व्यवसाय को गति मिल सके।

पोर्टल में समूह की बहनें अपने उत्पादों को दर्ज करा सकती हैं। अपना नाम, पता और फोन नंबर अंकित कर सकती हैं, जिससे खरीददार बहनों से खुद संपर्क कर सकते हैं और उत्पाद सीधे बहनों से क्रय कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में समूह की महिलाओं को अधिक मुनाफा मिलना तय है। कई जिलों में करोड़ों रुपए का व्यवसाय पोर्टल के माध्यम से किया गया है। शेष जिलों में भी तेजी से प्रयास किए जा रहे हैं। वे कहते हैं कि महिलाओं की मेहनत और स्व-रोजगार के प्रति जुनून आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश के संकल्प को पूरा करने में सहयोगी बनेगा।

आजीविका मिशन में 3 लाख 33 हजार स्व- सहायता समूह गठित
उल्लेखनीय है कि प्रदेश के लगभग 45 हजार ग्रामों में करीब 3 लाख 33 हजार स्व-सहायता समूहों का गठन कर लगभग 38 लाख महिलाओं को जोड़ा जा चुका है। मिशन के अंतर्गत गठित स्व-सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं के लिए भरपूर धन राशि का इंतजाम किया है। समूहों से जुड़ने के लिए पात्र परिवारों में शेष बचे सभी परिवारों को अगले 3 वर्षों में स्व-सहायता समूहों से जोड़ लिया जाएगा। निर्धन तबके की आर्थिक स्थिति में तेजी से सुधार के लिए प्रदेश में मुख्यमंत्री ग्रामीण पथ विक्रेता योजना के अंतर्गत भी 10 हजार रुपए तक का ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। इस राशि के मिलने से समूहों की गतिविधियाँ और बढ़ गई हैं।

स्व-रोजगार के अनेक अवसर
प्रदेश सरकार महिला स्व- सहायता समूहों को मजबूती प्रदान करने के लिए हर कदम पर बहनों के साथ खड़ी है। प्रयास है कि समूह सदस्यों को काम शुरू करने के लिए एक नहीं अनेक अवसर दिए जाएँ। राज्य सरकार द्वारा अनेक काम समूहों को दिए जा रहे हैं। समूहों को समर्थन मूल्य पर कृषि उपज क्रय करने के लिए पहले से ही जोड़ा जा चुका है। अब उचित मूल्य की दुकानों के संचालन और पोषण आहार निर्माण से भी जोड़ा जा रहा है। इसी क्रम में शालेय गणवेश सिलाई का काम समूहों को दिया गया है। पिछले वर्ष समूह सदस्यों ने अच्छा काम किया था। इस बार फिर से महिला समूहों को स्कूल गणवेश का काम दिया गया है। काम में पारदर्शिता बनाए रखने और प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए स्व- सहायता पोर्टल बनाया गया है, जिसकी सहायता से यह काम और भी आसान हो गया है।

समूह की महिलाओं का बीमा
इसके साथ ही इन दिनों राज्य सरकार ने महिला स्व- सहायता समूह की महिलाओं का बीमा करवाने का अभियान चलाया हुआ है। शासन का प्रयास है कि सभी बहनें बीमा से जुड़ जाएँ, ताकि असामयिक मृत्यु पर कठिन समय में परिवार को कुछ धनराशि की सहायता मिल सके। इसके लिए प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा और प्रधानमंत्री जीवन सुरक्षा बीमा योजना में प्रीमियम जमा करके इस योजना का फायदा उठाया जा सकता है। बैंकों के माध्यम से बीमा आसानी से किया जा रहा है। प्रसन्नता की बात है कि बड़ी संख्या में समूहों की बहनों का बीमा हो चुका है।

सामाजिक सशक्तिकरण के क्षेत्र में नए आयाम
आर्थिक सशक्तिकरण के साथ सामाजिक सशक्तिकरण के क्षेत्र में भी समूह की महिलाओं ने नए आयाम स्थापित किए हैं। ग्रामीण क्षेत्र में समूह की बहनों द्वारा नशा मुक्ति, बाल विवाह को रोकने, स्वच्छता, पोषण और पर्यावरण संरक्षण जैसे गंभीर विषयों पर भी सामाजिक व्यवहार परिवर्तन के लिए सराहनीय प्रयास किए जा रहे हैं। वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौरान कोरोना संक्रमण से बचाव की सामग्री बनाकर आपदा को अवसर में बदलने समूह की महिलाओं ने अच्छा काम किया है। लॉकडाउन से लेकर अब तक करीब 2 करोड़ मास्क, 1.5 लाख पीपीई किट,1.60 लाख लीटर सैनिटाइजर, 33 हजार लीटर हैंड वास और लगभग 8 लाख से भी अधिक साबुन का निर्माण किया है। कोविड-19 टीकाकरण, बाढ़ पीड़ितों के लिए भोजन पका कर देने और जैविक कृषि पद्धति को अपनाने के लिए समूह की महिलाओं द्वारा अच्छा कार्य यहां किया जा रहा है।

योजनाओं की निगरानी एवं क्रियान्वयन में सक्षम बनी महिलाएँ
यह बड़े गर्व की बात है कि समूह की बहनें ग्राम पंचायत स्तर पर सामुदायिक विकास की योजनाओं की निगरानी के साथ क्रियान्वयन में भी सहयोग कर रही हैं। बिजली बिल के वितरण एवं संग्रहण और काफी समय से लंबित बिजली बिलों को जमा कराने का काम बहनें कर रही हैं। प्रदेश के श्योपुर जिले में तो ऑक्सीजन प्लांट का संचालन भी महिला स्व -सहायता समूह द्वारा किया जा रहा है। बहनों के उत्साह और क्षमता को देखते हुए राज्य सरकार ने और कई काम महिला समूहों को सौंपने का निर्णय लिया है। गाँव में नल-जल योजनाओं के संचालन का काम महिला समूहों को दिया जा रहा है। अभी कुछ जिलों में समूहों ने नल- जल योजनाओं का सफल संचालन करके दिखाया है।

पोषण आहार संयंत्रों के संचालन की जिम्मेदारी संभालेंगी महिला समूह
प्रदेश के सातों टीएचआर प्लांट का संचालन महिला समूहों को देने का निर्णय लिया गया है। सरकार के इस फैसले से प्रदेश में पोषण आहार तैयार कर विक्रय से होने वाले मुनाफे से प्रदेश के लाखों समूह सदस्य लाभान्वित होंगे। प्रदेश में देवास, धार, होशंगाबाद, मंडला, सागर, रीवा और शिवपुरी में टीएचआर संयंत्र स्थापित किए गए हैं। वर्तमान में इन संयंत्रों से प्रतिमाह 50 से 60 करोड़ रुपए का पोषण आहार तैयार होता है। संयंत्रों के संचालन से प्राप्त होने वाले लाभांश में से 5 प्रतिशत का उपयोग संयंत्रों के संधारण के लिए सुरक्षित रखते हुए शेष 95 प्रतिशत लाभांश स्व-सहायता समूहों को प्राप्त होगा।

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