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इंदौर : हाउसिंग बोर्ड से निगम ने मांगे एक करोड़

  • April 30, 2025

    हुकुमचंद मिल की जमीन का मालिक बनने के कारण चुकाना पड़ेगा टैक्स

    इंदौर। इंदौर (Indore) नगर निगम (Municipal council) ने मध्य प्रदेश गृह निर्माण (Housing Board) मंडल से हुकुमचंद मिल (Hukumchand Mill) की जमीन के टैक्स के 1 करोड रुपए की मांग की है। इस जमीन का मालिक गृह निर्माण मंडल बन गया है, इसके चलते हुए पिछले वित्त वर्ष का टैक्स उसे चुकाना पड़ेगा।



    पिछले वित्त वर्ष में 29 मार्च के दिन इंदौर नगर निगम के द्वारा हुकुमचंद मिल की जमीन की रजिस्ट्री मध्य प्रदेश गृह निर्माण मंडल के नाम पर की गई है। राज्य शासन के द्वारा लिए गए फैसले के अनुसार इस जमीन पर क्रियान्वित किए जाने वाले प्रोजेक्ट में इंदौर नगर निगम और गृह निर्माण मंडल बराबरी के पार्टनर रहेंगे। इस प्रोजेक्ट से जो कमाई होगी वह कमाई भी इन दोनों विभागों के बीच बराबर बांटी जाएगी। इसमें नगर निगम इस जमीन का मालिक है और जमीन पर किए जाने वाले विकास कार्य पर पूरा खर्चा गृह निर्माण मंडल के द्वारा किया जाएगा। सरकारी नियम के अनुसार किसी भी जमीन पर विकास की अनुमति केवल उसके मालिक को ही मिलती है। इस स्थिति में नगर निगम के द्वारा 218 करोड रुपए में यह जमीन गृह निर्माण मंडल को बेच दी गई है। नगर निगम ने हुकमचंद मिल की 17.9 हेक्टेयर जमीन में से 17.5 हेक्टेयर जमीन की रजिस्ट्री गृह निर्माण मंडल के नाम कराई। यह रजिस्ट्री 22.45 करोड़ रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से कराई गई। पंजीयन के दस्तावेजों में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि यह जमीन 218 करोड़ रुपए में बेची गई है। इस जमीन की गृह निर्माण मंडल के नाम पर 29 मार्च को रजिस्ट्री हो गई है। नए वित्त वर्ष में जमीन की गाइडलाइन बढ़ जाती तो ऐसे में इस जमीन की रजिस्ट्री और ज्यादा कीमत में करना पड़ती। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए ही वित्त वर्ष समाप्त होने से पहले ही इंदौर नगर निगम और गृह निर्माण मंडल के द्वारा हुकुमचंद मिल की इस जमीन की रजिस्ट्री करवाई गई। अब नगर निगम के द्वारा कल ही मध्य प्रदेश गृह निर्माण मंडल के नाम पर एक नोटिस जारी किया गया है। यह नोटिस मंडल के हुकुमचंद मिल की जमीन का मालिक बन जाने के कारण जारी किया गया है। इस नोटिस में मंडल से पिछले वित्त वर्ष के इस जमीन के टैक्स के रूप में एक करोड रुपए की राशि मांगी गई है।

    विवाद का सिलसिला जारी
    इस रजिस्ट्री को लेकर शुरू हुए विवाद का सिलसिला अभी जारी है। दो सरकारी विभागों के बीच आपस में होने वाली रजिस्ट्री राज्य सरकार के संपदा 2.0 सॉफ्टवेयर से नहीं करवाते हुए संपदा 1.0 से करवाई गई। यह रजिस्ट्री एक सर्विस प्रोवाइडर के माध्यम से करवा कर इस सर्विस प्रोवाइडर को कमीशन के रूप में 34 लाख रुपए से ज्यादा की राशि दी गई। इस मामले का भंडाफोड़ होने के बाद से गृह निर्माण मंडल के अधिकारी खामोश है और कोई जवाब नहीं दे रहे हैं।

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