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लाखों का पैकेज छोड़ पति ने संभाला घर का चूल्हा-चौका, पढ़ाई कर पत्नी बनी जज

रोहतक: पति घर के बाहर काम करेगा और पत्नी चूल्हा-चौका करेगी, यह कहावत अब बदल चुकी है. पति-पत्नी अब कंधे से कंधा मिलाकर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं, बल्कि यूं कहें एक-दूसरे की हौंसला अफजाई भी कर रहे हैं, जोकि बदलते समाज के लिए एक सुखद संकेत है. हरियाणा के रोहतक में भी एक ऐसा ही दंपत्ति है, जिसने समाज को एक नई दिशा दी है और सोचने को मजबूर किया है कि अब महिला-पुरुष में कोई कमतर नहीं है.

दोनों मिलजुल कर मेहनत करें तो कुछ भी असंभव नहीं है. ऐसी हजारों कहानियां मिल जाएंगी, जहां पर यह सुनने को मिलता है कि हर आदमी की सफलता के पीछे किसी औरत का हाथ होता है लेकिन हम उस औरत की बात कर रहे हैं जिसकी सफलता के पीछे एक आदमी का योगदान है और वह आदमी कोई और नहीं बल्कि उसका पति है. पिछले दिनों उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा का परीक्षा परिणाम आया तो उसमें रोहतक की मंजुला भालोठिया ने प्रथम स्थान हासिल किया.

यह उपलब्धि सामान्य-सी नजर आ रही है, क्योंकि हर परीक्षा को कोई ना कोई तो टॉप करता ही है, लेकिन मंजुला की कहानी कुछ अलग है. मंजुला और उसके पति सुमित अहलावत रोहतक में रहते हैं. सुमित एक कंपनी में लाखों रुपए के पैकेज की नौकरी करते थे. मंजुला जज बनना चाहती थी और यह उसका सपना था लेकिन इसके बीच में बच्चों की जिम्मेदारी एक बड़ा चैलेंज था. बच्चों की देखभाल के साथ-साथ पढ़ाई करना मुश्किल काम था. सुमित ने मंजुला की पढ़ाई के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी और खुद घर की जिम्मेदारी संभालने लगे.


घर का खर्च चलाने के लिए मंजुला पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी भी करती थी, वहीं, सुमित बच्चों की देखभाल के लिए, उनके स्कूल के लिए और घर के किचन में खाना बनाने के लिए पूरी तरह से एक ‘हाउस हस्बैंड’ के तौर पर जिम्मेदारी निभाने लगे, ताकि मंजुला की पढ़ाई में किसी तरह का व्यवधान ना आए. सुमित ने नौकरी छोड़ दी तो उसके दोस्तों और रिश्तेदारों ने उसे काफी समझाया कि यह कदम ठीक नहीं है और तुम एक महिला की तरह घर के चूल्हा चौका करने लग गए, यह तुम्हारे भविष्य के लिए ठीक नहीं रहेगा, तुम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हो.

सुमित ने किसी की नहीं सुनी और खुशी-खुशी घर की जिम्मेदारियों का निर्वहन करने लगा, वहीं, मंजुला ने तीन बार ज्यूडिशियल की परीक्षा दी, लेकिन सफल नहीं हो पाई. मंजुला कमजोर पड़ती तो सुमित उसे हौसला देता और सिर्फ यही कहता कि अगली बार अच्छा होगा. 12 सितम्बर को जब उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा का रिजल्ट आया तो सुमित ने ही रिजल्ट देखा और मंजुला के सामने गया तो उसकी आंखें भर आई. मंजुला ने सोचा कि इस बार भी उसका सेलेक्शन नहीं हुआ लेकिन थोड़ी देर चुप होने के बाद दोनों तब खुशी से चीख उठे.

जब सुमित ने बताया कि उसने टॉप किया है तो मंजुला और सुमित ने बताया कि कैसे उन्होंने एक-दूसरे को हौसला देकर इस मुकाम को हासिल किया है और सुमित ने जिस तरह से एक ‘हाउस हस्बैंड’ बनकर पूरे घर की जिम्मेदारी संभाली वह काबिले तारीफ है. इस तरह की कहानी हरियाणा के देहात समाज में मिलनी बेहद कठिन है, लेकिन मंजुला की सफलता ने लोगों को सोचने को मजबूर कर दिया कि महिला और पुरुष दोनों समान हैं। कोई कम नहीं है, इसलिए एक दूसरे का सहारा बनना चाहिए.

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