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बेंगलुरु की बारिश और नोयडा ट्वीन टावर के ध्वस्त होने के संदेश

– आर.के. सिन्हा

देश की आईटी राजधानी बेंगलुरु में आफत की बारिश ने सारे महानगर को जलमग्न करके रख दिया। जिस बेंगुलरु में सारी दुनिया की प्रमुख आईटी कंपनियों के सैकड़ों दफ्तरों में लाखों पेशेवर काम करते हैं, वह घुटनों पर आ गया। इस बारिश के कहर ने आम इंसान से लेकर अरबपतियों तक को नहीं छोड़ा। बारिश से सड़कों पर भारी जाम लग गए, रेल-हवाई सेवायें बुरी तरह प्रभावित हुई। घरों में पानी जाता रहा, स्कूल-कॉलेज, दफ्तर सब बंद हो गए। ये स्थिति अब लगभग हर साल किसी खास शहर या महानगर की होने लगी है। योजनाएं बनती हैं ताकि बारिश के बाद होने वाली अव्यवस्था और अराजकता की पुनरावृत्ति न हो। पर ऐसा लगता है कि ये सारी योजनाएं फाइलों में गुम हो जाती हैं। भगवान जाने उन योजनाओं के लिए पारित बजट का क्या होता है।

बेंगलुरु ने भारत को एक अलग तरह की पहचान दिलाई है। सारे देश-दुनिया के आईटी पेशेवर यहां पर आकर काम करना पसंद करते हैं। वैसे तो कई आईटी कंपनियों ने अब टियर-2 और टियर-3 के शहरों की ओर भी अपना रुख करना चालू कर दिया है। वे इन शहरों में अपने बड़े कैंपस भी स्थापित कर रही हैं। इससे वहां भी लाखों नई नौकरियां पैदा होंगी। पर बेंगलुरु का स्थान तो कोई नहीं ले सकता है। वहां पर विप्रो, टीसीएस, इंफोसिस, एचसीएल, माइक्रोसाफ्ट जैसी विश्व विख्यात कंपनियों के भी कैंपस है। उस बेंगलुरु का बारिश के पानी में डूबना शर्मनाक है।

हमें इस बारे में गंभीरता से सोचना होगा कि भारत की शान बेंगलुरू शहर को किस तरह से बारिश या प्राकृतिक आपदा से सुरक्षित रखा जाए। हमारा आईटी उद्योग नई प्रौद्योगिकी और उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करके निर्यात में बड़ा योगदान दे रहा है। आईटी कंपनियां उच्च प्रौद्योगिकी वाले उत्पादों पर ध्यान दे रही हैं। आईटी उद्योग ने शानदार विकास दर भी दर्ज किया है। अब राज्य सरकार तथा स्थानीय निकाय को बेंगलुरु को विश्वस्तरीय शहर बनाना होगा।

बेंगलुरु के आईटी सेक्टर का एक सकारात्मक पक्ष यह भी रहा कि इसमें महिलाओं को भरपूर रोजगार मिल रहा है। आप बेंगलुरु में बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड की भी आईटी पेशेवर महिलाओं को भी बड़ी संख्या में देख सकते हैं। एक मोटे अनुमान के मुताबिक, बेंगलुरु की आईटी कंपनियों ने 45 फीसदी महिला पेशेवर काम कर रही हैं। भारत को आईटी सेक्टर में निर्यात से भारी-भरकम विदेशी मुद्रा हासिल होती है। भारत के निर्यात और जीडीपी में आईटी सेक्टर का योगदान लगातार बढ़ रहा है। भारत के कुल निर्यात में सर्विस सेक्टर निर्यात का योगदान भी 40 फीसदी के करीब है। सर्विस सेक्टर के कुल एक्सपोर्ट में 50 फीसदी योगदान केवल आईटी सेक्टर का है। भारत के आईटी सेक्टर के निर्यात का 85 फीसद हिस्सा मात्र बेंगलुरु से ही प्राप्त होता है।

