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MP Highcourt: किसी का भी पासपोर्ट अनुचित रूप से जब्त करना, उसके आजीविका के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है


नई दिल्ली। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) की इंदौर बेंच (Indore bench) ने हाल ही में कहा है कि अनुचित कारणों के आधार पर किसी का पासपोर्ट (passport) जब्त करना, भारत संविधान (Indian Constitution) के अनुच्छेद 21 (article-21) के तहत उसके मौलिक अधिकार (fundamental rights) को प्रभावित करता है। न्यायमूर्ति सुजॉय पॉल (Sujoy Paul) द्वारा जारी की गयी खंडपीठ में कहा गया है कि पासपोर्ट को केवल इसलिए जब्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि धारा 498-ए आदि के तहत अपराध का मामला लंबित है या किसी व्यक्ति के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस (red corner notice) जारी किया गया था।


बता दे कि ”यदि जांच अधिकारी इस बात पर अपना संतोष दिखाता है कि आरोपी फरार हो सकता है,जो नियमित कानूनी कार्यवाही में बाधा बन सकता है, तो उसे जब्त किया जा सकता है। इसके बिना, नियमित रूप से, पासपोर्ट को जब्त नहीं किया जा सकता है।”

इस मामले में एक ट्रैवल ब्लॉगर (Travel blogger) ने क्षेत्रीय पासपोर्ट प्राधिकरण (Passport authority) , भोपाल (bhopal) की कार्रवाई के खिलाफ हाईकोर्ट (high-court) का दरवाज़ा खटखटाया था। उसने आरोप लगाया कि प्राधिकरण ने उसे दस साल की अवधि के लिए नियमित पासपोर्ट जारी करने की बजाय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए उसके पासपोर्ट को जब्त कर लिया है।

जानकारी के मुताबिक,याचिकाकर्ता का अपनी पत्नी के साथ वैवाहिक विवाद चल रहा है।जिसके बाद कथित तौर पर सितंबर 2016 में वैवाहिक घर छोड़ दिया था और अपने साथ याचिकाकर्ता का पासपोर्ट भी ले गई। इसके बाद उसकी पत्नी ने दहेज की मांग का आरोप लगाते हुए उसके और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ याचिका भी दर्ज करवाई। याचिकाकर्ता को इस एफआईआर के मामले में जमानत मिल गई है और उस पर जमानत की कोई शर्त नहीं लगाई गई थी। उसने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक के लिए एक याचिका भी दायर की, जो अभी भी विचाराधीन है। चूंकि उसके पासपोर्ट को उसकी पत्नी अपने साथ ले गई थी,इसलिए उसने जुलाई 2017 में उसका पासपोर्ट फिर से जारी करने के लिए आवेदन दायर किया था।

इसके बाद याचिकाकर्ता को जून 2019 में अधिनियम की धारा 10 (3) (एच) के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।क्योंकि उसकी पत्नी ने आरोप लगाया था कि वह आपराधिक कार्यवाही में भाग नहीं ले रहा है। उससे पूछा गया था कि क्यों न उसका पासपोर्ट इम्पाउंड या जब्त कर लिया जाए?

प्राधिकरण (Authority) ने याचिकाकर्ता के अनुरोध के बावजूद भी उसे शिकायत और सहायक दस्तावेजों की एक कॉपी उपलब्ध नहीं करवाई। इतना ही नहीं इस संबंध में हाईकोर्ट द्वारा वर्ष 2019 में दिए गए एक आदेश के बावजूद प्राधिकरण ने उसे उसका पक्ष रखने का कोई अवसर नहीं दिया था।

उसके पासपोर्ट को जब्त करने के बाद, याचिकाकर्ता को उसकी पत्नी की तरफ से दायर शिकायत और सहायक दस्तावेजों की आपूर्ति कर दी गई और उसे बताया गया कि संबंधित न्यायालय की अनुमति दायर करने के बाद ही उसे पासपोर्ट की सुविधा दी जा सकती है।

हाईकोर्ट (high-court) के 2019 के आदेश का पालन करते हुए, न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादियों को निश्चित रूप से याचिकाकर्ता की पत्नी की शिकायत और आवश्यक दस्तावेज याचिकाकर्ता को उपलब्ध कराने की आवश्यकता थी। क्योंकि ऐसे दस्तावेज और शिकायत याचिकाकर्ता को उपलब्ध कराए जाने के बाद ही एक प्रभावी और अर्थपूर्ण सुनवाई की जा सकती है। महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता को उसका पासपोर्ट जब्त करने से पहले या बाद में कोई भी सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया था, इसलिए, आक्षेपित कार्रवाई और आदेश न्यायिक जांच को कायम नहीं रख सकते हैं।

‘केवल वैवाहिक मामलों का लंबित रहना,पासपोर्ट के नवीनीकरण को अस्वीकार करने का आधार नहीं हो सकता है। उक्त राजपत्र अधिसूचना दस साल की अवधि के लिए पासपोर्ट को नवीनीकृत नहीं करने या इसे जब्त करने या इसे केवल एक वर्ष की अवधि के लिए प्रतिबंधित करने का आधार नहीं हो सकती है। इसलिए जांच अधिकारी की किसी विपरीत रिपोर्ट के अभाव में और किसी अन्य कानूनी बाधा के अभाव में, प्रतिवादियों का पासपोर्ट जब्त करना उचित नहीं था।”

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