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‘मन की बात’ के संदेश उर्दू में.., BJP ने बनाया UP में मुस्लिमों को साधने का मेगा प्लान

लखनऊ (Lucknow)। हिंदी पट्टी (Hindi Patti) और हिंदुत्व वाली पार्टी (Hindutva party) के रूप में पहचान बनाने वाली बीजेपी (BJP) अब यूपी (UP) में अपनी राजनीति बदलना चाहती है. इस नए दौर की बीजेपी (New era BJP) को हिंदुत्व पर तो फोकस करना है, लेकिन मुस्लिम का वोट (muslim vote) भी चाहिए. पहले जिस समुदाय से अलग ही दूरी दिख जाती थी, अब वहां रुख बदल गया है. इसी वजह से अब बीजेपी उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में मुस्लिमों को अपने पाले में लाने के लिए अलग ही रणनीति पर काम कर रही है. इस रणनीति के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की मन की बात के कई संदेशों को एक किताब के रूप में मुस्सिम समुदाय के बीच वितरित किया जाएगा।


मन की बात से मुस्लिमों का वोट, क्या कनेक्शन?
बताया जा रहा है कि बीजेपी 150 पन्नों की इस किताब की एक लाख कॉपियां छपवाने जा रही है और फिर रमजान के समय उन्हें वितरित किया जाएगा। उदेश्य एक है- पीएम मोदी की मन की बात के हर संदेश को मुस्लिम समुदाय तक पहुंचाना है। बड़ी बात ये है कि उर्दू में इस किताब को छापा जा रहा है, यानी कि मुस्लिमों को साधने के हर तरीके पर फोकस किया जा रहा है. अब क्योंकि ये मिशन बड़ा है, ऐसे में इसका प्रचार भी उसी तरह से किया जाएगा. पार्टी रमजान के मौके पर एक बड़ा कार्यक्रम करने वाली है. उस कार्यक्रम के जरिए 80 लोकसभा सीटों में मुस्लिम समुदाय के बीच मन की बात किताब का वितरण किया जाएगा. यहां भी मुस्लिम स्कॉलर्स, छात्र और उर्दू रीडर्स को पार्टी अपनी टारगेट आडियंस मान रही है. इसी रणनीति के जरिए यूपी में लोकसभा की 14 हारी हुई सीटों पर बाजी पलटने की तैयारी है।

इस बारे में बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने कहा है कि मन की बात के जरिए हम मुस्लिम समाज के बीच में सरकार की प्राथमिकताओं को पहुंचाएंगे. जो बुक भी छप रही है वो 2022 के मन की बात के 12 एपिसोड का एक निचोड़ है। इस किताब के जरिए उन हारी हुई 14 लोकसभा सीटों पर नजर है जहां पर विपक्ष ने मुस्लिमों के मन में बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश की है। वैसे उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों को साधने की ये तो एक सिर्फ एक कड़ी है. बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में एक पूरा पांच प्वाइंट फॉर्मूला तैयार कर रखा है. उस फॉर्मूले के तहत मुस्लिम स्नेह मिलन सम्मेलन कार्यक्रम, सूफी सम्मेलन, पसमांदा सम्मेलन पर खास फोकस दिया जा रहा है. यहां भी स्नेह सम्मेलन को काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि इस एक कार्यक्रम के जरिए बीजेपी मुस्लिम समाज को ‘एक देश एक डीएनए’ का संदेश देना चाहती है।

स्नेह-सूफी सम्मेलन, दिल जीतने की सीधी कवायद
इसकी शुरुआत बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा ईद के बाद पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर जिले से करेगी। इन सम्मेलनों के जरिए मुस्लिमों के दिल में जगह बनाने की कोशिश है क्योंकि वेस्टर्न यूपी में मुस्लिम जाट, मुस्लिम गुर्जर, मुस्लिम राजपूत, मुस्लिम त्यागी जैसी बिरादरियां हैं, यही जातियां हिंदू समाज के बीच पाई जाती हैं और उनके बीच आपसी रिश्ते बहुत अच्छे हैं. कभी इन हिंदू और मुस्लिम जातियों के पूर्वज एक थे. ऐसे में माना जाता है कि अनुवांशिक तौर पर उनका डीएनए भी एक होगा. इसी तरह सूफी कार्यक्रमों की भी अपनी अहमियत है और बीजेपी यूपी में इसे भी एक सियासी हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहती है।

