ब्‍लॉगर

विदेशी पर्यटक कैसे आएं भारत

– आर.के. सिन्हा

कोरोना का असर कम होते ही देश भर के एयरपोर्ट तथा रेलवे स्टेशनों पर पर्यटकों की भीड़ रहने लगी है। दो-ढाई सालों से घरों में दुबके हुए हिन्दुस्तानी अब बाहर निकल रहे हैं। वे फिर से पहली वाली जिंदगी को जीना चाहते हैं। बेशक, कोरोना ने आम इंसान की सोच को भी बदला है। अब बहुत से लोगों को लगने लगा है कि जीवन तो क्षणभंगुर है। इसलिए जितना जीवन है उसका उतना आनंद तो ले ही लिया जाए। निश्चित रूप से इस सोच के चलते लोग पर्यटन स्थलों पर जा रहे हैं। इससे कोरोना के कारण तबाह हो गया पर्यटन क्षेत्र फिर से खड़ा होने लगा है। इस उद्योग से जुड़े लाखों लोगों की फिर से कमाई चालू हो गई है। पर अब भी भारत में विदेशी पर्यटकों की आवक कायदे से चालू तो नहीं हुई है। कहना न होगा कि कोरोना के कारण विदेशी पर्यटकों ने भी भारत आना बंद ही कर दिया था।

इंडिया टुरिज्म स्टटिस्टिक्स की तरफ से हाल में जारी आंकड़ों के अनुसार, कोरोना के असर से ठीक एक साल पहले साल 2019 में भारत में 1.93 करोड़ विदेशी पर्यटक आए थे। उसके बाद से भारत में विदेशी पर्यटकों के आने का सिलसिला 75 फीसद तक गिरा। उसकी वजह तो समझ आती है। कोरोना की चेन को तोड़ने के लिए सरकार ने बहुत सारे कदम उठाए थे। पर यह भी सच है कि कोरोना के असर के कारण भारत आने वाले पर्यटक बहुत कम हो गए। चूंकि अब हालत सामान्य हो चुके है, इसलिए सरकार और पर्यटन सेक्टर से जुड़े हरेक स्टेक होल्डर को हरचंद कोशिश करनी होगी ताकि भारत में विदेशी पर्यटकों की आवक बढ़े।

देखिए, यह तो कहना ही होगा कि हमारे यहां पर जितने महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं, उस लिहाज से हमारे यहां पर्यटक नहीं आते। भारत में ताजमहल, गुलाबी नगरी जयपुर, पहाड़ों की रानी दार्जिलिंग, असीमित जल का क्षेत्र कन्याकुमारी, पृथ्वी का स्वर्ग कश्मीर समेत अनगिनत अहम पर्यटन स्थल हैं। इनके अलावा भारत में भगवान बुद्ध से जुड़े अनेक अति महत्वपूर्ण स्थल हैं। भारत में बुद्ध के जीवन से जुड़े कई महत्वपूर्ण स्थलों के साथ एक समृद्ध प्राचीन बौद्ध विरासत भी है। हमें यह सोचना होगा आखिर हम बौद्ध की भूमि होने के बावजूद दुनिया भर के बौद्ध अनुयायियों को आकर्षित करने में अबतक हम क्यों असफल रहे। भारतीय बौद्ध विरासत दुनिया भर में बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत रुचिकर है। कुशीनगर बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। भगवान बौद्ध ने कुशीनगर में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था।

इतना सब कुछ होने के बावजूद हमारे यहां विदेशी पर्यटकों का आंकड़ा सालाना दो करोड़ भी नहीं पहुंचता। बेशक, यह एक गंभीर विचारणीय बिन्दु है। इस पर सबको सोचना ही होगा। कुछ कमी तो हमारी भी है। हमें उन बिन्दुओं पर ठंडे दिमाग से सोचना होगा जिसके चलते हमारे यहां अन्य देशों के पर्यटक भारी मात्रा में कभी नहीं आए। आप गूगल सर्च करके देखेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि हमारे यहां आने वाले विदेशी पर्यटकों के साथ स्थानीय लोग लूट-खसोट करने से लेकर मारपीट करने तक से पीछे नहीं रहते। यह शर्मनाक है। इस तरह के तत्वों पर संगीन धाराएं लगाकर मुकदमा दर्ज होना चाहिए और कठोरतम दंड की व्यवस्था होनी चाहिये।

