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MP की सियासत को साधने की चाबी है मालवा-निमाड़, इसे जीतने वाली पार्टी का बनता है मुख्‍यमंत्री

भोपाल (Bhopal) । मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव (Madhya Pradesh Assembly Election) में महज 4 महीने बाकी हैं. ऐसे में राजनीतिक दिग्गजों के प्रदेश में तूफानी दौरों के साथ-साथ सियासी समीकरण साधने के तमाम उपाय किए जा रहे हैं. इसके केंद्र में बना हुआ है एमपी का मालवा-निमाड़ (Malwa-Nimar) इलाका. जहां इंदौर और उज्जैन संभाग (Indore and Ujjain Division) के तहत 66 विधानसभा सीट आती हैं. किसानों और आदिवासियों से भरे मालवा-निमाड़ में क्यों कांग्रेस और भाजपा (Congress and BJP) को अपना राजनीतिक भविष्य दिख रहा है उसपर पढ़िए यह रिपोर्ट.

देश के गृहमंत्री अमित शाह और कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के कार्यक्रमों से जुडी एक चीज सामान्य है और वो है इन दोनों कार्यक्रमों का मालवा-निमाड़ कनेक्शन. राहुल गांधी ने एमपी में भारत जोड़ो यात्रा निमाड़ के बुरहानपुर से शुरू की और मालवा के आगर में समाप्त कर के राजस्थान में दाखिल हुए थे. अब अमित शाह ने भी अपनी पहली चुनावी सभा की तो उसके लिए मालवा के इंदौर शहर को ही चुना और कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र दिया. राजनितिक दलों को यह बखूबी मालूम है कि एमपी की सत्ता में मालवा-निमाड़ की सबसे बड़ी भूमिका होती है. लिहाजा कांग्रेस हो या बीजेपी, दोनों ही राजनितिक दलों ने चुनावी सीजन में वोट की फसल काटने के लिए मालवा-निमाड़ पर ध्यान केंद्रित किया हुआ है.


यह क्षेत्र इतना खास क्यों?
आखिर किसानों, आदिवासियों और व्यापारियों से भरे इस क्षेत्र में सियासी समीकरण क्या है, इस पर वरिष्ठ राजनितिक विश्लेषक गिरिजा शंकर बताते हैं कि सीटों के लिहाज से देखें तो मालवा-निमाड़ में बाकी रीजन के मुकाबले में सबके अधिक सीटें हैं. 1998 में पहली बार जब कांग्रेस को मालवा से थोड़ी बढ़त मिली और उनकी सरकार रिपीट हुई. पिछले चुनाव में जो कांग्रेस को बीजेपी की तुलना में मालवा-निमाड़ से बेहतर सफलता मिली थी. कांग्रेस चाहती है कि वो सफलता उसकी कायम रहे, क्योंकि इसी क्षेत्र से कांग्रेस का सरकार बनाने का रास्ता आगे बढ़ेगा. ऐसे में बीजेपी नहीं चाहती कि हमेशा से जो वर्चस्व मालवा-निमाड़ में उनका रहा है वो हाथ से फिसल जाए. पिछले चुनावों में बीजेपी को इस क्षेत्र में नुकसान उठाना पड़ा था. इस क्षेत्र की महत्तवता को समझते हुए दोनों ही दल मालवा-निमाड़ पर खास फोकस कर रहे हैं.

दोनों ही दलों के लिए अहम है मालवा-निमाड़
इसका एक बड़ा कारण यही है कि उस रीजन में बाकी रीजन के मुकाबले में अधिक सीटें हैं. मालवा की पॉलिटिकल तासीर बीजेपी को फेवर करने वाली रही है. हालांकि पिछले चुनाव में जरूर भाजपा को वो सफलता नहीं मिली थी, तो इसलिए बीजेपी चाहती है कि परंपरागत रूप से जो एकाधिकार रहा है, वो कायम रहे और कांग्रेस ने जो सफलता पिछली बार हासिल कर ली थी वो चाहती कि कांग्रेस की इस चुनाव में भी मालवा-निमाड़ उसके साथ रहे और उसी से सरकार बनाने का बहुमत उसे मिले.

दरअसल बीजेपी और कांग्रेस के लिए 230 सीटों वाली विधानसभा में से 66 सीटों वाला मालवा-निमाड़ बेहद जरूरी है. पिछले चुनाव में दोनो ही दलों के बीच महज चंद सीटों का ही अंतर था. ऐसे में उस अंतर को पाटने के लिए अमित शाह ने जहां इंदौर से कार्यकर्ताओं में जोश भरा तो राहुल गांधी ने भी भारत जोड़ो यात्रा एमपी के इसी हिस्से से निकाली थी.

