इंदौर न्यूज़ (Indore News)

मेघदूत घोटाले में सजा से घबराहट में महापौर परिषद्, तो अफसर भी हुए सतर्क

आज तात्कालिक लालच या दबाव में साइन कर देने से बुढ़ापे में कोर्ट-कचहरी और जेल जाने के फजीते, मगरमच्छ तो बच निकलते हैं, फंस जाती है छोटी मछलियां

इंदौर। 21 साल पहले उजागर हुए मेघदूत उपवन घोटाले (Meghdoot Upvan Scam) में अभी कोर्ट ने तीन-तीन साल की सजा पूर्र्व पार्षदों और अधिकारियों को सुनाई है, जिसके चलते पूरे नगर निगम (Nagar Nigam) में हडक़म्प मच गया और अब वर्तमान महापौर परिषद् के सदस्यों में भी घबराहट है, तो अधिकारी भी सतर्क हो गए। सभी का मानना है कि तात्कालिक लालच और राजनीतिक दबाव के चलते किसी भी प्रस्ताव पर साइन कर देने का खामियाजा सालों बाद बुढ़ापे में भुगतना पड़ता है और तब अकेले ही कोर्ट से लेकर जेल तक जाने के फजीते खुद ही भुगतना पड़ते हैं और कोई मदद नहीं करता।


बिना टेंडर के काम कराना मजबूरी…फंस जाते हैं अधिकारी और नेता

मेघदूत उपवन घोटाले (Meghdoot Upvan Scam) में ही दोषी असल मगरमच्छ तो साफ बच निकले और संचालन के लिए बनाई समिति के सदस्य उलझ गए, जिनका इस पूरे घोटाले से कोई दूर-दूर तक लेना-देना नहीं है और ना ही उन्हें किसी तरह का लाभ इससे हुआ, लेकिन सजा पाने के बाद अब तात्कालिक महापौर परिषद के साथ ही महापौर और अन्य अधिकारियों में इस बात को लेकर दहशत है कि नियमों से विपरित कराए गए किसी भी काम का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है। इसके साथ ही ठेकेदारों में भी खौफ व्याप्त हो गया है, जबकि हकीकत यह है कि निगम द्वारा कई काम तत्काल रूप से कराए जाते हैं, जिनके लिए कोई टेंडर नहीं होते हैं और सामयिक व्यवस्था को अंजाम देने के लिए मौखिक रूप से किए गए आदेशों के तहत कई निर्माण कार्य करना और कराना नेताओं के साथ ही अधिकारियों की भी मजबूरी होती है, जिस तरह से अभी प्रवासी भारतीय सम्मेलन और इन्वेस्टर्स मीट के दौरान नगर निगम ने पूरे शहर में ताबड़तोड़ काम कराए और उसके लिए कोई टेंडर या अनुमति नहीं ली गई। ऐसे कार्य कराना निगम की जहां मजबूरी होती है, वहीं इसमें नियमों की अह्वेलना स्वाभाविक है, लेकिन यह काम कानूनी दृष्टि से अपराध की श्रेणी में आते हैं और उसका खामियाजा अधिकारियों के साथ नेताओं को भी भुगतना पड़ सकता है। इसका ताजा उदाहरण यह है कि कल ही कांग्रेस ने वार्ड क्र. 9 में बने अटल द्वार पर लगी एसईपी शीट का मुद्दा उठाया था, जिसका काम पूरा हो चुका है, लेकिन अब टेंडर की खानापूर्ति की जा रही है। ऐसे मामलों की शिकायत का परिणाम सालों बाद आने और सजा तक होने की आशंका के चलते नेताओं के साथ ही अधिकारियों में भी खौफ बना हुआ है। उसके पहले भी सिंहस्थ जैसे कामों को ताबड़तोड़ अंजाम दिए जाने के बाद तात्कालिक अधिकारी आज तक जांच में फंसे हुए हैं।

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