ब्‍लॉगर

संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष मजबूत बना

डॉ. प्रभात ओझा 
मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद संयुक्त राष्ट्र महासभा के नए अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। वे 2021-22 के दौरान संयुक्त राष्ट्र की इस आधार संस्था की अध्यक्षता करेंगे। अब्दुल्ला के चुनाव को भारत के संदर्भ में देखने पर स्पष्ट है कि नए अध्यक्ष के जरिए संयुक्त राष्ट्र में हमारा पक्ष मजबूत बना रह सकता है। इसे समझने के लिए निवर्तमान अध्यक्ष तुर्की नागरिक वोल्कन बोजकिर के कश्मीर पर रुख को देखना होगा। बोजकिर पिछले महीने के अंत में पाकिस्तान पहुंचे तो कश्मीर पर विवादित बयान दे आए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को कश्मीर का मसला जोर-शोर से उठाना चाहिए। यह उसका दायित्व है कि उसे संयुक्त राष्ट्र में रखे।
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में दिए इस बयान पर संयुक्त राष्ट्र अध्यक्ष की किरकिरी भी हुई। अभी पिछले हफ्ते ही संयुक्त राष्ट्र अध्यक्ष की उप प्रवक्ता को उनके बयान पर सफाई देनी पड़ी। उप प्रवक्ता ने कहा कि हम बोजकिर के बयान को मान्यता नहीं देते। उन्होंने भारत के केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर को लेकर जो कुछ कहा है, हम आधिकारिक तौर पर उसके पक्ष में नहीं हैं।
अब शाहिद के सुंयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष चुने से पाकिस्तान का महासभा में पक्ष काफी कमजोर हो जाएगा। इस तर्क की पुष्टि के लिए भारत-मालदीव के रिश्तों पर नजर डालनी होगी। अब्दुल्ला यामीन के शासनकाल में मालदीव ने चीन के साथ सम्बंध मजबूत करने की कोशिश जरूर की थी। इससे अलग आमतौर पर भारत अपने इस मित्र देश के साथ सहयोग के भाव ही रखता रहा है। अभी पिछले साल जुलाई महीने में कम्युनिटी डेवेलपमेंट प्रोजेक्ट के लिए भारत ने मालदीव को 55 लाख डॉलर की धनराशि दी थी। सितम्बर में भारत में कोच्चि से मालदीव के कुल्हुधुफुशी के बीच कार्गो फेरी की शुरुआत और मालदीव की मांग पर उसे डॉर्नियर एयरक्राफ्ट देने के निर्णय को भी बढ़ती दोस्ती का हिस्सा माना जा सकता है। कोरोना महामारी को कम करने के लिए मालदीव को 25 करोड़ डॉलर देने की घोषणा भी कम अहम फैसला नहीं है। मालदीव में सबसे बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट ग्रेटर मेल कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट में 6.7 किलोमीटर लंबे पुल निर्माण में भी भारत सहयोग कर रहा है। 
ध्यान देने की बात है कि मालदीव की सत्तारूढ़ पार्टी विपक्ष के आरोपों के बीच भी भारत के साथ सम्बंध मजबूत करने की हर कोशिश कर रही है। विपक्ष ने मालदीव की सरकार पर भारत के अधीन रहकर काम करने तक के आरोप लगाए तो जवाब में सरकार ने कहा कि पिछली सरकार चीन के कर्ज पर पल रही थी। दरअसल, मालदीव में करीब 200 भारतीय सैनिकों की मौजूदगी को विपक्ष ने मुद्दा बनाया और इसे मालदीव में भारत के सैन्य कैंप के रूप में प्रस्तुत किया। सरकार ने इसे स्पष्ट करते हुए बताया कि भारत की ओर से मिले हेलीकॉप्टर्स के संचालन के प्रशिक्षण के लिए इन सैनिकों का रहना जरूरी था। सरकार और विपक्ष की इस तकरार के बीच वहां के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद जब संयुक्त राष्ट्र सहासभा जैसे महत्वपूर्ण संगठन के अध्यक्ष बने हैं, निश्चित ही अपनी सरकार के भारत समर्थक रुख के साथ आगे बढ़ेंगे।
शाहिद एक कामयाब कूटनीतिज्ञ की पहचान रखते हैं। बहुराष्ट्रीय मंचों पर उनका प्रदर्शन बेहतर रहा है। महासभा के अध्यक्ष का पद विभिन्न क्षेत्रीय समूहों के बीच स्थानांतरित होता रहता है। सत्र 2021-22 के लिए एशिया-प्रशांत समूह की बारी है। इसके लिए 2018 में ही मालदीव ने अपने विदेश मंत्री को उम्मीदवार बनाने की घोषणा कर दी थी। भारत के विदेश सचिव ने 2020 में मालदीव यात्रा के दौरान भारत की ओर से शाहिद को समर्थन का एलान किया था।
जनवरी 2021 के बाद अफगानिस्तान के विदेश मंत्री जालमेई रसूल इस पद की दौड़ में शामिल हो गए। भारत के लिए मालदीव और अफगानिस्तान, दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। पाकिस्तान के मुकाबले तटीय रणनीति के क्षेत्र में भारत-अफगानिस्तान एकता गौरतलब रही है। अफगानिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल होने का फैसला बहुत देर से किया। वैसे अफगानिस्तान 1966-67 में 21वीं महासभा की अध्यक्षता कर चुका है। अब 76 वें सत्र के लिए चुने गए मालदीव के अब्दुल्ला शाहिद दुनिया के कूटनीतिक मसलों के साथ एशिया-प्रशांत क्षेत्र के विशेषज्ञ के तौर पर प्रतिष्ठित जानकार हैं। उनके रहते निश्चित ही इस क्षेत्र में और इसके जरिए पूरी दुनिया में भारत के महत्व को समझा जायेगा।  
(लेखक हिंदुस्थान समाचार के न्यूज एडिटर हैं।)
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