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विशेष कानूनों के तहत बंद कैदियों की अंतरिम रिहाई की मांग पर फैसला सुरक्षित 

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने विशेष कानूनों जैसे यूएपीए के तहत जेल में बंद कैदियों को अंतरिम जमानत पर रिहा करने की मांग करनेवाली सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। चीफ जस्टिस एसए बोब्डे की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि वे इस संबंध में एक तार्किक फैसला करेंगे ताकि महाराष्ट्र के हाई पावर्ड कमेटी को कैदियों की रिहाई की शर्तें बदलने की छूट होगी।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वकील एसबी तालेकर ने कहा कि महाराष्ट्र की जेलों में करीब दस कैदियों की मौत हो गई है। स्थिति काफी विकट है। याचिका में कहा गया है कि कोरोना के संक्रमण के दौर में कैदियों को जेल से रिहा करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया जाए। पाटकर के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता मीरा सदानंद कामत औऱ पाटकर के एनजीओ नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट भी याचिकाकर्ताओं की सूची में शामिल है। याचिका में बांबे हाईकोर्ट के पिछले 5 अगस्त के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें विशेष कानूनों के तहत दोषी करार दिए गए कैदियों को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया था।
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 23 मार्च को अपने आदेश में कोरोना संक्रमण को देखते हुए सभी राज्य सरकारों को हाई पावर्ड कमेटी का गठन कर जेल में बंद कैदियों को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था। महाराष्ट्र में भी हाई पावर्ड कमेटी का गठन किया गया है जिसने निर्देश दिया था कि उन सभी कैदियों को जिन्हें सात साल या उसे कम की सजा मिली है उन्हें अंतरिम जमानत या इमरजेंसी पेरोल पर रिहा किया जाए। हालांकि हाई पावर्ड कमेटी ने ये भी कहा था कि ये आदेश विशेष कानूनों या गंभीर आर्थिक अपराधों के तहत जेल में बंद कैदियों पर लागू नहीं होगा।
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