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UP Election : तीसरे चरण में अखिलेश यादव के सामने है अपने ही गढ़ में साख़ बचाने की चुनौती

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election) के दो चरणों का मतदान हो चुका है. अब तीसरे चरण (Third Phase Voting) में बीजेपी और समाजवादी गठबंधन ने एक दूसरे को पछाड़ने के लिए पूरी ताक़त झोंक दी है. तीसरे चरण में 59 विधानसभा सीटों पर 20 फरवरी को वोट डाले जाएंगे. तीसरे चरण में चुनाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड को पार करता हुआ अवध क्षेत्र तक पहुंच जाएगा. तीसरे चरण में बीजेपी के सामने पिछले चुनाव में जीती अपनी 49 सीटें बचाने की चुनौती है. यहां सपा के साथ ही इसके अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की साख़ भी दांव पर है.

गौरतलब है कि मैनपुरी के करहल विधानसभा सीट से अखिलेश यादव ख़ुद चुनावी मैदान में हैं. वो पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. उनके सामने बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को उतारा है. बघेल कभी मुलायम सिंह यादव के खासमखास और वफादार रहे हैं. लेकिन 2014 में उन्होंने मुलायम का साथ छोड़कर मोदी की शरण ले ली थी. वो यहां अखिलेश को कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं. ऐसे में करहल का मुकाबला रोचक हो गया है. करहल में दोनों ही दलों का चुनावी प्रचार अभियान चरम पर है. हर दल कोई कसर इस बार नहीं छोड़ना चाह रहा है. दिन में निकल रही तीखी धूप से अधिक तीखी चुनावी प्रचार अभियान की गरमी है. आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है. ऐसे में तीसरे चरण में किस दल को बढ़त मिलती है, यह देखने वाली बात होगी.

हालांकि दो चरणों के मतदान के बाद ही अखिलेश यादव ने सीटों का शतक बनाने का दावा कर दिया है. लेकिन अखिलेश की असली अग्निपरीक्षा तो उनकी पार्टी के पुराने गढ़ यादव लैंड में होनी है. पहले दो चरणों में जाट-मुस्लिम समीकरण काम कर रहे थे. चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि दो चरणों में सालभर से ज्यादा चले किसान आंदोलन से फिर बनी जाट-मुस्लिम एकता के चलते सपा-आरएलडी गठबंधन को काफी फायदा हुआ है. मुस्लिम बहुल सीटों पर बंपर वोटिंग को सपा गठबंधन के हक़ में माना जा रहा है. दो चरणों में बीजेपी के गढ़ समझे जाने वाले शहरी इलाकों में वोटिंग को लेकर उत्साह की कमी थी तो मुस्लिम इलाकों में ग़ज़ब का उत्साह दिखा. तीसरे चरण में मुस्लिम बहुल इलाके नहीं हैं. लिहाज़ा यहां सपा-गठबंधन के लिए बीजेपी को पछाड़ना टेढ़ी खीर है.


प्रदेश के तीन हिस्सों में चुनाव
तीसरे चरण में प्रदेश के तीन हिस्सों में एक साथ वोट पड़ेंगे. कुछ हिस्सा पश्चिमी उत्तर प्रदेश का है, कुछ बुंदेलखंड का और कुछ अवध का. अवध में अयोध्या है. अयोध्या मे राम मंदिर का निर्माण हो रह है. ये बीजेपी के असर वाला क्षेत्र माना जाता है. लिहाज़ा चुनावी तपिश अपना असर दिखाने वाली है. तीसरे चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, कासगंज और हाथरस जैसे पांच जिलों की 19 विधानसभा सीटों पर 20 फरवरी को वोट पड़ेंगे. वहीं, बुंदेलखंड में पांच जिलों झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा जिले की 13 विधानसभा सीटों पर वोटिंग होगी. अवध क्षेत्र के छह जिलों में भी इस दिन वोट डाले जाएंगे. इस क्षेत्र के कानपुर, कानपुर देहात, औरैया, फ़र्रुखाबाद, कन्नौज और इटावा की 27 विधानसभा सीटों पर वोटिंग होनी है.

बीजेपी के सामने प्रदर्शन दोहराने की चुनौती
तीसरे चरण के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सामने पिछले चुनाव का प्रदर्शन दोहराने की बड़ी चुनौती है. पिछले चुनाव में यानि 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इन इलाकों की 59 में से 49 विधानसभा सीटें जीती थीं. बाक़ी बची 10 में से 8 सीटें समाजवादी पार्टी के पास गई थीं. एक सीट पर कांग्रेस और एक सीट पर बहुजन समाज पार्टी को जीत मिली थी. उस समय समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन था. इसलिए, सपा गठबंधन को 9 सीटें मिली थीं. भाजपा जहां अपना प्रदर्शन एक बार फिर दोहराने की कोशिश में है, वहीं समाजवादी पार्टी यहां अपने दबदबे को बढ़ाने की कोशिश कर रही है, कांग्रेस और बसपा भी पूरा जोर लगाती दिख रही है. कभी बसपा बुंदेलखंड में काफी मज़बूत रही है. कांग्रेस का भी यहां दबदबा रहा है. सपा के सामने इन दोनों के दबदबे के बीच बीजेपी को पटखनी देने की चुनौती है.