मालवा निमाड़ का सियासी समीकरण
– 66 कुल सीट
– 34 भाजपा
– 29 कांग्रेस
– 3 अन्य

दरअसल दोनों ही दलों की नजर मालवा निमाड़ की 66 सीटों के साथ-साथ यहां की आदिवासी बाहुल्य 22 सीटों पर भी है. जहां अमित शाह ने आदिवासी बाहुल्य इंदौर संभाग के बूथ कार्यकर्ताओं का सम्मेलन बुलाकर न केवल मालवा-निमाड़ की 66 सीटों पर निशाना साधा बल्कि आदिवासी इलाकों पर भी भाजपा को मजबूत करने का संदेश दिया क्योंकि…

– 2018 विधानसभा चुनाव में मालवा-निमाड़ की आदिवासी बहुल सीटों पर भाजपा को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा था.

– 22 में से 14 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं. जबकि बीजेपी के खाते में महज 6 सीटें आईं थीं. भगवानपुरा और मनावर में निर्दलीय और जयस उम्मीदवार जीते थे.

– सैलाना, भीकनगांव, सेंधवा, भगवानपुरा, पानसेमल, राजपूर, झाबुआ, थांदला, पेटलावाद, सरदारपुर, गंधवानी, कुक्षी, मनावर, धर्मपुरी ये 14 सीटें कांग्रेस के पास थीं.

– नेपानगर, अलीराजपुर, जोबट, रतलाम ग्रामीण, हरसूद, पंधाना ये 6 सीटें भाजपा के पास थीं.

जानें हर चुनाव का सियासी इतिहास
साल 2018 के विधानसभा चुनाव की बात हो या फिर उससे पहले के विधानसभा चुनाव की, मालवा-निमाड़ का एमपी की सत्ता में ट्रेंड कभी नहीं बदला. जिस भी राजनितिक दल ने मालवा-निमाड़ जीता समझो उसका मुख्यमंत्री बनना तय है.

-1990 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मालवा-निमाड़ की 52 सीटें जीतीं और बीजेपी के सुंदरलाल पटवा सीएम बने.

– 1993 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मालवा-निमाड़ की 32 सीटें जीतीं और कांग्रेस के दिग्विजय सिंह सीएम बने.

-1998 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मालवा-निमाड़ की 47 सीटें जीतीं और कांग्रेस के दिग्विजय सिंह दोबारा सीएम बने.

– 2003 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मालवा-निमाड़ की 51 सीटें जीतीं और बीजेपी की उमा भारती सीएम बनीं.

– 2008 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मालवा-निमाड़ की 41 सीटें जीतीं और बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान दोबारा सीएम बने.

– 2013 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मालवा-निमाड़ की 56 सीटें जीतीं और बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान तीसरी बार सीएम बने.

– 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मालवा-निमाड़ की 35 सीटें जीतीं और कांग्रेस के कमलनाथ सीएम बने.

मालवा-निमाड़ के ये 15 जिले राजनितिक रूप से बेहद अहम
1. इंदौर
2. उज्जैन
3. देवास
4. धार
5. रतलाम
6. मंदसौर
7. नीमच
8. झाबुआ
9. अलीराजपुर
10. बड़वानी
11. खरगोन
12. खंडवा
13. बुरहानपुर
14. शाजापुर
15. आगर

इन सीटों पर आदिवासी और किसानों को ध्यान में रखकर भाजपा और कांग्रेस दोनों योजनाओं और चुनावी वादों का पिटारा खोल चुके हैं. शिवराज सरकार ने जहां आदिवासी युवाओं को स्वरोजगार के अधिक अवसर प्रदान करने के लिए भगवान बिरसा मुण्डा स्वरोजगार योजना, टंट्या मामा आर्थिक कल्याण एवं मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति विशेष वित्तपोषण योजना शुरू की है, तो वहीं बिरसा मुंडा जयंती पर अवकाश की घोषणा भी की गई है. इसके अलावा जनजातीय दिवस मनाने की शुरुआत भी एमपी से हुई जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल हुए. इसके अलावा पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम आदिवासी जननायक टंट्या भील के नाम पर किया गया. जबकि भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम पर किया गया. दूसरी तरफ कांग्रेस ने भी किसानों के लिए कृषि न्याय योजना के साथ साथ चुनावों के मद्देनजर किसानों के लिए बड़ी घोषणा की है. कांग्रेस जीती तो किसानों को 5 हॉर्स पॉवर तक के सिंचाई पम्प के लिए मुफ्त बिजली, किसान कर्जमाफी, किसानों के पुराने बिजली बिल माफ होंगे, किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस होंगे.

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