इसे ऐसे समझ सकते हैं कि यूपी में मुसलमानों का बड़ा तबका बरेलवी और सूफी विचारधारा का है जो बहुत ज्यादा कट्टर भी नहीं होते हैं. मोदी सरकार के आने के बाद से लगातार सूफीज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है और राजनीतिक रूप से भी उन्हें अहमियत मिली है. ऐसे में पार्टी यूपी में मजारों पर चादर चढ़ा एक अलग तरह का संवाद स्थापित करना चाहती है. इसी तरह बीजेपी की नजर यूपी में मुस्लिमों के ओबीसी तबके पर है, जिसे पसमांदा कहा जाता है. इस समुदाय के लिए भी बीजेपी रणनीति पर काम कर रही है. सहारनपुर से लेकर रामपुर और बरेली तक पसमांदा मुस्लिम सम्मेलन किए जा रहे हैं।

पसमांदा यूपी में बनेंगे निर्णायक?
पसमांदा यानी मुसलमानों के पिछड़े वर्गों की उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की कुल आबादी में 85 फीसदी हिस्सेदारी मानी जाती है. यहां मुसलमानों की 41 जातियां इस समाज में शामिल हैं, इनमें कुरैशी, अंसारी, सलमानी, शाह, राईन, मंसूरी, तेली, सैफी, अब्बासी, घाड़े और सिद्दीकी प्रमुख हैं, बीजेपी इन्हीं मुस्लिम समाज के इस बड़े वर्ग को अपने पाले में लाने के प्रयास के तहत जगह-जगह पसमांदा सम्मेलन आयोजित कर रही है. वैसे यूपी की राजनीति का एक और बड़ा सियासी गणित है जिस वजह से बीजेपी मुस्लिमों को अपने साथ लाना चाहती है. 80 लोकसभा सीटें जीतने का जो महत्वकांक्षी प्लान तैयार किया गया है, उसे हासिल करने के लिए मुस्लिमों का साथ आना जरूरी है।

असल में उत्तर प्रदेश में करीब 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं, जो दो दर्जन से ज्यादा जिलों की सियासत पर प्रभाव डालते हैं. यहां 20 से 65 फीसद तक मुस्लिम आबादी है. सूबे के 90 से अधिक विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में होते हैं तो 29 लोकसभा सीटों पर प्रभाव रखते हैं. वैसे राज्य के साथ-साथ देश के मुस्लिमों के लिए भी बीजेपी ने एक खाका तैयार कर लिया है. मोदी मित्र बना पार्टी जमीन पर कई समीकरण बदलना चाहती है. घर-घर जा मुस्लिम समुदाय को सरकार की नीतियों के बारे में बताया जाएगा।

अब बीजेपी ने तो अपना मेगा प्लान तैयार कर लिया है, लेकिन विपक्ष इसे तुष्टीकरण की राजनीति मान रहा है. वो बीजेपी की इस मुहिम को सिर्फ राजनीति से प्रेरित मान रहा है. जोर देकर कहा जा रहा है कि बीजेपी मुस्लिम समाज के हित में नहीं सोचती है।

बीजेपी का अलग प्रयास, विपक्ष बोला- तुष्टीकरण
सपा नेता अमीक जमई कहते हैं कि बीजेपी की विचारधारा ही पिछड़ों और मुस्लिमों के खिलाफ वाली है. पीएम मोदी की भी ऐसी ही सोच है. अभी तक तो कोई पूर्णकालिक केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री तक नहीं बनाया गया है. सिर्फ मुस्लिमों के हाथ में भीख का कटोरा दे दिया गया है, बुलडोजर कार्रवाई के दौरान भी भेद भाव हुआ है. संघ और बीजेपी सिर्फ मुस्लिमों को डराने का काम कर रही है और फिर हिंदुत्व के जरिए वोट मांग रही है. कांग्रेस नेता सुरेंद्र राजपूत ने भी बीजेपी की नीयत पर सवाल उठाते हुए बोला है कि पीएम मन की बात कर सकते हैं, लेकिन लोगों के मन की बात नहीं करते. किसानों के मन की बात नहीं करते. चीन, अडानी जैसे मुद्दों पर नहीं बोलते. अब ये उर्दू में ट्रांसलेट करें या फ्रेंच में, लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता।

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