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हिंदी दिवस जनता कैसे मनाए?

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

हर 14 सितंबर को देश में हिंदी दिवस मनाया है। हिंदी को लेकर अच्छे-खासे भाषण भी दिए जाते हैं। लेकिन हिंदी का ढर्रा जहां था, वहीं आकर टिक जाता है। भारत की अदालतों, संसद और विधानसभाओं, सरकारी काम-काज में, पाठशालाओं और विश्वविद्यालयों में सर्वत्र अंग्रेजी का बोलबाला बढ़ता चला जा रहा है। अब तो आजादी के 75 साल में अंग्रेजी की गुलामी हमारे घर-द्वार बाजार में भी छाती चली जा रही है। हम लोग इस गुलामी के लिए सरकारों को दोषी ठहराकर संतुष्ट हो जाते हैं लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इस मामले में हमारी भूमिका क्या रही है? जनता की भूमिका क्या रही है? यदि भारत की जनता जागृत रही होती तो यह भाषाई गुलामी कभी की दूर हो जाती। फिलहाल हम सरकार को छोड़ें और यह सोचें कि हिंदी के लिए भारत की जनता क्या-क्या कर सकती है? इस संबंध में मेरे कुछ सुझाव निम्नानुसार हैं:-

1. सारे भारतवासी संकल्प करें कि वे आज से ही अपने हस्ताक्षर हिंदी या अपनी मातृभाषा में ही करेंगे। सारे कानूनी दस्तावेजों और बैंक के खातों में अब आगे से स्वभाषा में ही हस्ताक्षर होंगे।

2. अपने-अपने शहर और गांव में दुकानों और घरों पर लगे सभी नामपट स्वभाषा में होंगे। यदि किसी अन्य भाषा में लिखना हो तो लिखते रहें लेकिन स्वभाषा ऊपर और बड़ी होनी चाहिए। अंग्रेजी नामपट लोग स्वतः न हटाएं तो उन्हें पोतने का अभियान चलाएं।

3. लोग शादी तथा अन्य कार्यक्रमों के अपने निमंत्रण स्वभाषा में छपवाएं।

4. दुकानदार और कारखानेदार अपनी निर्मित चीजों पर विक्रय-चिह्न और अन्य विवरण ग्राहक-भाषा में अंकित करें।

5. सारे नेताओं से अनुरोध किया जाए कि वे संसद और विधानसभा में अपने भाषण स्वभाषा में दें। लोक-प्रतिनिधि लोकभाषा का ही प्रयोग करें। सारे कानून हिंदी में बनें।

6. बैंकों और दुकानदारों को चाहिए कि वे अपनी पावती, रसीद और चेक वगैरह स्वभाषा में छपवाएं।

7. सरकारों से आग्रह किया जाए कि वे अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों पर पाबंदी लगाए। अकेली अंग्रेजी नहीं, कई विदेशी भाषाएं हमारे छात्रों को पढ़ने की सुविधा दी जाए। पढ़ाई के माध्यम के रूप में अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म की जाए।

यदि हिंदी दिवस को भारत की जनता इस तरह से मनाने लगे तो भारत को तो सांस्कृतिक आजादी मिलेगी ही, हमारे पड़ोसी देश, जो हमारी तरह अंग्रेजों के गुलाम रहे हैं, उन्हें भी भारत से प्रेरणा मिलेगी और वे सांस्कृतिक, बौद्धिक और मानसिक आजादी का आनंद उठा सकेंगे।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)

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