आचंलिक

जिन्दगी को प्रसन्नता के साथ जीना ही जीवन है-राष्ट्रसंत की धर्मसभा हुई

महिदपुर। राष्ट्र-संत ललितप्रभजी महाराज ने कहा कि इस जिंदगी को हम भुनभुनाते हुए नहीं गुनगुनाते हुए जीएं। अपने जीवन का पहला मूलमंत्र इसे बना लें कि मैं यह जीवन आह आह करके नहीं वाह वाह कहते जीऊंगा। जब भी हम वाह कहते हैं तो यही जिंदगी हमारे लिए स्वर्ग बन जाती है और जब हम आह कहते हैं तो जिंदगी नर्क-सी हो जाती है। अगर हमारे लिए थाली में भोजन आया है तो शुक्रिया अदा करो देने वाले भगवान का, अन्न उपजाने वाले किसान का और घर की भागवान का। जरा कल्पना करें आज से 50 साल पहले लोगों के पास आज जैसा भौतिक सुख भले कम था पर सुकून बहुत था। उस वक्त जब सुकून बहुत था, तो आदमी बड़े चैन से सोता था। आज सुख है तो भी लोग पूरी रात चैन से सो नहीं पाते। आज आदमी की जिंदगी कैसी गजब की हो चुकी है, बेडरूम में एसी और दिमाग में हीटर। संत प्रवर रविवार को खरतरगच्छ श्री संघ द्वारा असाडी गली में आयोजित दो दिवसीय प्रवचन माला के शुभारंभ पर जीवन को कैसे स्वर्ग बनाएं विषय पर श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारा यह जीवन परम पिता परमात्मा का हमारे लिए दिया हुआ बहुत बड़ा वरदान है। यदि कोई मुझसे पूछे कि दुनिया में सबसे कीमती वस्तु क्या है तो मैं कहूंगा जीवन। हो सकता है दुनिया में सोना, चांदी, हीरा, माणक, मोती का मूल्य होता हो लेकिन जीवन है तो चांद-सितारों का और इन सबका मूल्य है। यदि जीवन ही नहीं तो इनका सबका मूल्य ही क्या। यह हमारी जिंदगी परम पिता परमेश्वर का दिया प्रसाद है, हम भी इसका सुंदर निर्माण कर सकते हैं। दिक्कत केवल यहीं है कि पानी, बिजली, गैस घर में आए तो उसका पैसा उसकी कीमत हमें लगती है, अगर जिंदगी आ गई तो उसकी हमें कोई कीमत नहीं लगती। बेकार में जाती बिजली, बेकार में जाती गैस और बेकार हो रहा पानी हमें खटकता है अगर जिंदगी का समय बीता जाए तो हमें वह खटकता नहीं। कोरोना काल ने लोगों को जीवन की सांसों की कीमत याद दिला दी, ऑक्सीजन और चंद सांसों की कीमत तब उसे पता चली। इन बंगलों, इन फार्म हाउसों, इन महलों की उम्र कितनी, आंख बंद करने जितनी। आंख बंद कब हो जाए, यह भी हमें पता नहीं।


दुनिया में हर आदमी तीन पेज की डायरी साथ लाता है
राष्टसंत ने जीवन के मर्म को सुगम-बोधगम्य शैली में समझाते हुए कहा कि दुनिया में हम जब आते हैं तो अपने साथ 3 पन्नों की डायरी लेकर आते हैं। जिसका का पहला और अंतिम पन्ना ऊपरवाला लिखता है। उस डायरी का पहला पन्ना है- जन्म। और आखिरी पन्ना है मृत्यु। उस डायरी का पहला और आखिरी पन्ना हमारे हाथ में नहीं है, केवल बीच का पन्ना हमारे हाथ है, जिसका नाम है जिंदगी।

सफलता और शांति के ये हैं मायने
संतप्रवर ने सफलता और शांति के मायने समझाते हुए जीने की राह बताई। आपने जो चाहा वो मिल गया, इसका नाम है सफलता। और आपको जो मिला उसे स्वीकार कर लिया, इसका नाम है शांति। अक्सर आदमी के पास जो है, उसका वह आनंद नहीं उठाता और जो नहीं है, उसका रोना रोकर दुखी होता रहता है। कार्यक्रम में श्रीपाल चोपड़ा, अजय चोपड़ा, नरेंद्र नाहर, कमलेश राखेचा, संजय चोपड़ा, शैलेश चोपड़ा, आशीष चोपड़ा, अनुराग चोपड़ा विशेष रूप से उपस्थित थे।

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