खरी-खरी ब्‍लॉगर

देख ली अंबानी की नादानी… अब तो बदल दो घर-घर की कहानी


एक कुबेर की दास्तां… पत्नी के गहने बेचने तक की नौबत…
घर-घर की कहानी… क्या करेगा अंबानी…सडक़ से सदी के शहंशाह तक का सफर तय करने वाले धीरूभाई ने इतनी दौलत कमाई… इतनी शौहरत पाई… इतनी ऊंची जगह बनाई… फिर भी संस्कार और परिवार की बुनियाद घर में ठहर नहीं पाई… अहंकार का चरम दो भाइयों के बीच दीवार बन गया… दौलत की खातिर घर तो घर दिलों तक का बंटवारा अपना इतिहास लिख गया… वक्त चंद कदम ही चला कि इस बंटवारे का परिणाम भी जमाने को दिख गया… मां के आशीर्वाद और पिता संस्कार का दामन थामा…एक भाई सीढिय़ां चढ़ता हुआ आसमान छू रहा है… और अपना हिस्सा झपटने वाला दूसरा भाई सब कुछ गंवाकर अपनी हालत पर बिलख रहा है… एक ही घर में पले , एक ही अंगने में खिले दो फूल में से एक गुलशन को गुलजार कर रहा है तो दूसरा मुरझाकर आंगन उजाड़ रहा है… जमाना दोनों को निहार रहा है, लेकिन कारण और परिणाम समझ नहीं पा रहा है…भविष्य की मजबूती घर की एकता में होती है… हर घर में एक मजबूत तो दूसरी कमजोर टहनी रहती है… कमजोर टहनी पर वजन नहीं लादा जाता, लेकिन वह टहनी इसे अपना तिरस्कार समझती है और बोझ उठाने की जिद करती है… यह जिद ही बंटवारे का कारण बनती है… कमजोर टहनी अपने हिस्से का पेड़ लेकर अकड़ती है… लेकिन जैसे ही बोझ की मार उस पर पड़ती है तो टूटकर जमीन जा गिरती है… फिर जमाने के लिए वह टहनी केवल कूड़े का हिस्सा बनकर रह जाती है… मजबूत टहनी पेड़ का अस्तित्व बनकर छाया का काम करती है… धीरूभाई के घर की यह मजबूत टहनी मुकेश अंबानी के रूप में लहलहा रही है तो अनिल अंबानी के नाम की टहनी कूड़ा बनकर लजा रही है… इस परिणाम का कारण यह है कि धीरूभाई वक्त की दस्तक को समय रहते सुन नहीं पाए… जब मुकेश ने संस्कारी परिवार की बहू को अपनाया और अनिल ने एक ऐसी फिल्मी सुंदरी से घर को सजाया, जिसने केवल कहानियों में जीवन बिताया… जिसने दौलत देखी उसने कमाने का सलीका नहीं देखा… जिसने कामयाबी के लिए बहाए पसीने से कपड़े नहीं भिगोए… जिसने परिवार की एकता की जरूरतों का नहीं समझा… जिसने मजबूत टहनी के आसरे को नहीं परखा… जिसने पति को बरगलाया और बंटवारा करवाया… सदी के शहंशाह का बेटा आज जमाने को दुखड़ा सुना रहा है… पत्नी के जेवर बेचकर वकीलों की फीस चुका रहा है… लेकिन वक्त की इस हकीकत को सुन नहीं पा रहा है… जो धरती के काबिल नहीं वह आसमां से मुकाबला करते हैं… जो न वक्त से डरते हैं… न वक्त से समझते हैं वो इसी तरह धरती पर बिखरते है… फिर भी इतना तक नहीं समझते हैं कि कुबेर का खजाना पाकर भी जब अनिल अंबानी सडक़ पर आ सकता है तो मुट्ठीभर दौलत के लिए रिश्तों में दरार बनाने वाला कैसे अपनी किस्मत लिख सकता है… मजबूती और मगरूरी एकता में होती है… उदासी भी उस घर में जाने से पहले सौ बार सोचती है, जहां दो भाइयों की ताकत रहती है… मुसीबतें भी वहां से बचकर निकलती हैं, जहां ढेरों बच्चों की फौज रहती है… जिस घर की महिलाओं में कोई लक्ष्मी तो कोई दुर्गा बनकर सुख, समृद्धि और शक्ति का अहसास कराती है, किस्मत वहीं मुस्कराती है…

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