ऐसे कमाऊ शहर का डूबना सचमुच बड़ा ही दु:खद है। बारिश के कारण अमेजन, स्विगी जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों ने बारिश और बाढ़ के चलते कुछ समय के लिए अपनी सर्विस भी सस्पेंड कर दी है। तमाम कंपनियों का काम थम- सा गया। आईटी कंपनियां अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम की मंजूरी दे रही हैं। जब सब कुछ हो गया तो बेंगलुरु नगर निगम ने अतिक्रमण की पहचान की है। निगम का कहना है कि इन्हीं की वजह से शहर में बारिश का पानी भर रहा है। पर यह काम पहले क्यों नहीं हुआ।

बेंगलुरु में हालात इतने खराब हो गए कि आईटी पेशवरों को ट्रैक्टर और क्रेन पर चढ़कर ऑफिस जाना पड़ा। बेंगलुरु में जलभराव के चलते बिजली की सप्लाई कई दिनों बंद है। शहर के कुछ हिस्सों में पीने के पानी का भी भयंकर संकट हो गया है। कुछ इलाकों में टैंकर्स के जरिए पानी पहुंचाया जा रहा है। बारिश, बाढ़ की वजह से पावर सप्लाई में भारी दिक्कतें आ रही हैं।

पिछले कुछ सालों के दौरान देश की जनता ने तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई, दिल्ली और मुंबई में भी बारिश से हुई तबाही को देखा। हम आपातकालीन स्थितियों का सही से सामना करने में असमर्थ साबित हो रहे हैं। शहरों को मरने से बचाना होगा। इन्हें रहने लायक बनाये रखने की आवश्यकता है। इनसे ही देश को हर साल मोटा आयकर प्राप्त होता है। इनमें विकास के नाम पर अब हरियाली को खत्म करने की होड़ मची हुई है। शहरों- महानगरों की घटती हरियाली को बचाने के लिए अब सबको मिल-जुलकर काम करना होगा। विकास योजनाओं की आड़ में पेड़ कटने बंद करने होंगे।

यह समझना होगा कि वैसे तो हमारा देश कृषि प्रधान है, पर शहरी भारत ही देश की अर्थव्यवस्था की असली रीढ़ है। देश का लगभग सारा सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) शहरों में ही सिमटा पड़ा है। जनगणना के आंकड़ों की मानें तो देश की 31 फीसदी आबादी आज के दिन शहरों में ही रहती है। हालांकि गैर-सरकारी आंकड़ें, शहरी आबादी कहीं और अधिक होने का दावा करते हैं। इन शहरों में ही रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं। सारे देश के नौजवानों के सपने इन्हीं शहरों में पहुंचकर साकार होते हैं। पर नीति निर्धारकों के फोकस से कहीं दूर बसते हैं हमारे शहर। यह भी समझ में नहीं आता कि बेंगलुरु, दिल्ली, मुंबई या बाकी शहरों के निगम अपने-अपने शहरों को रहने लायक बनाने के स्तर पर क्यों लगातार फेल होते जा रहे हैं।

बेंगलुरु की हालिया बारिश से हुई बर्बादी से सबकी आंखें खुल जानी चाहिए। हम अपने शहरों के लिये दूरगामी योजनायें बनाकर उनका कायदे से विकास करना होगा। अतिक्रमण पर वार करना होगा। स्थानीय निकायों के मुलाजिमों को सुधरना होगा। वहां पर कसकर करप्शन फैला हुआ है। उसे रोकना होगा। हमने हाल ही में नोएडा में ट्वीन टावर को भी ध्वस्त होते देखा। ये आखिर बना कैसे? इसे नियमों को ताक पर रखकर बनाने की मंजूरी नोएडा के सरकारी बाबुओं ने ही तो दी थी? अगर वे ही सच्चे और ईमानदार होते तो ट्वीन टावर न तो बनता और न ही टूटता। सरकारी बाबुओं की ऐसी ही काहिली जारी रही तो बेंगलुरु फिर से बारिश से डूबेगा। वहां पर हर माह एक करोड़ रुपया कमाने वाला पेशेवर भी सड़कों पर धक्के खाता रहेगा। इसी तरह नियमों की अनदेखी करके नोएडा के ट्विन टावर जैसी इमारतें खड़ी की जाती रहेंगी। यानी हम नहीं सुधरेंगे। अगर हम सुधरना चाहते हैं तो फिर अब कड़े फैसले लेने होंगे। बेंगलुरु और नोएडा के संदेश समझे देश।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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