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इस दिन मनाए जाएगी माघ माह की जया एकादशी, जानें पौराणिक कथा

दोस्‍तो हमारें हिंदु धर्मों में धार्मिक त्‍यौहारो का बड़ा महत्‍व है उन्‍ही में शामिल है जया एकादशी (Jaya Ekadashi) । आपको बता दें कि माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी (Jaya Ekadashi) के रूप में मनाते हैं । आपको जानकारी के लिए बता दें कि साल 2021 में 23 फरवरी को मनाए जाएगी जया एकादशी  । जया एकादशी में भगवान नारायण (विष्‍णु) की पूजा अर्चना की जाती है । जया एकादशी व्रत (Jaya Ekadashi) को श्रेष्ठतम व्रतों में से एक माना जाता है। जया एकादशी (Jaya Ekadashi) को अन्नदा या कामिका एकादशी भी कहा जाता है । धार्मिक मान्‍यता के अनुसार जो भी व्‍यक्ति इस व्रत को संपूर्ण विधि विधान व सच्‍ची श्रद्वा से करता है लक्ष्‍मीपति नारायण (Laxmipati narayan) उस पर अपनी कृपा दृष्टि से उसके जीवन में खुशहाली कर देतें हैं । कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से राजा हरिश्चंद्र को उनका खोया राज-पाठ मिल गया था और पुत्र भी जीवित हो उठा था। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से पिशाच योनि का भय खत्म हो जाता है। 

जया एकादशी (Jaya Ekadashi) व्रत शुभ मुहूर्त-



एकादशी तिथि आरंभ- 22 फरवरी 2021 दिन सोमवार को शाम 05 बजकर 16 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त- 23 फरवरी 2021 दिन मंगलवार शाम 06 बजकर 05 मिनट तक।

जया एकादशी व्रत विधि (Jaya Ekadashi Vrat Vidhi)
सुबह सूर्योदय से पहले उठें और स्नान करें । 
 भगवान विष्‍णु का पूजन करें और व्रत का संकल्‍प लें।
 पूजा स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
  धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, पंचामृत से पूजन करें ।
 दिनभर व्रत रखें और रात के समय भगवत जागरण करें। अगले दिन द्वादशी को पूजा-पाठ के बाद दान करें और पारण करें।

जया एकादशी (Jaya Ekadashi)  व्रत कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार  एक बार इन्द्र की सभा में एक गंधर्व गीत गा रहा था। परन्तु उसका मन अपनी प्रिया को याद कर रहा था। इस कारण से गाते समय उसकी लय बिगड़ गई। इस पर इन्द्र ने क्रोधित होकर गंधर्व और उसकी पत्नी को पिशाच योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। 

पिशाच योनी में जन्म लेकर पति पत्नी कष्ट भोग रहे थे। संयोगवश माघ शुक्ल एकादशी (Magha Shukla Ekadashi) के दिन दुःखों से व्याकुल होकर इन दोनों ने कुछ भी नहीं खाया और रात में ठंड की वजह से सो भी नहीं पाये। इस तरह अनजाने में इनसे जया एकादशी (Jaya Ekadashi) का व्रत हो गया। इस व्रत के प्रभाव से दोनों श्राप मुक्त हो गये और पुनः अपने वास्तविक स्वरूप में लौटकर स्वर्ग पहुंच गये। देवराज इन्द्र ने जब गंधर्व को वापस इनके वास्तविक स्वरूप में देखा तो हैरान हुए। गन्धर्व और उनकी पत्नी ने बताया कि उनसे अनजाने में ही जया एकादशी (Jaya Ekadashi) का व्रत हो गया। इस व्रत के पुण्य से ही उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिली है।

नोट- उपरोक्त दी गई जानकारी व सूचना सामान्य उद्देश्य के लिए दी गई है। हम इसकी सत्यता की जांच का दावा नही करतें हैं यह जानकारी विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, धर्मग्रंथों, पंचाग आदि से ली गई है । इस उपयोग करने वाले की स्वयं की जिम्मेंदारी होगी ।

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