कुछ साल पहले की बात है जब मुझे मिस्र की राजधानी काहिरा में जाने का अवसर मिला था। मैं वहां पर विश्व प्रसिद्द पिरामिड भी देखने गया था। वे तो खैर अपने आप में अजुबा है ही। सबसे बड़ी बात, जिसने मेरा ध्यान आकृष्ट किया था, वह था वहां पर आए हुए हजारों विदेशी पर्यटक। पिरामिड स्थल के करीब की पार्किंग के पास दर्जनों बसें आ रही थीं। उनमें विदेशी पर्यटक थे। दो बसों में आए पर्यटकों की वेशभूषा को देखकर समझ आ रहा था कि वे भारतीय हैं। मैंने एक बुजुर्ग महिला से पूछा, ‘क्या आप भारत से है?’ उसने उत्तर दिया, ‘हम भारतीय हैं। पर हम केन्या में बसे हुए हैं।’ मैंने कभी किसी भी भारतीय पर्यटन स्थल पर इतने विदेश पर्यटक नहीं देखे थे। आप भारत में आगरा से लेकर गोवा और किसी बुद्ध सर्किट की खास जगह पर चल जाइये। आपको विदेशियों की तादाद ही बहुत कम मिलेगी। ये संख्या बढ़ानी होगी। अफसोस होता है कि थाईलैंड और सिंगापुर जैसे छोटे देशों में भारत से ज्यादा विदेशी पर्यटक सैर-सपाटा के लिए पहुंचते हैं। लेकिन, बुद्ध की धरती भारत में थाईलैंड, जापान, साउथ कोरिया, थाईलैंड जैसे देशों के बहुत कम पर्यटक आते हैं।

भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों को गोवा जैसा बनना होगा। गोवा सच में एक इस तरह का स्थान है जो सारी दुनिया से पर्यटकों को अपनी तरफ खींच सकता है। वहां पर यूरोपीय भी आते हैं। गोवा हर लिहाज से श्रेष्ठ है। गोवा के समुद्री ‘बीच’ गजब के हैं। गोवा एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही गोवा वासियों के सुसंस्कृत व्यवहार से लेकर सड़कों पर व्यवस्थित ट्रैफिक को देखकर समझ आ जाता है कि गोवा कुछ हटकर है। आखिर बाकी पर्यटन स्थल गोवा जैसे कब होंगे। इस बीच, अभी अमृतसर में और अधिक विदेशी पर्यटकों को लाया जा सकता है। अमृतसर में ही जलियांवाला बाग भी है। विदेशी पर्यटकों को भारत में लाना इसलिए भी जरूरी है कि इससे हमें विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होगी।

फिलहाल स्थिति यह है कि भारत के हर साल हजारों-लाखों नौजवान शिक्षा ग्रहण करने के लिए अन्य देशों में जा रहे हैं। ये मेडिकल से लेकर अन्य विषयों में स्नातक की डिग्री लेने के लिए ही अन्य देशों का रुख करते हैं। स्नातकोत्तर की डिग्री लेने के लिए बाहर जाने वाले अपेक्षाकृत कम ही होते हैं। हर साल इन विद्यार्थियों के अन्य देशों में जाने के कारण देश की अमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च होती चली जाती है। इन लाखों विद्यार्थियों के लिए देश को अरबों रुपया अन्य देशों को देना पड़ता है विदेशी मुद्रा में। भारतीय विद्यार्थी अमेरिका, कनाडा आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, मलेशिया, यूक्रेन और चीन तक में भी चले जा रहे हैं। अगर कोई विद्यार्थी वास्तव में किसी खास शोध आदि के लिए अमेरिका की एमआईटी या कोलोरोडो जैसे विश्वविद्यालयों में दाखिला लेता है तो कोई बुराई भी नहीं है। आखिर अमेरिका के कुछ विश्वविद्यालय अपनी श्रेष्ठ फैक्ल्टी और दूसरी सुविधाओं के चलते सच में बहुत बेहतर हैं। पर यूक्रेन, आयरलैंड और मलेशिया जाने का क्या मतलब है। इनसे देश का विदशी मुद्रा का भंडार कम होता है। हमारे पास विकल्प है कि हम अपने विदेशी मुद्रा के भंडार को विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करके मजबूती दे सकते हैं।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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