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1992 में शपथ से पहले रद्द हुई थी जज की नियुक्ति, विक्टोरिया केस की सुनवाई आज

नई दिल्ली (New Delhi)। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) वकील लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी (Advocate Laxman Chandra Victoria Gauri) की मद्रास हाई कोर्ट में जस्टिस (Justice appointment in Madras High Court) के तौर पर नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर 7 फरवरी को सुनवाई करेगा। पीठ ने कहा कि केंद्र को उनके (गौरी के) नाम की सिफारिश किए जाने के बाद कॉलेजियम ने कुछ घटनाक्रम पर गौर किया है। CJI की अगुआई बेंच ने कहा, ‘चूंकि हमने घटनाक्रम का संज्ञान लिया है, हम इसे कल सुबह सूचीबद्ध कर सकते हैं। हम एक पीठ का गठन कर सकते हैं।’ पीठ में जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला भी थे।

मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै पीठ के समक्ष केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाली महिला वकील को पदोन्नत करने का प्रस्ताव तब विवादास्पद हो गया, जब उनकी भाजपा से कथित संबद्धता के बारे में खबरें सामने आईं। मद्रास HC के बार के कुछ सदस्यों ने चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर गौरी को एचसी की अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश को वापस लेने की मांग की थी। पत्र में आरोप लगाया गया था कि गौरी ने ईसाइयों और मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने वाली टिप्पणी की थी।


तत्काल सुनवाई की अपील करते हुए सीनियर वकील रामचंद्रन ने एक फैसले का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि इस चरण में भी अदालत हस्तक्षेप कर सकती है। वकील ने कहा, ‘मैंने अटॉर्नी (जनरल) को एक कॉपी दी है और अटॉर्नी जनरल से बात की है। कृपया फैसला देखें जिसमें कहा गया है कि राहत अभी भी दी जा सकती है।’ चलिए हम आपको बताते हैं कि आखिर वो कौन सा फैसला था जिसका विक्टोरिया के मामले में हवाला दिया गया है। वो कौन सा घटनाक्रम है जब शपथ से पहले सुप्रीम कोर्ट ने जज की नियुक्ति रद्द की थी।

कुमार पद्म प्रसाद बनाम केंद्र सरकार केस, 1992
बात 1992 की है। हाई कोर्ट में जज की नियुक्ति का नोटिफिकेशन जारी हो चुका था, इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने उसे रद्द कर दिया। इसे कुमार पद्म प्रसाद बनाम केंद्र सरकार केस के तौर पर जाना जाता है। केएन श्रीवास्तव के गुवाहाटी हाई कोर्ट के जस्टिस के तौर पर नियुक्ति का आदेश जारी हुआ था, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। श्रीवास्तव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। यह भी दावा किया गया कि ऐडवोकेट के तौर पर उन्होंने प्रैक्टिस नहीं की और न ही कभी ज्यूडिशियल ऑफिसर रहे। याचिका में कहा गया कि श्रीवास्तव हाई कोर्ट के जस्टिस के लिए अनुच्छेद-217 के तहत पात्र नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई। एससी ने नियुक्ति प्रक्रिया के अमल पर रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि इस तरह का केस पहली बार सामने आया है। सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने नियुक्ति आदेश को खारिज कर दिया और शपथ पर रोक लगा दी। तीन सदस्यीय बेंच ने यह फैसला सुनाया था जिसमें जस्टिस कुलदीप सिंह, जस्टिस पीबी सावंत और जस्टिस एनएम कसलीवाल शामिल थे। पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ‘हमारे पास यह दिखाने के लिए और कोई मैटेरियल नहीं है कि श्रीवास्तव ने किसी भी अदालत की अध्यक्षता की हो, किसी भी मुकदमे का संचालन किया हो या फिर किसी दीवानी मामले में फैसला सुनाया हो।’

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