ब्‍लॉगर

अमेरिका की हिंसामुक्ति कैसे हो?

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

अमेरिका दुनिया का सबसे संपन्न और शक्तिशाली देश है लेकिन यह भी सच है कि वह सबसे बड़ा हिंसक देश भी है। जितनी हिंसा अमेरिका में होती है, दुनिया के किसी देश में नहीं होती। वैसे तो अमेरिका में ईसाई धर्म को माननेवालों की संख्या सबसे ज्यादा है लेकिन क्या वजह है कि ईसा की अहिंसा का वहां कोई खास प्रभाव दिखाई नहीं पड़ता। कैलिफोर्निया में तो हिंसा थम नहीं रही। लास एंजिलिस के एक कस्बे में एक बंदूकची के कहर ढाने के बाद हुई दूसरी घटना में भी कई लोग मारे गए। साठ हजार की आबादी वाले लास एंजिलिस के इस कस्बे में एशियाई मूल के लोग बहुतायत में हैं, खास तौर से चीन के लोग।


वे चीनी नव वर्ष का उत्सव मना रहे थे और उसी समय एक बंदूकची ने 10 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। कई लोग घायल भी हो गए। यह इस नए साल की पहली घटना नहीं है। ऐसी घटनाएं आए दिन अमेरिका में होती रहती हैं। पिछले साल बंदूक की गोलियां खाकर 40 हजार लोगों ने अपने प्राणों से हाथ धोए हैं। क्या इतनी हत्याएं किसी और मुल्क में कभी होती हैं? इतने लोग तो बड़े-बड़े युद्धों में भी नहीं मारे जाते। तो क्या हम मान लें कि अमेरिका सदा सतत युद्ध की स्थिति में ही रहता है? अमेरिका में इतनी शांति और सद्भाव रहना चाहिए कि दुनिया में उसका कोई देश मुकाबला ही न कर सके।

चीन और भारत जैसे देश अमेरिका से 4-5 गुना बड़े देश हैं लेकिन उनमें क्या इतनी हिंसा होती है? यहां असली सवाल यह है कि क्या पैसे और डंडे के जोर पर आप शांति और सद्भाव खरीद सकते हैं? सच्चाई तो यह है कि अमेरिका का पूंजीवादी समाज मूलतः उपभोक्तावादी समाज बन गया है। सारे लोग सिर्फ एक ही माला जपते हैं- हाय पैसा, हाय पैसा। अंधाधुंध पैसा कमाओ और अंधाधुंध खर्च करो। हमारे लोग भी भाग-भागकर अमेरिका में क्यों जा बसते हैं? उसके पीछे पैसा ही कारण है लेकिन भारतीयों का संस्कार कुछ ऐसा है कि वे मर्यादा में रहना पसंद करते हैं। कई ऐसे देशों के लोग वहां जा बसते हैं, जिनके लिए पैसा ही खुदा है। उसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। जो लोग पैसा नहीं कमा पाते हैं, वे अपने दिलों में ईर्ष्या, द्वेष और घृणा के वटवृक्ष उगा लेते हैं। ये ही वे लोग हैं, जो सामूहिक हिंसा पर उतारू हो जाते हैं। हिंसा की यह परंपरा अमेरिका में काफी पुरानी है।

पहले इसकी शुरुआत आदिवासियों (रेड इंडियंस) और गोरे के बीच हुई और फिर गोरे और कालों के बीच और अब तो यह कहीं भी और किसी के बीच भी हो सकती है। हिंसा से बचने के लिए हथियार रखने की निर्बाध परंपरा ने निर्बाध हिंसा को पैदा किया है। अमेरिका में त्यागवाद और हथियार मुक्ति की परंपरा जब तक कायम नहीं होगी, ऐसी घटनाएं होती ही रहेंगी।

(लेखक, भारतीय विदेश परिषद नीति के अध्यक्ष हैं।)

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