बहुत अहम है यादव वोट बैंक
तीसरे चरण की 59 में से 30 विधानसभा सीटों पर यादव वोट बैंक की बहुलता है. दरअसल, 16 में से 9 जिलों में यादवों की बहुलता है. इसके बावजूद भी 2017 में सपा के ख़राब प्रदर्शन का कारण यादव विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण होना था. माना जाता है कि पिछले चुनाव में यादवों का बड़ा तबका हिंदुत्व की हवा में बहकर बीजेपी की तरफ चला गया थ. इस बार माहौल को बदलने की कोशिश की जा रही है. अखिलेश यादव के मैनपुरी के करहल सीट से उम्मीदवार बनने के बाद यादव वोट बैंक के पूरी तरह सपा में वापिस लौट आने की उम्मीद बंधी है. गैर यादव वोट के ध्रुवीकरण की आशंका बढ़ गई है. हालांकि, अखिलेश यादव से अलग होकर पार्टी बना लेने वाले शिवपाल यादव इस बार सपा के पक्ष में वोटों को गोलबंद कर रहे हैं. चुनावी मैदान में एक बार फिर मुसलमान, दंगे और अपराधीकरण की बातें हो रही हैं.

जातीय समीकरण साधने की कोशिश
तीसरे चरण के चुनाव में बीजेपी और सपा दोनों ही एक बार फिर जातीय समीकरणों को साधने का प्रयास कर रही हैं. जहां बीजेपी ध्रुवीकरण के सहारे हिन्दू वोटों को एकजुट करने के कोशिशों में है, वहीं अखिलेश ने महानदल और अपना दल (कृष्षा) के ज़रिए ग़ैर यादव पिछड़ी जातियों को साधने की कोशिश की है. ये परंपरागत रूप से बीजेपी का वोट बैंक मानी जाती हैं. पीएम नरेंद्र मोदी ने कानपुर में चुनावी सभा की और इसमें एक बार फिर तुष्टीकरण का मामला उठाया. साथ ही, मुस्लिम महिलाओं के वोट पर भी बात की. इसका बड़ा असर विपक्षी रणनीतिकारों पर हो रहा है. वोट को साधने की कोशिश में ऐसे बयान आ रहे हैं, जो वोटों के ध्रुवीकरण में सहायक हो सकते हैं. पीएम ने परोक्ष रूप से हिंदू वोटरों को एकजुट करने की कोशिश की थी.


सपा के सामने चुनौतियां
तीसरे चरण में बीजेपी के लिए जहां अपनी सीटें बचाने की चुनौती है तो सपा और बसपा की साख़ दांव पर है. पिछले चुनाव में अपने प्रभाव वाले इन ज़िलो में सपा की हुई दुर्गति से उनके परिवार और पार्टी की साख़ मिट्टी मे मिल गई थी. अपने परिवार और पार्टी की साख दोबारा हासिल करने के लिए अखिलेश चुनावी मैदान में किस्मत आजमाने के लिए मैनपुरी जिले की करहल सीट से उतरे हैं. साथ ही उन्होंने अपने चाचा शिवपाल यादव को इटावा की जसवंतनगर सीट से चुनाव मैदान में उतारा है. अखिलेश यादव के सामने अपने गढ़ में खिसक चुके पार्टी के सियासी आधार को दोबारा से हासिल करने की बड़ी चुनौती है. बुंदेलखंड के जिन जिलों की सीटों पर चुनाव हैं, वहां पर पिछली बार सपा-बसपा-कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी. इसके अलावा एटा, कन्नौज, इटावा, फारुर्खाबाद, कानपुर देहात जैसे जिलों में भी सपा को करारा झटका लगा था. जबकि, 2012 के चुनाव में इन जिलों में सपा को 37 सीटें मिली थीं. लेकिन 2017 में वो महज 9 सीटों पर सिमट गई थी. अब अखिलेश के सामने बाज़ी पलटने की बड़ी चुनौती है.

बीजेपी के सामने चुनौती
पिछले चुनाव में तीसरे चरण वाले इन ज़िलो में हिंदुत्व और पीएम मोदी की सुनामी में सपा, बसपा और कांग्रेस सभी का सूपड़ा साफ़ हो गया था. सपा थोड़ी बहुत लाज बचाने में कामयाब रही थी. यहां पर बीजेपी का गैर-यादव ओबीसी कार्ड काफी सफल रहा था. सैनी, शाक्य, कुशवाहा, मौर्य के साथ लोध वोटर एकमुश्त बीजेपी के पक्ष में गए थे, लेकिन इस बार सपा ने भी इन वोटों को साधने का खास इंतजाम किया है. इसकी काट बीजेपी के लिए इस बार बड़ी चुनौती है. अखिलेश बीजेपी से आए स्वामी प्रसाद मौर्य, महान दल के केडी मौर्य और अपना दल की कृष्णा पटेल के सहारे बीजेपी के बोट बैंक में बड़ी सेंध लगा रहे हैं. इन पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों का गठबंधन काफी मज़बूत है.

ध्रुवीकरण की कोशिश
सपा गठबंधन से मिल रही कड़ी चुनौती से निपटने के लिए बीजेपी तीसरे चरण में भी ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है. हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शुरू से ही ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं. पहले दो चरणों में ये कोशिश नाकाम रही है. लेकिन बीजेपी ने उम्मीद नहीं छोड़ी है. मुसलमानों का ख़ौफ दिखाकर बीजेपी अपने कोर वोटर्स को एकजुट रखना चाहती है. वहीं उसकी कोशिश सपा गठबंधन की तरफ खिसक रहे अपने गैरयादव वोटबैंक को वापिस हासिल करने की है. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तीसरे चरण के रण के लिए पूरी ताक़त लगे हुए हैं. अगर तीसरा चरण बीजेपी के हाथ से फिसल गया तो सत्ता की दहलीज़ से वो इतनी दूर हो जाएगी कि इस दूरी को ख़त्म करना अगले चार चरणों में उसके लिए मुमकिन नहीं होगा.

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